मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि शिक्षा को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है, लेकिन अब यह पहुंच से बाहर हो गई है। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी की पहुंच हो। न्यायमूर्ति ए एस चंदूरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने पुणे में दो संगठनों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने की अनुमति नहीं देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को रद्द करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। उच्च न्यायालय ने 21 फरवरी के अपने आदेश में कहा कि अदालत शिक्षा नीति मामलों में विशेषज्ञ नहीं है और राज्य सरकार सर्वश्रेष्ठ का चयन करने के लिहाज से सर्वोत्तम प्राधिकार है। अदालत ने कहा कि केवल चुनने की शक्ति को मनमाना नहीं कहा जा सकता है। उच्च न्यायालय ने कहा पुणे को दशकों से ‘पूर्व के ऑक्सफोर्ड’ के रूप में जाना जाता है और इसने ना केवल भारत बल्कि अन्य देशों के विद्यार्थियों को भी आकर्षित किया। इसके परिणामस्वरूप पुणे शैक्षिक संस्थानों का केंद्र बन गया। अदालत ने कहा कि समय बीतने के साथ ना केवल पुणे बल्कि इसके आसपास के क्षेत्रों में काफी विकास हुआ है और यहां कॉलेज और विद्यालय स्थापित करने की प्रतिस्पर्धा है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यद्यपि शिक्षा हमारी संस्कृति में पवित्र मानी जाती है लेकिन समय में बदलाव के साथ इसने अलग रूप ले लिया है और अब यह पहुंच से परे हो गई है। अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा सभी तक पहुंचे ताकि मानवता के विकास को हासिल किया जा सके। अदालत ने जागृति फाउंडेशन और संजय मोदक एजुकेशन सोसाइटी द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा पिछले साल पुणे में शैक्षिक संस्थान स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार करने के फैसले को चुनौती दी गई थी।