मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सोमवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय विधायिका के किसी फैसले में तभी हस्तक्षेप करेगा, जब वह निर्णय असंवैधानिक हो या कानून को नजरअंदाज करता हो। नार्वेकर पिछले साल जून में उद्धव ठाकरे खेमा छोड़ने वाले शिवसेना विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय में दायर याचिकाओं पर यहां पत्रकारों के एक सवाल का जवाब दे रहे थे। पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में हुए विद्रोह के कारण पार्टी में विभाजन हो गया था और ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई थी। शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ने भाजपा के साथ मिलकर नयी सरकार का गठन किया था। पिछले साल शिंदे और 39 विधायकों के विद्रोह के बाद शिवसेना के दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों ने एक-दूसरे के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की थी। नार्वेकर ने कहा उच्चतम न्यायालय अपने समक्ष दायर याचिकाओं पर कार्रवाई करेगा। यदि कोई निर्णय असंवैधानिक है या यह कानून को दरकिनार करता है, तो ही उच्चतम न्यायालय हस्तक्षेप करेगा। अन्यथा, उच्चतम न्यायालय अन्य संस्थानों के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीन संस्थाएं हैं, जो एक-दूसरे के बराबर हैं।उन्होंने कहा कोई किसी दूसरे के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करता, इसे संवैधानिक अनुशासन कहा जाता है। पिछले महीने, उच्चतम न्यायालय ने नार्वेकर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट के शिवसेना विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने के लिए एक सप्ताह में समयसीमा बताने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने कहा था कि उचित समय के अंदर याचिकाओं पर निर्णय लेने के उसके निर्देश के बावजूद अब तक कुछ नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के 16 विधायकों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई में कथित देरी के आरोप पर नार्वेकर ने कहा मैंने कई बार कहा है कि सदन के बाहर लगाए गए किसी भी आरोप को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा। मैं इसे कोई महत्व नहीं देता। उन्होंने कहा मैं उन लोगों के दबाव में नहीं आऊंगा, जो आरोप लगाते हैं और मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों को महत्व देने का कोई मतलब नहीं है, जिन्हें संविधान और दलबदल नियम-1986 के आधार पर सदस्यों को अयोग्य घोषित करने के बारे में नहीं पता।