Thursday, August 21, 2025
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संपादकीय: कोई कसर बाकी छोड़ना नहीं चाहती सरकार!

केंद्र में मोदी की बीजेपी सरकार 2014 में कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर देशवासियों को सब्ज़ बाग दिखाए। गरीब का बेटा गरीबों झेला और कांग्रेस मुक्त भारत के साथ गुजरात के कथित झूठे विकास का मॉडल बताकर सत्ता में आ गई। विदेशी बैंक में जमा कालाधन लाकर हरेक भारतीय के खाते में पंद्रह लाख डाला जाएगा। कालाधन लाना तो दूर उलटे स्विस बैंक में तीन गुना कालाधन अधिक जमा हो गया। एक महीने में महंगाई कम करने की जगह महंगाई दो गुनी बढ़ा दी गई। दो करोड़ रोजगार देने का वादा भी जुमला साबित हुआ। नोटबंदी कर लाखों छोटी कंपनियां बंद कर करोड़ों बेरोजगार बढ़ा दिए गए। 2022 तक सबको पक्की छत देने में मात्र 15 प्रतिशत को ही मिल पाया। किसानों की आय दोगुनी कौन कहे खाद, बीज, कृषियंत्र, कीटनाशकों के मूल्य बढ़ा दिए गए। किसानों की जमीन छीनकर मजदूर बनाने के लिए तीन कानून बनाए गए, जिसे दबाव में वापस लिया गया। सौ स्मार्ट सिटी बनाने का दावा शून्य पर टिक गया। शिक्षा का बंटाधार किया गया। 72,000 सरकारी स्कूल बंद किए गए। शिक्षा को माफियाओं के हाथों दे दिया गया ताकि गरीब और आम जन के बच्चे ऊंची शिक्षा नहीं पा सकें। सारी प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर लीक कर करोड़ों रुपए शिक्षा माफिया ने कमाए। SSC परीक्षा में तमाम अनियमितताओं को लेकर रैलियां निकलीं, प्रतियोगी परीक्षा दोबारा कराने की मांग कर छात्र-शिक्षक सड़क पर उतरे तो पुलिस द्वारा लाठियों से पिटवाया गया। मीडिया ही नहीं सभी जांच एजेंसियों आईटी, सीबीआई, ईडी का दुरुपयोग किया गया। वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा वोट चोरी करने का आरोप प्रमाणों के साथ देने के बावजूद सीसीटीवी फुटेज नहीं दिए जा रहे। महिलाओं की प्राइवेसी के नाम से देने से मना किया जा रहा क्योंकि सीसीटीवी फुटेज देने पर अनिल मसीह जैसे लाखों वोट चोर सामने आने का डर सता रहा। सवाल चुनाव आयोग से पूछा जाता है, जवाब बीजेपी सरकार देने लगती है। सरकार से सवाल पूछने पर पालतू मीडिया जवाब देती है। यहां तक कि जीवित वोटरों को मृत घोषित किया गया, जो सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर जिंदा रहने का प्रमाण देने पहुंच गए। ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप कई वर्षों से लग रहे। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उद्योगपतियों ने ईवीएम हैक करने की बातें कही हैं। चिप लगी मोबाइल नेट प्रोवाइडर कंपनियां रिचार्ज खत्म होते ही बंद कर देती हैं। इशारे चिप के सहारे चंद्रयान अभियान में कंट्रोल करता है। दस घंटे काम करने वाले ईवीएम 99 प्रतिशत चार्ज मतगणना में मिलते हैं। लोकसभा चुनाव में करोड़ों वोट बढ़ाने की बात स्वीकार कर चुनाव आयोग अपनी गलती के लिए माफी मांगता है। फिर भी पारदर्शी ईमानदार वोटिंग की जवाबदेही नहीं निभाई जाती। महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार