
स्वतंत्र लेखक- इंद्र यादव
भारत। अजी सुनतें हो, “आज कल की आशिकी ऐसी हो गई है कि लगता है, जीवन की पहली मंजिल ही आखिरी हो जाती है। गटर में घुसने का रास्ता भी यही है– प्रेम का नाम लेकर युवा दिल पटरी पर लेट जाते हैं, और ट्रेन की सीटी बजते ही सब कुछ खत्म। गोरखपुर के पिपराइच स्टेशन पर जो प्रेमी युगल ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दी, वो तो बस एक ताजा उदाहरण है। लड़का हैदराबाद से पेंट-पॉलिश का काम करके दिवाली पर घर लौटा था, लड़की कपड़ों की दुकान में सिलाई-कढ़ाई कर रही थी। छह महीने पहले भी इन्होंने कोशिश की थी, लेकिन दुनिया ने बचा लिया। इस बार सफल हो गए। व्यंग्य तो ये है कि प्रेम में नाकामी को ही सफलता मान लिया! मां रोते-रोते बेहोश, पुलिस जांच में जुटी, और हम सब सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बौछार कर रहे हैं – “ट्रू लव”, “सच्ची मोहब्बत”। अरे भाई, ये तो युवापन की बर्बादी का प्रमोशनल वीडियो लगता है! कल्पना कीजिए, बीस-पच्चीस साल की उम्र, जब दुनिया के सारे सपने चमक रहे हों – नौकरी, करियर, दोस्ती, परिवार। लेकिन आशिकी का भूत उतर जाए तो सब भूलकर पटरी पर लेटना ही विकल्प लगता है। ये कैसी आशिकी है जो जीवन को गटर में धकेल देती है? बॉलीवुड ने तो हमें सिखाया है कि प्रेम में मरना ही असली हीरोइज्म है। “आशिकी” फिल्म देखी? वहां तो हीरोइन ट्रेन के नीचे आ जाती है, और हीरो गाने गाता रहता है। असल जिंदगी में भी वही कॉपी-पेस्ट: हाथ थामो, कूदो, और खत्म। लेकिन व्यंग्य ये कि ये “ट्रू लव” कितना ट्रू है? छह महीने पहले असफल कोशिश, फिर दोबारा – ये तो स्टॉक मार्केट की तरह लगता है, जहां नाकामी पर ट्राई करते रहो। युवा दिमाग में तो हॉरमोन का तूफान है ही, ऊपर से सोशल मीडिया की चमक: इंस्टाग्राम पर परफेक्ट कपल्स, टिकटॉक पर रोमांटिक चैलेंज। नतीजा? प्रेम नाकामी लगे तो “सुसाइड चैलेंज” एक्सेप्ट कर लो। युवापन तो जीवन का फूल है, लेकिन आशिकी के नाम पर इसे कुचल देना – ये कैसी बेवकूफी। लड़का पेंट-पॉलिश का काम करता था, हैदराबाद जैसे शहर में जूझ रहा था। लड़की दुकान में काम, शायद घर की जिम्मेदारियां। दोनों के पास तो पूरा जीवन था – स्किल्स सीखने का, कमाने का, घूमने का। लेकिन प्रेम का भूत कहां मानता है तर्क। “या तो तू, या मौत” – ये डायलॉग फिल्मों में अच्छे लगते हैं, लेकिन रियल लाइफ में ये युवाओं को बर्बाद करने का फॉर्मूला है। व्यंग्य देखिए, लड़की का शव निर्वस्त्र मिला, पैर कटा; लड़के का सिर चूर-चूर। ये प्रेम की सुंदरता है? या समाज की असफलता, जहां परिवार, दोस्त, काउंसलर कोई नहीं पहुंचा इन तक? पहले कोशिश में बचा लिया, लेकिन दूसरी बार। शायद सबने सोचा, “ये तो बच्चे हैं, खुद संभल लेंगे।” युवा उम्र में संभलना तो दूर, ये आशिकी की लत में डूबकर सब कुछ जला देते हैं। करियर। भूल जाओ। परिवार। रोने दो। भविष्य। पटरी पर कुचल दो। और समाज का रोल। हम तो तालियां बजाते हैं ऐसे “ट्रेजिक लव स्टोरीज” को। न्यूज चैनल्स पर डिबेट: “क्या प्रेम में आत्महत्या जायज है?” अरे, जायज तो कुछ नहीं, लेकिन रेटिंग्स के लिए तो कमाल है। युवाओं को लगता है, ये ही असली विद्रोह है – पैरेंट्स के खिलाफ, समाज के नियमों के खिलाफ। लेकिन असल विद्रोह तो जीना है, लड़ना है। प्रेम नाकामी लगे तो ब्रेकअप लो, नई शुरुआत करो। लेकिन नहीं, युवापन का जोश कहता है: “ड्रामा क्वीन बनो, ट्रेन के आगे कूदो।” व्यंग्य ये कि आज के युवा स्मार्टफोन पर जीवित हैं, लेकिन जिंदगी के बारे में बेवकूफ। पढ़ाई? छोड़ दो। जॉब? प्रेम के आगे फीकी। दोस्त? वो तो “सिंगल लाइफ” जी रहे हैं, जलन होती है। नतीजा: बर्बादी की पटरी। कितने केस रोज आते हैं – प्रेम प्रसंग में सुसाइड, हॉनर किलिंग, ब्लैकमेल। आशिकी का सारा भूत तो यही तो करता है: जीवन की पहली मंजिल पर ही ब्रेक लगा दो।…सोचिए, अगर ये दोनों थोड़ा इंतजार कर लेते। लड़का वापस हैदराबाद जाता, पेंटिंग में मास्टर बन जाता। लड़की दुकान से आगे बढ़कर बिजनेस शुरू कर लेती। प्रेम। वो तो आता-जाता रहता है। लेकिन युवापन में धैर्य कहां? सब इंस्टेंट नूडल्स की तरह चाहते हैं – दो मिनट में प्यार, दो सेकंड में मौत। व्यंग्यपूर्ण सलाह: अगली बार आशिकी में फंसो तो ट्रेन के बजाय जिम जॉइन कर लो। मसल्स बनाओ, कॉन्फिडेंस बढ़ाओ। प्रेम टूटे तो? अगला चैप्टर लिखो। जीवन तो उपन्यास है, एक पैराग्राफ में खत्म मत करो। मां बेहोश हुईं, लेकिन क्या ये युवा सोचे थे? नहीं, क्योंकि आशिकी ने आंखें बंद कर दीं। अंत में, ये घटना सिर्फ दो जिंदगियों की बर्बादी नहीं, पूरे समाज का आईना है। जहां युवा उम्र को आशिकी के गटर में बहा देते हैं, और हम तमाशा देखते रहते हैं। प्रेम सुंदर है, लेकिन जब वो जीवन का दुश्मन बन जाए तो व्यंग्य ही करो: “वाह रे मोहब्बत, तू तो ट्रेन से भी तेज भागती है!” युवाओं, सुन लो– जीवन की मंजिलें अभी बाकी हैं। पटरी पर मत लेटो, रेलगाड़ी बनो जो आगे बढ़े। वरना, आशिकी का भूत हर बार गटर में घुसा लेगा, और तुम्हारा युवापन बस एक न्यूज हेडलाइन बन जाएगा। नहीं, – हंसो और जियो, क्योंकि बर्बादी का मजाक ही व्यंग्य है।




