पहले बैलेट पेपर से चुनाव होते थे तो बूथ कैप्चरिंग कर बाहुबली अपने पक्ष में मतदान करा कर चुनाव जीत जाते थे। बैलेट बॉक्स की सुरक्षा में काफी सुरक्षा कर्मी लगाते थे। फिर मतगणना करने के लिए कई राउंड की गिनती होती थी। गणना के समय भी धांधली की जाती थी। किसी के वोट के बंडल दूसरे में मिला देना मामूली बात थी। उसके बाद बैलेट पेपर की जगह ईवीएम का उपयोग किया जाने लगा। कुछ समय तक विश्वसनीय बना रहा ईवीएम लेकिन उस पर भी हैक किए जाने की आशंका जताई जाने लगी। कुछ इंजिनियर और हैकर्स भाड़े पर लेकर गड़बड़ी की जाने के आरोप लगे। कुछ टेकनिशियंस ने ईवीएम हैक कर दिखाया भी। तनिक सोचिए पश्चिम के देशों ने ईवीएम का प्रयोग बंद क्यों किया? वे फिर से पुराने ढंग के चुनाव बैलेट पेपर से कराए जाने लगे हैं। भाजपा द्वारा ईवीएम हैक कर चुनाव जीतने के आरोप लगाए जाने लगे हैं। कोर्ट तक मामला पहुंचा भी। बीजेपी कहती है यदि हम ईवीएम का दुरुपयोग करते तो विधानसभा चुनावों में हारते क्यों? जैसा कि पंजाब हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में बीजेपी की हार से साबित होता है ईवीएम हैक नहीं की जा सकती। विपक्षी आरोप लगाते हैं कि बीजेपी जानबूझकर विधानसभा चुनाव हार जाती है ताकि ईवीएम हैक कर लोकसभा चुनाव जीत जाए। यदि ईवीएम हैक नहीं होता तो मुख्य चुनाव आयुक्त की मनमानी नियुक्ति क्यों की जाती? जब कि सुप्रीमकोर्ट ने सीजेआई, प्रधानमंत्री और विपक्षी दल का नेता तीनों मिलकर नियुक्त करेंगे लेकिन मोदी सरकार ने कानून बनाया कि विपक्षी नेता, पीएम और पीएम के द्वारा नामित कोई मंत्री ही नियुक्ति करेंगे। आखिर भाजपा ने एस सी की व्यवस्था के खिलाफ क्यों कानून बनाया? स्पष्ट है ओम और उनके द्वारा नॉमिनेट मंत्री दो मत हो जाएंगे तो अकेले विपक्षी नेता को बहुमत नहीं मिलेगा। सरकार अपना आदमी चुनाव आयुक्त बना लेगी। हुआ भी यही। किस बात से डरती है बीजेपी? सबसे अहम बात यह कि आरटीआई के जवाब में ईवीएम निर्माता दोनो कंपनियों ने बताया कि कुल चालीस लाख ईवीएम बनाकर चुनाव आयोग को दिए लेकिन चुनाव आयोग कहता है कि उसके पास मात्र बीस लाख से कुछ अधिक ईवीएम हैं तो सवाल उठता है आखिर उन्नीस लाख ई वी एम को जमीन खा गया या आसमान हजम कर गया? इतनी बड़ी संख्या में ईवीएम का गायब होना बताता है कि सरकार ने ही उन्नीस लाख ईवीएम का झोल किया है जिसका दुरुपयोग लोकसभा चुनाव में किया जाएगा। दूसरी बात कि जैसा कि विधानसभा चुनाव में तेईस से लेकर सात दिनों तक ई वीएम विश्राम करेंगे तो क्या इतने दिनों में ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जाएगी? एक तरफ मोदी कहते हैं ई वी एम आने के बाद बहुत जल्दी परिणाम घोषित होते हैं तो तेईस दिन तक ईवीएम क्यों विश्राम करे? जिस राज्य का चुनाव खत्म हो इसका परिणाम दूसरे दिन घोषित क्यों नहीं किए जाने की व्यवस्था की गई? जब तक गायब उन्नीस लाख ईवीएम का पता नहीं चल जाता ईवीएम से चुनाव कराना खतरे से खाली नहीं है। सरकार द्वारा अभी तक इतनी बड़ी संख्या में ई वी एम का पता नहीं लगा पाना आश्चर्य जनक है। जब विपक्षी नेता के घर छापे डलवाकर कालाधन निकाला जा सकता है तो ई वी एम का पता अभी तक नहीं चल पाना सरकार और चुनाव आयोग पर संदेह पैदा करेगा ही। लोकसभा चुनाव में अमेरिका जैसे धनी देश के राष्ट्रपति चुनाव से अधिक धन लगता है। एक देश एक चुनाव शिगूफा है। बीजेपी वैसे भी जनता द्वारा चुनी सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाने में माहिर है। यदि सचमुच पारदर्शी ईमानदार चुनाव कराने की मंशा हो तो गरीब राष्ट्र भारत का अरबों रुपए बरबाद होने से रोकना सरल है। चुनाव व्यय जीरो किया जा सकता है। न्यायधर्म सभा के प्रस्ताव डिजिटल वोटिंग और डिजिटल काउंटिंग कराने से चुनाव व्यय जीरो होगा। पारदर्शी ईमानदार होगा। वैसे भी वोटर लिस्ट में आधारकार्ड और मोबाइल जोड़ा जा चुका है तो चुनाव क्षेत्र के अनुसार मोबाइल पर चुनाव चिन्ह और नाम सीरियल नंबर भेज कर साधारण मोबाइल से सीरियल का बटन दबाकर शत प्रतिशत वोट डलवाया जा सकता है। फिर एक देश एक चुनाव के शिगूफे की जरूरत नहीं होगी बशर्ते केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की मंशा साफ हो।