Sunday, December 22, 2024
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संपादकीय:-सत्यपाल मलिक को भय, लेकिन रुकेंगे नहीं!

सत्यपाल मलिक भाजपा के बड़े नेता और भाजपा की केंद्र सरकार के अत्यंत विश्वसनीय व्यक्ति रहे हैं। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने पीएम मोदी से मिलकर तीनो बिल वापस लेने की गुजारिश की थी। सात सौ किसानों की मृत्यु की बात बेदिली से पीएम ने कहा था, क्या वे मेरे लिए मरे? यह बात किसानों ने सुना तो आपे से बाहर हो गए थे।मलिक किसान पहले हैं नेता बाद में। किसानों के हित की बातें कहते रहे हैं। जम्मू कश्मीर में वही महबूबा मुफ्ती जो कहा करती थी कि तिरंगे को उठाने वाला कोई नहीं मिलेगा उसी महबूबा के साथ बीजेपी ने जम्मू कश्मीर में सरकार बनाई थी। धारा 370 और धारा 35 ए हटाए जाने पर कश्मीर में खून की नदी बहने की आशंका सबने जाहिर की थी लेकिन मलिक ने प्रेम एयर भाईचारा की राह चुनकर घाटी में शांति बनाए रखा था। उन्होंने मोदी और अजीत डोभाल पर आरोप लगाते हुए कहा था पुलवामा आतंकवादी हमला खुद सरकार ने प्रायोजित किया था जिसमें आरडीएक्स से भरी गाड़ी सी आर पी एफ के काफिले से आ टकराई थी जिसमें आरपीएफ के चालीस जवान शहीद होने पर मलिक को चुप रहने को कहा गया था क्योंकि सरकार उस आतंकी हमले की जवाबदेही पाकिस्तान पर डालना था ताकि पीओके पर स्ट्राइक की जा सके और उसे चुनाव में भुनाया जा सके। दूसरों के कामों का श्रेय लेने में भाजपा सिद्ध हस्त तो है ही आर्मी के जवानों की बहादुरी को पीएम मोदी की बहादुरी बताकर चुनाव जीता गया।हमारे देश में लाशों पर राजनीति करना, फायदा उठाना पुरानी बात है। भाजपा ने आर्मी के अतुल्य साहस का श्रेय मोदी को दिया। भाजपा का आईटी सेल तो कुख्यात है ही छवि बनाने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए फेक न्यूज चलाकर। वैसे गोदी मीडिया भी मोदी को श्रेय देने में नहीं हिचकती। ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव 2024 सन्निकट है मलिक द्वारा पुलवामा षडयंत्र का खुलासा बीजेपी को मंहगा पड़ सकता है। एक तरफ मलिक को डर सता रहा है कि उन्हें खत्म कर दिया जाएगा तो दूसरी ओर पूर्व सेना प्रमुख उनके समर्थन में उठ खड़े हुए हैं। सेना प्रमुख की एंट्री के बाद भाजपा क्या और कैसा री एक्ट करती है देखने वाली बात होगी।सवाल यह है कि मलिक की कुछ गड़बड़ियां खोजी जाएंगी और फिर सीबीआई और जरूरत होगी तो ईडी लगाई जा सकती है। और कुछ नहीं तो उन्हें कुछ महीनो के लिए जेल भेजा ही जा सकता है मनोबल तोड़ने और पुलवामा खुलासे की भयंकर गलती करने के दंड स्वरूप। मलिक आशंका जाहिर करते हुए कहते हैं कि अंजाम कुछ भी हो वे सच कहने से पीछे नहीं हटेंगे।कैसे देश को बताएंगे मलिक? इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया का समर्थन मिलेगा न सहयोग। वह तो राग दरबारी गाने और जनता को उसमें उलझाए रखने का काम करती रहेगी। पूरे देश ने देखा सुना है मीडिया ने मोदी को ओबीसी बताते हुए ऐलान कर दिया कि कांग्रेस ओबीसी के विरुद्ध है। जबकि फैक्ट चेकर ने स्पष्ट किया है कि मोदी ओबीसी में नहीं आते लेकिन मीडिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे जो संदेश कांग्रेस के खिलाफ ओबीसी तक पहुंचाना था,पहुंचा ही दिया है। अब उलझो। कोई ताज्जुब नहीं कि गोदी मीडिया पुलवामा आतंकी हमले को जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल की साजिश बताने न लगे। बताती है तो आश्चर्य नहीं होगा। हां नहीं बताने पर आश्चर्य ज़रूर होगा कि ऐसा सुनहरा मौका कैसे नहीं भुनाया? बहरहाल तलवारें दोनो तरफ खींची हुई हैं। पीएम चुप हैं। पूर्व रक्षामंत्री राजनाथ सिंह चुप हैं। चुप तो सेना भी है क्यों नहीं वह पूर्व राज्यपाल को नोटिस भेजकर एविडेंस मांग लेती। आखिर सी आर पी एफ के चालीस जवानों की शहादत का मामला है।

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