मुंबई। बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट आ गई है। अब महाराष्ट्र में भी इसको लेकर चर्चा तेज होती दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि राज्य सरकार भी इस कदम के बारे में सकारात्मक थी, लेकिन वह पहले बिहार की आधिकारिक रिपोर्ट का अध्ययन करेगी। यह घोषणा तब हुई जब भाजपा ने पार्टी के गढ़ विदर्भ में ओबीसी जनजागृति यात्रा का पहला चरण शुरू किया, जहां वह ओबीसी वोट बैंक के कारण विपक्ष से अधिक सीटें जीतती रही है। फडणवीस ने कहा कि हमने अभी तक बिहार रिपोर्ट नहीं देखी है। हम प्रामाणिकता, परिणाम और प्रभाव तथा प्रयुक्त पद्धति जानने के लिए पहले इसके आधिकारिक संस्करण का अध्ययन करेंगे। सीएम एकनाथ शिंदे उचित निर्णय लेंगे। भाजपा नेता ने कहा कि हम इस तरह की जनगणना के विचार के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला बिहार इस तरह की जनगणना करने वाला एकमात्र राज्य था। उन्होंने कहा कि यहां तक कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों ने भी (जनगणना के लिए) अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। शरद पवार के नेतृत्व वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) गुट के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने बिहार की जाति आधारित गणना की सराहना करते हुए मांग की है कि महाराष्ट्र सहित देश के सभी राज्यों में इसी तरह की कवायद की जानी चाहिए। उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अधिकार छीने जाने का आरोप लगाया। हार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए, जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है।