नागपुर। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा आखिरकार गुरुवार को जेल से बाहर आ गए। दो दिन पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा समेत पांच अन्य को माओवादी लिंक के एक कथित मामले में बरी कर दिया था। साथ ही उनकी उम्रकैद की सजा को रद्द करने का फैसला सुनाया था। नागपुर केंद्रीय कारागार से रिहा होने के बाद साईबाबा ने कहा, ‘मेरा स्वास्थ्य बहुत खराब है। मैं बात करने की स्थिति में नहीं हूं। पहले मुझे इलाज की जरूरत है, तब मैं कुछ बोल सकूंगा। बता दें, पूर्व प्रोफेसर साल 2017 से जेल में बंद थे। व्हीलचेयर पर बैठे साईबाबा ने नागपुर जेल से बाहर आने के बाद मीडिया से कहा मेरी तबीयत बहुत खराब है। मैं बात नहीं कर सकता हूँ। मुझे पहले मेडिकल ट्रीटमेंट लेना होगा और उसके बाद ही मैं बोल पाऊंगा। परिवार का एक सदस्य जेल के बाहर जीएन साईबाबा का इंतजार कर रहा था।
सरकार ने रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को कथित माओवादी लिंक मामले में साईबाबा की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है। इसलिए उन्हें सुनाई गई उम्र कैद की सजा भी रद्द की जाती है। इस मामले के पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया गया। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को बरी करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
कौन है जीएन साईबाबा?
साईबाबा को प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) से संबंध रखने के मामले में 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उनकी पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक, साईबाबा ह्रदय और किडनी रोग समेत कई अन्य रोगों से ग्रस्त हैं। साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं। माओवादियों से कथित संबंध के चलते उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज ने सहायक प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया था।