हमारे विश्वगुरू प्रधानमंत्री जब विदेश में घोषणा करते हैं कि हर साल एक विश्वविद्यालय, तीसरे दिन एक एकआईआईएम और आईआईटी कॉलेज खुल रहे तो गर्व होता है। शायद जिस कांग्रेस और नेहरू परिवार को बीजेपी कोसती और कहती रहती है कांग्रेस ने सत्तर वर्षों में किया ही क्या है? शायद वे अपरोक्ष रूप से उन भारत वंशियों की भी खिल्ली उड़ाते हैं जिन्होंने सत्तर साल के विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम में शिक्षित विश्व में देश का मान बढ़ाने कीर्तिमान स्थापित करने वालों की उपलब्धियों को नकारने लगते हैं।सिंगापुर के वर्तमान राष्ट्रपति थरमन षणमुगरतनम, ब्रिटिश पीएम ऋषि शूनक,आयरलैंड के पीएम बराड़कर, अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, पुर्तगाल के पीएम एंटोनियो कोस्टा, गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली, मारिशस के पीएम प्रबिंद जगन्नाथ और सर रामागुलाम सहित गुलाम देश से गए गिरमिटिया मजूरों की संतानें, राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन, सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी जैसे भारतवंशी आज के नौ वर्षों की देन नहीं हैं। इनके अलावा अपनी प्रतिभा का डंका बजाने वाले विश्वबैंक के अध्यक्ष अजय बंगा, अंतरराष्ट्रीय कोश के डिप्टी डायरेक्टर गीता गोपीनाथ, आईटी कंप्यूटर मैनेजमेंट, बैंकिंग, वित्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला, गुगल के सुंदर पिचाई, नोवार्टिस के वसंत नरसिनहम, एडोव के शांतनु नारायण, आईबीएस के अरविंद कृष्णा, स्टारबक्स के लक्ष्मण नरसिम्हन, वटैक्स फारमास्युतिकल के रेशमा केवलरमानी, माइक्रोन टेक्नोलॉजी के संजय मेहरोत्रा, कैंडेस डिजाइन सिस्टम के अनिरुद्ध देवगन, फ़ॉलो आल्टो नेटवर्क के निकेश अरोड़ा, बीएम वेयर के रंगराजन रघुराम, इमर्सन इलेक्ट्रिक कंपनी के सुरेंद्रलाल कुरसन भाई, माइक्रोचिप प्रौद्योगिकी के गणेश मूर्ति जैसी वैश्विक प्रतिभाएं सत्तर वर्षों की ही देन हैं। इतने सारे भारत वंशी शीर्ष वैश्विक संस्थानों, राजनीति और उद्योग कारोबार में दखल रखने वाले हैं। दुनिया के प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा दायसपोरा हैं जिनकी संख्या 3.2 करोड़ है। जिसमें विदेशों में रह रहे भारतवंशी, नॉन रेजिडेंट इंडियन, ओवरसीज सीतीजंस ऑफ इंडिया मुख्य रूप से शामिल है। पिछले सत्तर सालों की देन देश की विदेशी मुद्रा वृद्धि में भी अहम भूमिका वाली है। हमारे ये प्रवासी भारतीय भारत में धन भेजने वाले राष्ट्रों में प्रथम हैं जिनके परिजन, नाते रिश्तेदार यहां इंडिया में रहते हैं। वर्ष 2022 में भारतीय प्रवासियों द्वारा इंडिया में 100 अरब डॉलर थी जबकि वर्ष 2021 में उन्होंने 87 अरब डॉलर इंडिया में अपने परिजनों को भेजकर विदेशी मुद्रा में वृद्धि की थी। ये सत्तर सालों की देन प्रवासी भारतीयों ने उस समय भी इंडिया की आर्थिक साख बढ़ाए रखा था जब परमाणु परीक्षण करने के कारण अमेरिका ने बैन लगा दिया था। देश सत्तर साल की देन उन प्रवासियों का ऋणी है जो इंडिया का मान मर्दन होने भीं देते। इंडिया के मुकुट का रत्न हैं भारतीय प्रवासी। विदेशों में चिकित्सा, विज्ञान, ज्ञान, उद्योग, व्यापार के क्षेत्र में देश का नाम रौशन करते हैं। हमें उन नॉन रेजिडेंट इंडियन पर गर्व करना ही न्याय होगा जो सत्तर वर्षों की देन का पक्के प्रमाण हैं।