
विवेक रंजन श्रीवास्तव
पच्चीस वर्ष पहले जो प्रदेश बिजली कटौती के लिए कुख्यात था, वही आज ऊर्जा अधिशेष राज्य के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयासों से मध्यप्रदेश में बिजली उत्पादन की मजबूत स्थिति है। जिसके चलते ही प्रदेश का तेज औद्योगिक विकास संभव हो पा रहा है। साथ ही मुख्यमंत्री डॉ. यादव की सरकार में मध्यप्रदेश के किसानों और कृषि क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे गांव और किसान समृद्ध बनें। विगत वर्षों में विद्युत उत्पादन में मध्यप्रदेश की अभूतपूर्व प्रगति उल्लेखनीय रही है। जिसका भरपूर लाभ किसानों और आम जनता को मिल रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के इन्हीं प्रयत्नों से मध्यप्रदेश आत्मनिर्भरता और संपन्नता की ओर तीव्र गति से अग्रसर है। वर्ष 2000 में राज्य की कुल स्थापित क्षमता मात्र तीन हजार मेगावाट के आसपास थी। उस दौर में बिजली की कमी और आए दिन बिजली कटौती आम किस्सा हुआ करता था। ग्रामीण अंचलों में शाम होते ही बिजली कटौती से अंधेरा फैल जाता था। शहरों में भी चौबीस घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति सपना थी। प्रदेश ने जिस तरह ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र में प्रगति की है, वह चमत्कारिक है। ऊर्जा स्थापित क्षमता आज यह बढ़ते बढ़ते बत्तीस हजार पांच सौ मेगावाट तक पहुंच चुकी है। यही वह उपलब्धि है जिसने मध्यप्रदेश को ऊर्जा आत्मनिर्भर, विद्युत सरप्लस राज्यों की श्रेणी में खड़ा कर दिखाया है। आज राज्य के पास इक्कीस हजार मेगावाट से अधिक तापीय उत्पादन है जो बेसलोड को सुनिश्चित करता है। नवकरणीय अपारंपरिक ऊर्जा के क्षेत्र में मध्य प्रदेश में व्यापक कार्य हुए हैं। ग्यारह हजार मेगावाट से अधिक की क्षमता सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से आती है। इस तरह एक तरफ परंपरागत कोयले पर आधारित उत्पादन प्रणाली है तो दूसरी ओर प्रदूषण मुक्त स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से भविष्य की राह तैयार हो रही है। विंध्याचल ताप विद्युत स्टेशन चार हजार सात सौ साठ मेगावाट की क्षमता के साथ न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश का सबसे बड़ा ताप विद्युत उत्पादन केंद्र है। सिंगरौली का सासन अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट तीन हजार नौ सौ साठ मेगावाट के साथ निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि है। खंडवा का श्री सिंहाजी तापीय विद्युत केंद्र दो हजार पांच सौ बीस मेगावाट क्षमता के साथ राज्य की अपनी कंपनी का ध्वजवाहक है। खरगोन का सुपर थर्मल पावर स्टेशन तेरह सौ बीस मेगावाट और बिरसिंहपुर का संजय गांधी तापीय गृह तेरह सौ चालीस मेगावाट क्षमता के साथ भी इस महत्वपूर्ण सूची में आते हैं। इन पांच बड़े केंद्रों के बिना राज्य की ऊर्जा संरचना अधूरी है। निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र इस विकास यात्रा में समान रूप से सहभागी रहे हैं। सरकारी उत्पादन कंपनी एमपी पावर जेनरेटिंग कंपनी की स्थापित क्षमता लगभग साढ़े छह हजार मेगावाट है, जिसमें तापीय और जलविद्युत दोनों शामिल हैं। दूसरी ओर निजी और केंद्र सरकार के उपक्रमों की संयुक्त क्षमता कहीं अधिक है। सासन, जे पी निगरी, एमबी पावर और एनटीपीसी के बड़े संयंत्रों ने निजी और केंद्र की भूमिका को महत्वपूर्ण बना दिया है। यही कारण है कि आज प्रदेश में अधिशेष बिजली की स्थिति बनी है और बाहर राज्यों को भी आपूर्ति संभव हो रही है। यद्यपि जलविद्युत उत्पादन की क्षमता में अभी और विकास वांछित है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और नदियों के प्रवाह की क्षमता इतनी नहीं कि बड़े पैमाने पर जलविद्युत तैयार हो सके। कुल मिलाकर जलविद्युत की हिस्सेदारी दो हजार दो सौ मेगावाट के आसपास ही है, जो कुल उत्पादन का मात्र सात प्रतिशत है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश ने अपनी रणनीति में सौर और पवन ऊर्जा के दोहन पर अधिक जोर दिया है। रीवा का अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट, ओंकारेश्वर का फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट और नीमच जैसे कई नवीन प्रयोग इस सोच के उदाहरण हैं। इस तरह मध्यप्रदेश ने बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भरता केवल आंकड़ों में नहीं बल्कि योजनाबद्ध नीतियों और दीर्घकालिक निवेश के बूते वास्तविक धरातल पर हासिल की है। तापीय संयंत्रों की क्षमता, नवीकरणीय ऊर्जा का तेजी से बढ़ता योगदान, निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों की साझेदारी और जलविद्युत के सीमित लेकिन स्थिर योगदान ने मिलकर ऊर्जा आत्मनिर्भरता का एक ऐसा ताना बाना बुना है जिस पर प्रदेश आने वाले कई दशकों तक गर्व कर सकेगा। (लेखक म.प्र.वि.मं. के सेवा निवृत्त मुख्य अभियंता हैं।)