जिसे जनता ने चुना था को गिरा दी जाती है। पार्टियां तोड़कर विधायकों को अपने साथ मिला लेने की बात हो या फिर भ्रष्ट नेताओं की जांच कर बीजेपी में मिलने के बाद जांच रोक देने का मामला हो, दुनिया में किरकिरी करा चुका है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों को झूठे शराब घोटाले में सीबीआई और ईडी जेल भेज देती है। झारखंड के मुख्यमंत्री को झूठे जमीन मामले में जेल भेजा जाता है। सारे लोग पुख्ता सबूत के नहीं मिलने पर कोर्ट द्वारा बरी किए जाते रहे हैं। अहम बात यह कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल जाने के बाद भी पद त्याग से इनकार कर दिया। सारे मंत्री निर्दोष साबित हुए। यही कांटा मोदी सरकार की आंखों में चुभ रहा है, आज तक टीस बाकी है जिससे केंद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में तीन बिल पेश किया। अब बीजेपी सरकार कानून बनाना चाहती है कि किसी मुख्यमंत्री मंत्री को अगर तीस दिनों तक गिरफ्तार रखा जाता है तो उसे पद गंवाना पड़ेगा। सरकार खत्म हो जाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मंत्रियों के विरुद्ध सीबीआई और ईडी ने जेल में रखा। कोर्ट में पुख्ता सबूत नहीं दे पाई। अब तीस दिन की अवधि का प्रावधान इसलिए किया जा रहा है कि गुलाम एजेंसियों द्वारा विपक्षी दल के मुख्यमंत्रियों-मंत्रियों को निर्देश रहने के बावजूद गिरफ्तार कर जेल में डालकर उसका पद खत्म कर दिया जाएगा। जांच एजेंसियां तीस दिनों में अपनी जांच रिपोर्ट ही पेश नहीं करेंगी, इसलिए कोर्ट में सुनवाई बिना ही पद छोड़ देना पड़ेगा। दिल्ली के कथित शराब घोटाले में यही किया गया था। महीनों बीत गए, कभी सीबीआई ने तो कभी ईडी ने अपनी जांच में हद से ज्यादा समय लगाकर देरी की। बीजेपी सरकार कानून बनाकर किसी विपक्षी मुख्यमंत्री और मंत्रियों के खिलाफ झूठे केस बनाकर तीस दिन जेल में ठूंस दिया जाएगा और इस अवधि में जांच एजेंसियां जांच रिपोर्ट तक तैयार नहीं करेंगी। सीबीआई और ईडी को छोड़िए, पुलिस भी तीस दिनों में जांच पूरी नहीं करके बेगुनाहों को जेल में रखती है। जांच रिपोर्ट और ट्रायल के नाम पर वर्षों जेल के सींखचों में बिताना पड़ता है। जेएन यूनिवर्सिटी के छात्र शरजील का मामला तो ज्ञात ही होगा। कई साल हो गए जेल में ले जाए हुए लेकिन पुलिस अभी तक जांच रिपोर्ट पेश नहीं कर सकी है। जिस कथित आरोप में जेल में रखा गया है, उसमें उतनी अवधि की जेल की सजा नहीं मिलेगी। सीधी सी बात है बीजेपी सरकार को विश्वास है चुनाव आयोग और वोट चोरी ही नहीं, ईवीएम पर जिसे हैक कर चुनाव आयोग हारे को जीता देगा जैसा वाराणसी में किया गया। सातवें राउंड तक नरेंद्र मोदी हार रहे थे। चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट ही बंद कर लाखों फर्जी वोटों की हेराफेरी कर जीत दिला दी। जब तक जांच एजेंसियां आईटी, सीबीआई, ईडी, पुलिस और चुनाव आयोग, मीडिया गुलाम बनी रहेगी सत्ता की, तब तक बीजेपी की जीत पक्की होती रहेगी। दरअसल चुनाव बीजेपी नहीं पड़ती। चुनाव आयोग