सेना में सेवा देने के लिए तैयार नेपालियों को नए कानून के तहत रूस दे रहा है नागरिकता
नई दिल्ली:(New Delhi) भारतीय सेना की तरह अब चीन और रूस ने भी ‘गोरखा रेजिमेंट’ बनाकर नेपालियों को अपने सैन्य अभियान में शामिल करने के लिए आकर्षित करना शुरू कर दिया है। रूस उन सभी नेपाली नागरिकों को नागरिकता प्रदान कर रहा है, जो 2000 अमेरिकी डॉलर प्रति माह वेतन के साथ सेना में 1 वर्ष की सेवा देने को तैयार हैं। इसी के साथ चीन ने भी ‘गोरखा रेजिमेंट’ बनाने के लिए एनजीओ चाइना स्टडी सेंटर को 12 लाख रुपये में ठेका देकर नेपाल में भर्ती अभियान के लिए सर्वे कराया है।
भारतीय सेना में 7 गोरखा रेजिमेंट हैं, जहां आमतौर पर 60 फीसदी सीटें नेपालियों के लिए आरक्षित होती हैं। भारतीय सेना में 1300 नेपाली युवाओं की भर्ती की जानी थी, इसलिए भारत ने ‘अग्निपथ’ स्कीम के तहत मित्र देश नेपाल को भी सैनिकों की भर्ती के आमंत्रित किया था, ताकि सेनाओं में गोरखाओं की संख्या में इजाफा किया जा सके। दरअसल, भारतीय सेना में नेपाली गोरखाओं की वार्षिक भर्ती धीरे-धीरे घटकर लगभग 1,500 हो गई है, जो पहले प्रतिवर्ष 4,000 थी। नई सैन्य भर्ती प्रक्रिया ‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर भारत और नेपाल के बीच तनातनी बढ़ गई। नेपाल ने अग्निपथ योजना के तहत भर्तियां रोक दीं, जिसके लिए रैलियां शुरू होनी थीं।
भारतीय सेना में इस समय सात गोरखा राइफल्स रेजिमेंट हैं, जिनमें लगभग 30 हजार नेपाली नागरिक सेवा कर रहे हैं। प्रत्येक रेजिमेंट में पांच से छह बटालियन हैं। नेपाल में 1.3 लाख से अधिक पूर्व सैनिक भी हैं, जो भारतीय सेना की ओर से अपनी पेंशन प्राप्त करते हैं। गोरखा रेजिमेंट के जवान भारत में भी ज्यादातर पहाड़ी इलाकों पर तैनात रहते हैं, क्योंकि इनके बारे में कहा जाता है कि पहाड़ों पर उनसे बेहतर लड़ाई कोई और नहीं लड़ सकता है। शिलांग के गोरखा प्रशिक्षण केंद्र में कठोर भर्ती प्रशिक्षण के बाद नेपाली लड़कों को भारतीय सेना के लिए शारीरिक रूप से फिट, मानसिक रूप से मजबूत और पेशेवर रूप से सक्षम सैनिकों में बदल दिया जाता है।
‘अग्निपथ’ स्कीम को लेकर भारत से तनातनी के बाद नेपाली गोरखा अब रूसी सेना की ओर रुख करने लगे हैं। नागरिकता नियमों में हालिया बदलाव कर रूस उन सभी नेपाली नागरिकों को नागरिकता प्रदान कर रहा है, जो 2000 अमेरिकी डॉलर प्रति माह वेतन के साथ सेना में 1 वर्ष की सेवा देने को तैयार हैं। रूस के इस बेहद आकर्षक ऑफर के कारण सैकड़ों नेपाली युवा रूस की यात्रा कर चुके हैं। नेपाली गोरखा रूस स्थित एक निजी सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस घटनाक्रम ने नेपाल की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं, क्योंकि गोरखाओं ने सरकार के किसी भी आधिकारिक समर्थन के बिना यह कदम उठाना शुरू किया है।
इसी तरह चीन को भी तकलीफ है कि आखिर नेपाली नागरिक भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में क्यों हैं? इसकी वजहें तलाशने के लिए चीन ने एनजीओ चाइना स्टडी सेंटर को 12 लाख रुपये में ठेका देकर नेपाल में सर्वे कराया है। इसके बाद चीन अब नेपाल में भर्ती अभियान चलाकर खुद भी ‘गोरखा रेजिमेंट’ बनाने के सपने देखने लगा है। गोरखा जवानों ने चीन से 1962 की जंग में, फिर 1965 और 1971 में पाकिस्तान से युद्ध में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया है। चीन से 2020 में तनातनी शुरू होने से पहले भारत की गोरखा रेजिमेंट के 1642 सैनिक छुट्टियों पर अपने-अपने घर गए थे। चीन से मोर्चा खुलने के बाद नेपाली सैनिक भारत के प्रति अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को समझते हुए छुट्टी से वापस लौट आये। यह भी एक वजह है कि चीन को भारत के गोरखा जवान खटकने लगे हैं।