
विवेक रंजन श्रीवास्तव
भोपाल शहर अब केवल तालाबों, पहाड़ियों और हरियाली का पर्याय नहीं रहा। यह शहर अब अपने नए अवतार में उभर रहा है, तकनीकी आत्मनिर्भरता का केंद्र बनकर। मध्य प्रदेश शासन द्वारा स्थापित किया जा रहा इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर (EMC), भोपाल को भारत के तकनीकी मानचित्र पर स्थायी रूप से दर्ज करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। भोपाल के नजदीक बैरसिया में प्रस्तावित बांदी खेड़ी ग्राम में इलेक्ट्रानिक क्लस्टर परियोजना केवल उद्योग नहीं, बल्कि एक विचार है। ऐसा विचार जो अभियंत्रिकी को रोजगार से आगे बढ़ाकर नवाचार, आत्मनिर्भरता और सामाजिक दायित्व से जोड़ता है। भोपाल की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियाँ इस प्रयास के लिए अत्यंत अनुकूल हैं। यहाँ की जलवायु संतुलित है, कुशल श्रमशक्ति प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, और तकनीकी शिक्षण संस्थानों की एक सशक्त श्रृंखला है मेनिट, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, एनआईटीटीटीआर, और अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज। इन संस्थानों से हर वर्ष निकलने वाले अभियंता अब अपने ही शहर में अवसर पाएँगे। यह किसी शहर की आत्मा के लिए बड़ी उपलब्धि होती है जब उसका ज्ञान, उसकी भूमि पर ही फलने-फूलने लगे। इस क्लस्टर की परिकल्पना आधुनिक औद्योगिक अवधारणाओं पर आधारित है। यहाँ सेमीकंडक्टर असेंबली, स्मार्ट सेंसर निर्माण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), सौर उपकरण निर्माण, तथा एआई-आधारित औद्योगिक स्वचालन जैसे उन्नत क्षेत्रों में उत्पादन की योजना है। परियोजना का लक्ष्य है कि भारत में निर्मित उत्पाद विश्व-स्तरीय गुणवत्ता के हों और निर्यात-योग्य भी। भोपाल की भूमि इस आत्मविश्वास के साथ अब भविष्य की फैक्ट्रियों की गूंज सुनने को तैयार है। इंजीनियरिंग के दृष्टिकोण से यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण परियोजना है। इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के लिए क्लीनरूम टेक्नोलॉजी आवश्यक होती है जहाँ धूल का एक कण भी उत्पादन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। इसके लिए उच्चस्तरीय एयर-फिल्टरेशन सिस्टम, तापमान नियंत्रण और सटीक यांत्रिक डिज़ाइन की आवश्यकता होती है। इस समूची प्रक्रिया में पर्यावरण अभियंत्रिकी, यांत्रिक डिज़ाइन, इलेक्ट्रिकल नियंत्रण प्रणाली, और सॉफ्टवेयर एनालिटिक्स, सभी शाखाओं का समन्वय आवश्यक है। भोपाल के अभियंता इस चुनौती को एक अवसर की तरह देख रहे हैं। उन्हें केवल मशीन नहीं, बल्कि व्यवस्था गढ़नी है, ऐसी व्यवस्था जो ऊर्जा-सक्षम, पर्यावरण-संतुलित और तकनीकी रूप से सटीक हो। इसीलिए इस क्लस्टर में सौर ऊर्जा आधारित पावर सिस्टम, वर्षा जल संचयन और अपशिष्ट पुनर्चक्रण जैसे प्रावधानों को अनिवार्य रूप से जोड़ा गया है। यह केवल निर्माण नहीं, भविष्य के प्रति नैतिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि इस परियोजना में विविध अभियंत्रिकी शाखाओं के साथ-साथ प्रबंधन और कौशल विकास को भी समान महत्त्व दिया गया है। स्थानीय युवाओं को आधुनिक उत्पादन तकनीकों में प्रशिक्षित करने के लिए एक समर्पित स्किल सेंटर की स्थापना की जा रही है। यहाँ प्रशिक्षण प्राप्त अभियंता ऑटोमेशन, गुणवत्ता नियंत्रण, और इंडस्ट्रियल रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता अर्जित करेंगे। इस प्रशिक्षण से न केवल रोजगार सृजन होगा, बल्कि अभियंत्रिकी का आत्मविश्वास भी लौटेगा । वही आत्मविश्वास जो कभी भोपाल के पुराने औद्योगिक नगरों की पहचान हुआ करता था। यदि हम इसे व्यापक दृष्टि से देखें तो यह परियोजना भारत के औद्योगिक दर्शन में परिवर्तन का प्रतीक है। पहले उद्योग केवल उत्पादन-केंद्रित होते थे, अब वे नवाचार-केंद्रित हैं। पहले अभियंता मशीन चलाते थे, अब वे भविष्य को दिशा दे रहे हैं। पहले उद्योग का उद्देश्य लाभ होता था, अब उसका लक्ष्य स्थिरता और सामुदायिक उत्तरदायित्व है। भोपाल का यह प्रयास इसी नए युग की शुरुआत है जहाँ इंजीनियरिंग केवल एक पेशा नहीं, बल्कि समाज निर्माण का उपकरण बन जाती है। आर्थिक दृष्टि से भी यह परियोजना मध्य भारत की औद्योगिक अर्थव्यवस्था को नया प्राण देगी। अनुमान है कि अगले पाँच वर्षों में इस क्लस्टर से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दस हज़ार से अधिक रोजगार सृजित होंगे। परंतु इस सबके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन घट रहा है, वह मानसिक है , भोपाल अब अपने युवाओं को सपनों के लिए बाहर नहीं भेजेगा, बल्कि उनके सपनों को यहीं आकार देगा। भोपाल का यह नवाचार अभियान यह सिखाता है कि किसी शहर का भविष्य केवल योजनाओं या बजट से नहीं बनता, बल्कि उस शहर के अभियंताओं के मनोबल से बनता है। जब अभियंता अपने शहर के लिए सोचने लगते हैं, तो मशीनें भी मानवीय हो जाती हैं और फैक्ट्रियाँ भी संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। यही वह बिंदु है जहाँ इंजीनियरिंग और मानवीय संवेदना एक दूसरे में घुलमिल जाती हैं। अंततः यह कहा जा सकता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर, भोपाल के अभियंता समुदाय के लिए एक नया विश्वासपत्र है। यह हमें यह स्मरण दिलाता है कि भारत का तकनीकी पुनर्जागरण केवल महानगरों से नहीं, बल्कि ऐसे स्वाभिमानी शहरों से शुरू होता है जहाँ विचार और श्रम दोनों एक साथ जन्म लेते हैं। भोपाल आज उसी दिशा में बढ़ चला है ,विचार की राजधानी बनने की ओर, अभियंत्रिकी की आत्मा के साथ।




