
मुंबई। अभिनेत्री और निर्मात्री निकिता रावल ने हाल ही में जीवन की अप्रत्याशितता और उसके मानसिक प्रभावों को लेकर खुलकर अपनी भावनाएं साझा की हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि वैश्विक घटनाओं और निजी अनुभवों ने उन्हें गहरे आत्मनिरीक्षण के लिए मजबूर किया है, जिससे वे 2025 में एक नए दृष्टिकोण के साथ जीवन को देखने और जीने की कोशिश कर रही हैं। एक सार्वजनिक मंच पर जब उनसे पूछा गया कि वे मानसिक अराजकता से कैसे निपट रही हैं, तो निकिता ने बेहद संवेदनशीलता के साथ जवाब दिया—”शांति और विवेक मेरे लिए हमेशा से बहुत मायने रखते हैं। लेकिन हाल के दिनों में, जब दुनिया के हालातों पर नजर डालती हूं—जैसे एयर इंडिया दुर्घटना, पहलगाम हमला, या देशों के बीच बढ़ते युद्ध—तो मुझे लगता है कि जीवन वाकई बहुत अनिश्चित है। इन घटनाओं ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया है। जब आपकी नसें तनाव से भर जाती हैं और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, तो खुद को फिर से खोजना और स्थिरता पाना बेहद जरूरी हो जाता है। निकिता ने बताया कि वह अब खुद को सिर्फ एक कलाकार के रूप में नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में भी फिर से गढ़ना चाहती हैं। “मैं ध्यान, योग और मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे रही हूं। मैं अब अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही हूं। अपनी दिनचर्या में सकारात्मक बदलावों के बारे में बताते हुए निकिता ने कहा कि उन्होंने हाल ही में घुड़सवारी शुरू की है और इससे उन्हें बहुत आत्मिक संतोष मिल रहा है। “मैं लगातार नए कौशल सीखने की कोशिश कर रही हूं। अब मैं यात्राएं भी करना चाहती हूं और दुनिया को नए नजरिए से देखना चाहती हूं। उन्होंने आगे कहा कि बदलते समय के साथ खुद को अनुकूल बनाना ही सबसे बेहतर रास्ता है। “मैं एक बेहतर इंसान बनने की दिशा में प्रयासरत हूं और मुझे लगता है कि अगर अधिक लोग यह दृष्टिकोण अपनाएं, तो दुनिया कहीं ज्यादा बेहतर बन सकती है।”
निकिता ने अंत में दिग्गज अभिनेता राजेश खन्ना का मशहूर डायलॉग उद्धृत करते हुए अपनी बात को सार्थकता दी—”बाबूमोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं। उनकी यह स्वीकारोक्ति न केवल व्यक्तिगत साहस को दर्शाती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-खोज के महत्व को भी रेखांकित करती है, जो आज की दुनिया में पहले से कहीं अधिक जरूरी है।