मुंबई:(Mumbai) पालघर में सरकार आदिवासियों, गांंवों के विकास, उनकी सुविधाओं के नाम पर करोड़ों रुपए हर साल खर्च करने का दावा करती है, लेकिन सिस्टम की सबसे शर्मनाक तस्वीर यह है कि मरने के बाद भी विधि विधान से अंंतिम संस्कार के लिए श्मशान भूमि पर मृतकों को एक अदद छत भी यहां नसीब नहीं हो पा रही है। जिले के साखरे धोडी पाड़ा गांव में एक मृतक के अंतिम संस्कार का वायरल हो रहा वीडियो इसका गवाह है, जहां टीन की चादर पकड़कर मृतक का अंतिम संस्कार करना पड़ता है, क्योंकि यहां के श्मशान भूमि के नाम पर मात्र एक खुला स्थान है, न कोई छाया या छत है, न ही कोई और जरूरी इंतजाम।
प्रशासन की उदासीनता के चलते क्या मुर्दा, क्या जिंदा सभी परेशान हैं। अंतिम संस्कार के लिए बने श्मशान घाट खुद ही मृत अवस्था में पड़े हैं। कई जगहों पर श्मशान भूमि जर्जर पड़े हैं, छत गायब है। पहुंचने के लिए रास्ता खस्ता हाल है। कई जगहों पर तो शमशान भूमि तक पहुंचने के लिए मार्ग ही नही है। मानवता शर्मसार कर देने वाली एक और तस्वीर पालघर के साखरे-धोड़ी पाड़ा
गांव से सामने आई है। यहां के 100 साल से ज्यादा उम्र के गोविंद करमोड़ा की मौत हो गई। चूंकि, बारिश तेज थी तो परिजन कुछ ज्यादा व्यवस्था कर नहीं सके। वह जैसे-तैसे मृतक के शव को लेकर श्मशान पहुंचे। यहां पहुंचकर उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्होंने लकडियां इकट्ठी कीं और चिता बनाई। अब समस्या खड़ी हुई कि चिता जलाएं कैसे, क्योंकि तेज बारिश में सबकुछ भीग रहा था। सिर ढंकने या शव को पानी से सुरक्षित रखने की कोई जगह नहीं थी। इसके बाद परिजनों और रिश्तेदारों ने बारिश में भीगते हुए वहां टीन की चादर पकड़ी और चिता के चारों ओर खड़े हो गए। इससे बारिश का पानी चिता तक नहीं पहुंचा। फिर मृतक की चिता को अग्नि देकर अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान सभी परिजन बारी-बारी से टीन की चादर पकड़ते जा रहे थे, क्योंकि, आग से टीन का चादर गर्म हो रही थी। पिछले कई वर्षों से इस गांव के शमशान भूमि में टीन शेड नहीं है। इसलिए प्लेटफार्म बिना छत के है। ग्रामीणों को खुले में ही बरसात में भी अंतिम संस्कार करना पड़ता है। क्योंकि वर्षो से जारी मांग के बाद भी गांव में श्मशान भूमि की हालत ठीक नही हुई। जिससे यहां के ग्रामीण आजादी के अमृत काल मे भी यातनाओं भरा जीवन जीने को मजबूर है। बार-बार किचकिच होने के बाद भी यहां का प्रशासन कुंभकर्णी नींद में सोया हुआ है।