Friday, November 22, 2024
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संपादकीय:- मोदी का विकल्प राहुल गांधी!

बीजेपी सरकार में मोदी के बाद दूसरे नंबर पर पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में अमित शाह, बीजेपी कार्यकर्ताओं और उनके द्वारा बुलाए गए लाभान्वित परिवारों के परिजन, यही लोग तो आते हैं बीजेपी की रैली में आते। क्या संगठन के आदेश का पालन करने की बाध्यता रहती है कार्यकर्ताओं की। पार्टी जो कहती है कार्यकर्ता वही करते कहते हैं। भीड़ जुटाना कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है। भाजपा कार्यकर्ताओं की भीड़ से अमित शाह पूछते हैं 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद कौन बनेगा पीएम? मोदी या राहुल? कार्यकर्ता भगवाधारी तो बोलेंगे ही मोदी, सो बोला भी। हां अगर इस रैली में गैरभा होंगे तो मन ही मन चुप रहते हुए राहुल को समर्थन ज़रूर करेंगे। दरअसल राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ों यात्रा में और अन्य प्रेस कांफ्रेंस के साथ ही मोदी पूर्व अमेरिका में अपने दिए गए भाषणों से मोदी की जमीन छीन चुके हैं। अब वहां मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ प्रेस कांफ्रेंस में सम्मिलित होकर पत्रकारों के सवाल के जवाब देंगे। भारतीय गोदी मीडिया केवल दो सवाल पूछेगी। जिसका जवाब मोदी देंगे। बाइडन अमेरिकी पत्रकारों के सवाल का ज़वाब देने।पूछने को अमेरिकी पत्रकार भारत रूस,भारत चीन संबंधों पर,भारत में प्रेस स्वातंत्र्य पर, यूक्रेन और मानवाधिकार पर सैकड़ों सवाल पूछते लेकिन तय किया गया है कि अमेरिकी पत्रकार वे कौन से दो सवाल पूछेंगे? साथ ही भारतीय पत्रकार भी सरकार द्वारा निश्चित किए गए दो ही सवाल पूछेंगे जिनके जवाब मोदी देंगे। अब सोचिए किस तरह का पत्रकार सम्मेलन होगा जिसमें प्रश्नकर्ता और सवाल वह भी सिर्फ दो दो पहले से ही लिखित मिले होंगे, पूछने की इजाजत होगी। कोई तीसरा सवाल नहीं पूछा जा सकेगा।फिर कैसा होगा प्रेस कांफ्रेंस? सहज ही अनुमान लगा लीजिए। ऐसे प्रश्न नहीं पूछने होंगे जिसका मोदी के पास कोई जवाब ही नहीं होगा। ठीक वैसा ही होगा जैसा भारत में अजय कुमार पूछते हैं या गोदी मीडिया के एंकर्स। और भारतीय मीडिया कहेगी मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया द्वारा पूछे सवालों के जवाब देकर पत्रकारों का मुंह बंद कर दिया और जो कहते हैं मोदी प्रेस के प्रश्नों के उत्तर क्यों नहीं देते उन्हें जवाब है मोदी का अमेरिका में प्रेस कांफ्रेंस।यानी चित भी मेरी पट भी मेरा। अमित शाह द्वारा मोदी या राहुल गांधी में कौन बनेगा पीएम? के छिपे एजेंडे हैं।शाह ने जानबूझकर राहुल का नाम सामने लाया ताकि विपक्षी एकता में फूट पड़े। दूसरा अमित शाह को एहसास हो चुका है कि अब बीजेपी राहुल को पप्पू नहीं कह सकेगी। राहुल पहले से और अधिक परिपक्व और शक्तिशाली होकर उभड़े हैं जो दुनियाएं कहीं भी पत्रकारों के किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम हैं। राहुल का ही करिश्मा है जो अमेरिकी भारतीय समुदाय मोदी गो बैक के नारे लगाते हैं जो पहले मोदी के बड़े समर्थक रहे। अब राहुल के साथ हैं। राहुल इफेक्ट्स ही है जो सत्तर अमेरिकी सीनेटर मोदी के अमेरिकी संसद में भाषण का बहिष्कार करने लगे।
राहुल का नाम पीएम रेस में जानबूझकर लाने का असली उद्देश्य सफल नहीं होगा शाह का। पटना में विपक्षियों की बैठक में विपक्षी एकता को फेल करने की इच्छा धरी रह जाने वाली है। विपक्षियों की बैठक में बीजेपी उम्मीदवार के सामने एक ही विपक्षी उम्मीदवार उतारने का निर्णय बहुत पहले ही ले लिया गया है। जैसे वेस्ट बंगाल में जहां ममता के कैंडिडेट खड़े होंगे सभी विपक्षी उसे जिताने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे। इससे यह होगा कि अभी तक विपक्ष को साथ प्रतिशत से अधिक वोट मिलते हैं। वे सारे वोट विपक्षी दल के उम्मीदवार को मिलेंगे तो चालीस प्रतिशत वोट पाकर बीजेपी हार जाएगी। वैसे भी कांग्रेस हिमानचल और कर्नाटक की जीत से उत्साहित है। उसके दो सौ ही उम्मीदवार खड़े किए गए तो सभी जीत जाएंगे। इसलिए अब बीजेपी का ध्रुवीकरण काम नहीं आएगा और चुनाव में बीजेपी की हार तय होगी। प्रेस कांफ्रेंस में जब अमेरिकी पत्रकार ने मोदी से पूछा, आपके देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति सुधारने, उनसे भेदभाव करने से रोकने के लिए आप क्या करेंगे? मोदी असहज हो गए। कोई जवाब देते नहीं बना और लोकतंत्र लोकतंत्र करने लगे।

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