लड़ता है। बिहार में 65 लाख वोटरों के नाम काट दिए, मृतक बताए गए। हजारों अभी भी जीवित हैं, उनमें से कई सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित हुए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 65 लाख काटे गए नामों की सूची हर जिले में देने का आदेश दिया है। राहुल गांधी की एक्सपर्ट टीम ने छह महीने मेहनत कर एक विधानसभा में बढ़ाए गए एक लाख अवैध मतों का दावा किया है। यहां तक कि बीजेपी सांसद-विधायक भी अब मुखर होकर सच बोलने लगे हैं कि उनके क्षेत्रों में फर्जी वोटर बढ़ाए गए हैं। मजेदार नहीं, चिंता की बात है कि वोटिंग होती है 100 की लेकिन मतगणना के समय वोट निकलते हैं 120। ऐसा ईवीएम में छेड़छाड़ के बिना संभव ही नहीं है। चुनाव आयुक्त माताओं, बहनों, बहुओं, बेटियों की प्राइवेसी के नाम पर आंचल के पीछे छुपते नजर आते हैं। सीसीटीवी फुटेज बूथ के मांगे जा रहे, चेंजिंग रूम के नहीं, जो चुनाव आयोग देने से मना कर रहा और बहाने महिलाओं की गोपनीयता के बनाता है। चुनाव आयुक्त बताएं कि बूथ पर सीसीटीवी क्या महिलाओं से पूछकर लगवाए थे? क्या खुद माताओं, बहनों, बहुओं, बेटियों के चेहरे देखने के लिए लगाए थे? पुलिस ने हर बूथ पर मुस्लिम मतदाताओं के बुर्के उतरवाकर देखे और पहचानपत्र से मिलान करते देखे गए। पुलिस को जांच करने का अधिकार किसने दिया? बूथ पर तमाम लोग रहते हैं, सबके सामने पुलिस द्वारा बुर्का उतरवाना क्या गोपनीयता भंग नहीं करता? बूथ के अंदर सभी प्रत्याशियों के एजेंट होते हैं। पोलिंग ऑफिसर फर्स्ट वोटर लिस्ट, स्लिप और आईडी की जांच कर हस्ताक्षर कराने के बाद वोट डालने की अनुमति देता है, जो सीसीटीवी फुटेज में आता है। चुनाव आयोग सीसीटीवी के फुटेज देख सकता है तो देश की जनता क्यों नहीं? चुनाव आयोग जवाब दे कि जब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सीसीटीवी फुटेज मुहैया कराने का आदेश दिया था, तब चुनाव आयोग ने नियम क्यों बदल दिए? क्या इसलिए नहीं कि सीसीटीवी फुटेज देने से उसके द्वारा की जा रही सारी गड़बड़ियां जगजाहिर हो जाएंगी? सारा विश्व जानता है कि भारत के मीडिया, जांच एजेंसियां और चुनाव आयोग गुलाम हैं। कितनी बदनामी देश की हो रही? विदेशी मीडिया चुनाव आयोग की सारी गतिविधियों पर नजर रखती हैं और विदेशी प्रेस लिखते रहते हैं। क्या चुनाव आयोग को भारतीय लोकतंत्र, संविधान, चुनाव निष्पक्ष पारदर्शी बनाने के लिए काम नहीं करता? केवल बीजेपी को जिताने के लिए सारे हथकंडे अपनाता है। सच छुपाने के लिए सारे बहाने बनाते हुए विश्व में बदनाम हो चुका है। बीजेपी सरकार का लक्ष्य है वन नेशन, वन पार्टी। इसी लिए केंद्र ने तीन कानून बनाने की कोशिश में लगा है, जिसका प्रबल विरोध विपक्षी दल खुलकर किया है, जिससे संसदीय समिति को बिल भेज दिया गया है। स्पष्ट है कि चुनाव आयोग जनता का मूलभूत मताधिकार छीनना चाह रहा है और बीजेपी सरकार विपक्षहीन भारत करने में लगी है। जब लोकतंत्र होगा न संविधान बचेगा। सिर्फ एक दल बचेगा, बीजेपी

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