मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने महिला के हक़ में निर्णय सुनाते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है। घरेलू हिंसा मामले में पत्नी के गुजारा भत्ता बढ़ाने के सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ इंजीनियर पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस जीए सनप ने पति के पुनरीक्षण आवेदन को खारिज कर दिया। शिकायतकर्ता 2006 में अपने पति के साथ सऊदी अरब गई थी। जहां एक ही इमारत में रहने वाले महिला के रिश्तेदारों और उसके पति के रिश्तेदारों के बीच विवाद चल रहा था। उसने आरोप लगाया कि इसी विवाद के चलते उसके पति ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। बाद में वह 2012 में अपने पति और बच्चों के साथ भारत वापस आ गईं। महिला ने आरोप लगाया कि उस पर अपने रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का दबाव डाला गया और जब उसने इनकार कर दिया तो उसके साथ मारपीट की गई। यहां तक कि उसके पति के रिश्तेदारों ने उसे जान मारने की कोशिश भी की। फिर वह अपने छोटे बेटे के साथ अपने माता-पिता के घर चली गई और अपने पति व उसके रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। इस बीच महिला का पति वापस सऊदी अरब चला गया। हालांकि पति द्वारा उसके भरण-पोषण के लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया, जिस वजह से उसने इसके लिए आवेदन किया। हालांकि, पति ने महिला के आवेदन का विरोध किया और सारे आरोपों से इनकार कर दिया। पति ने आरोप लगाया कि महिला अपने परिवारों के बीच विवाद के कारण उससे झगड़ा करती थी और जब वह घर से चली गई तो उसने उसे वापस लाने की पूरी कोशिश भी की। पति ने दावा किया कि जब उसके सभी प्रयास विफल हो गए तो उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया, जिसकी बाकायदा रजिस्टर्ड डाक से सूचना दी गई थी। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने महिला को भरण-पोषण के तौर पर 7500 प्रति माह और बेटे को 2500 प्रति माह देने का आदेश दिया। इसके साथ ही 2000 प्रति माह अलग से किराया देने के लिए भी कहा। इसके अलावा मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता महिला को 50 हजार रूपये का मुआवजा भी दिया। लेकिन दोनों पक्षों (महिला और उसके पति) ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की. जिसके बाद सत्र न्यायाधीश ने पत्नी की अपील स्वीकार कर ली और गुजारा भत्ता बढ़ाकर 16 हजार रूपये प्रति माह कर दिया. जिसके बाद पति ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था। इंजीनियर पति ने तर्क दिया कि पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा का आरोप उनके अलग होने के एक साल से अधिक समय बाद लगाया गया था। इस प्रकार आवेदन दाखिल करने की तारीख पर उनके बीच कोई घरेलू संबंध नहीं थे और शिकायतकर्ता घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पीड़िता नहीं है।
पति ने तर्क दिया कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के रूप में वह मुस्लिम महिला अधिनियम की धारा 4 और 5 के अनुसार भरण-पोषण की हकदार नहीं है और यह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही पर भी लागू होगा। हालांकि हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायाधीश दोनों ने ही साक्ष्यों की जांच के बाद ही यह निष्कर्ष निकाला था कि शिकायतकर्ता महिला पर उसके पति द्वारा घरेलू हिंसा की गई थी। कोर्ट ने साथ ही शबाना बानो बनाम इमरान खान केस का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला तब तक भरण-पोषण की हकदार है जब तक वह दोबारा शादी नहीं करती है। अदालत ने कहा कि पति ने अपनी वास्तविक आय छिपाई लेकिन जिरह में उसने स्वीकार किया कि वह 2005 से सऊदी अरब में केमिकल इंजीनियर है और उसके पास 14 साल का अनुभव है। उसकी मासिक आय लगभग 3,50,000 लाख रूपये है। अदालत ने कहा कि पत्नी उस जीवनशैली और स्टैंडर्ड को बनाए रखने की हकदार है, जैसे उसका पति के साथ रहने के दौरान था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया।