
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में साइबर धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा कि विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिक तेजी से इन धोखाधड़ी का शिकार बन रहे हैं। अदालत में एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें दावा किया गया कि वह साइबर धोखाधड़ी की शिकार हुई और जब उसने स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, तो पुलिस ने यह कहते हुए एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया कि उनके पास न तो पर्याप्त जनशक्ति है और न ही विशेषज्ञता। महिला ने आरोप लगाया कि एफआईआर दर्ज न होने और कार्रवाई में देरी के कारण उसे 45 लाख रुपये का नुकसान हुआ, जिसमें से केवल 2 लाख रुपये ही वापस मिल सके। इस मामले में 15 अप्रैल को संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) लखमी गौतम हाईकोर्ट के समक्ष पेश हुए और उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि भविष्य में साइबर धोखाधड़ी की शिकायतों पर तत्परता से कार्रवाई की जाएगी, सभी संबंधित पुलिस अधिकारियों को इस विषय पर संवेदनशील बनाया जाएगा, और जब भी ऐसी शिकायतें आएंगी तो तुरंत एफआईआर दर्ज की जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में मुंबई में पांच साइबर पुलिस स्टेशन हैं, और 10 लाख रुपये से कम की धोखाधड़ी की जांच स्थानीय पुलिस स्टेशन करते हैं, जबकि इससे अधिक की जांच साइबर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत होती है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि साइबर धोखाधड़ी से संबंधित मामलों में जागरूकता फैलाने के लिए कदम उठाए जाएं, और जब भी संभव हो, पीड़ितों की राशि को जल्दी से जल्दी रिकवर किया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने महाराष्ट्र साइबर सुरक्षा निगम नामक संस्था की स्थापना की है ताकि साइबर अपराधों से निपटा जा सके। इसके जवाब में अदालत ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (महाराष्ट्र साइबर) को 22 अप्रैल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होकर इस निगम के कार्यों और योजनाओं की जानकारी देने का निर्देश दिया है।




