Thursday, November 21, 2024
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संपादकीय:- सिफारिशों पर एससी की चिंता जायज!

एक वक्त था जब सरकार आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल से और अधिक धन मांगने गई थी। ऊर्जित के मना करने पर सरकार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, ऊर्जित पटेल धन पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे हैं। बैंकिंग व्यवस्था सम्हालना आरबीआई गवर्नर का काम है। उसमें राजनीतिक हस्तक्षेप क्यों हो?
सुप्रीम कोर्ट (एससी) के पास जजों की नियुक्ति और स्थांतरण के मुद्दे निपटाने के लिए वर्षों से कोलेजियम व्यवस्था चली आ रही है। यद्यपि बीजेपी की केंद्र सरकार ने कोलेजियम हटाकर खुद जजों की नियुक्ति करने के अधिकार लेने का कुत्सित प्रयास किया था। कोलेजियम द्वारा जजों को नियुक्ति, ट्रांसफर की सिफारिश सरकार के पास जाती है और सरकार की संस्तुति के उपरांत जजों की नियुक्ति प्रमोशन और ट्रांसफर कोलेजियम करता है। सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है कि आठ महीने बीत जाने के बावजूद सरकार सत्तर सिफारिशों पर संस्तुति नहीं दे रही। कोलेजियम मामले में सरकार के वही दायित्व हैं जो सरकार द्वारा की गई सिफारिशों के मामले में महामहिम राष्ट्रपति का है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अ टारनी जनरल बेंकट रमनी से स्पष्ट रूप से कहा इस मुद्दे पर समाधान निकालने का प्रयास करें। उन्होंने कोर्ट से एक सप्ताह का समय मांगा। कम समय मांगे जाने पर जस्टिस ने संतोष जाहिर किया और कहा,आज मैं चुप हूं क्योंकि अटॉर्नी जनरल ने बहुत कम समय मांगा है। अगली सुनवाई पर चुप नहीं रहूंगा।इन मुद्दों का समाधान करने के लिए अपने कार्यालय का उपयोग करिए। कोलेजियम ने 80 सिफारिशें भेजी थी जिसमें दस का निपटारा सरकार ने किया लेकिन 70 सिफारिशों पर कुंडली मारे बैठ गई। अधिकतर सरकारें ऐसा ही करती हैं लेकिन बीजेपी सरकार में यह बार किया जा रहा। एक तरफ सरकार कोर्ट के जजों पर निशाने साधती रहती है कि कोर्टों में करोड़ों मुकदमें पेंडिंग में हैं क्योंकि जज हर मुकदमें में निर्णय देने के लिए फूंक फूंक कर कदम रखती हैं ताकि संविधान का उल्लंघन न हो तो दूसरी तरफ सरकारें कोलेजियम की सिफारिशों पर महीनों ध्यान नहीं देती। सच तो यह है कि सरकारें अपनी पसंद के लोगों को जज बनाने के लिए कोलेजियम की सिफारिशों पर ध्यान नहीं देती। जस्टिस कौल के अनुसार लंबित सिफारिशों पर महत्त्वपूर्ण काम किए सात महीने बीत चुके हैं। इन पर महज बुनियादी कार्यवाही की जरूरत है। हमने चीजों को आज बढ़ाने के लिए करीब से नजर रखने की कोशिश की है। दस बारह दिनों में यह मामला निपट जाना चाहिए क्योंकि जस्टिस कौल का कार्यकाल 25 दिसंबर को खत्म होने वाला है। कोलेजियम की 80 सिफारिशों में दस नामों को स्वीकृति दी गई। सत्तर मामले पेंडिंग हैं। जिनमें 26 मामले स्थान्तरण के हैं। सात मामलों को सरकार ने पिछली बार संस्तुति रोक रखी है।उनको दोहराया गया है। नौ मामले तो ऐसे हैं जिन्हें कोलेजियम को आज तक लौटाया ही नहीं गया है। एक संवेदनशील मामला हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का है। सारी 70 मांगें पिछले वर्ष नवंबर की हैं। सरकार दोषारोपण तब कर सकती है जब निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक जज पर्याप्त मात्रा में हों। संसद के लिए 543 सदस्य हैं किंतु कोर्टों में जजों की कमी मुकदमों की बहुलता को देखकर बहुत ही है। सरकार को चाहिए कि जजों का भार कम करने के लिए और अधिक पदों का सृजन करे। किसी देश की न्यायप्रणाली तभी सुचारू रूप से चलती है जब मुकदमों की संख्या के अनुसार जजों की संख्या पर्याप्त हो। जजों पर उंगली उठाना आसान है।निर्णय देना ताकि न्याय भी हो अत्यंत जटिल है। सरकार इस जटिलता को समझना ही नहीं चाहती। जज कम हों और मुकदमों की लंबित संख्या के आधार पर आलोचना और दोष देना कत्तई उचित नहीं है।

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