कार्ल मार्क्स ने कहा था वेतन के संदर्भ में कि अधिकतम और न्यूनतम वेतन में 1/3 का अनुपात होना चाहिए लेकिन बाद में कम्युनिस्ट ने कहा यह व्यावहारिक नहीं है। वेतन का अनुपात 1/6 का होना चाहिए।इसमें बर्जुआ वर्ग का ध्यान रखा गया। अरे भाई किसी को एक हजार किसी को छः हजार यह तो अन्याय है। सभी को बराबर वेतन क्यों नहीं मिले? सभी इंसान हैं। साम्यवाद कहां आया? सच तो यह है समाजवाद राष्ट्रवाद, साम्यवाद कोई भी हो धूर्त लोग अपने फायदे के लिए ही सोचते हैं। आज हमारे देश की आबादी एक सौ चालीस करोड़ है। एक प्रतिशत लोगों के पास सत्तर प्रतिशत पूंजी यानी एक लाख के पास जितनी पूंजी या संपत्ति है उसकी आधी संपत्ति एक सौ उंटालिस करोड़ के पास मात्र आधी है। यही शोषण वाली अन्याई व्यवस्था है। अस्सी करोड़ भारतीयों का मूल्य मात्र पांच किलो अनाज है। कितने शर्म की बात है? प्रायवेत संस्थानों में छः हजार से नौ हजार वेतन में बारह घंटे काम कराया जाता है। किसानों की औसत आय सिर्फ चार हजार महीना है और सरकार चंद पूंजीपतियों की आय के आधार पर एक लाख रुपए के ऊपर व्यक्तिगत आय बताती है। क्यों भाई? कोई पूंजीपति चार लाख घंटे आय करे तो बहुत सारे लोग दो हजार से तीन हजार महीना कमाएं? यह कैसी शोषण व्यवस्था हमारे राजनेताओं ने बना रखी है। हवा पानी सूर्य चंद्र की रोशनी यह नहीं देखती कि महक है या झोपड़ी। निशुल्क देती है प्रकृति लेकिन धूर्त अन्याई हैं जो बॉटल में हवा और जल भरकर बेच देते हैं। ऐसा क्यों है?
वैसे ही हर परिवार के बच्चों को शिक्षा चाहिए। बिजली पेयजल चाहिए।पक्का मकान चाहिए। सबसे बड़ी बात है रोटी नहीं रोजगार चाहिए। है कहां रोजगार? करोड़ों सरकारी पद रिक्त हैं। भरी क्यों नहीं जाती? जनता का कर्तव्य है टैक्स देना। देती है ईमानदारी से सत्तर प्रतिशत लेकिन सत्तर प्रतिशत संपत्ति वाले देते है महज पांच प्रतिशत। सरकार का दायित्व है योग्यतानुसार पद वितरण करे। रोजगार के संसाधन जुटाए न कि पांच किलो अनाज देकर गुलाम और मजबूर बनाए रखे। राजनीति बहुत हो चुकी। अब न्यायनिति होनी चाहिए और आय की राशि भी समान होनी चाहिए। शोषण की अन्याई व्यवस्था नहीं चाहिए। जंगली राज नहीं चाहिए। जिस दिन न्यायशील लोग शासनसत्ता में बैठेंगे उसी दिन न्यायशील व्यवस्था लागू कर देंगे। अभी तो बहु और धनबली ही बैठे हैं सत्ता में। उनसे उम्मीद ही कैसे की जा सकती है।चपरासी की नौकरी के लिए आठवीं पास चाहिए लेकिन नेतृत्व कर्म के लिए कोई योग्यता नहीं? अनपढ़, बाहुबली धनवान माफिया डॉन धूर्त अनपढ़ चोर लुटेरे बलात्कारी भ्रष्ट हत्यारे जन नेतृत्व करेंगे तो अपना घर भरेंगे। करोड़ों व्यय कर चुनाव लड़ने वालों से कैसे आशा करनी चाहिए? सच तो यह है कि अनपढ़ नेता नहीं सरकार ब्यूरोक्रेट चलाते हैं। मिले होते हैं धनवान जिनके कहने पर बजट नीति नियम बनाए जाते हैं। अनपढ़ धनवान और दागी नेता जन हित की सोच ही नहीं सकते। ब्यूरोक्रेट खुद को एलिट समझते हैं और आम जनता को कीड़े मकोड़े। मंदिर मस्जिद करना सरकार का काम नहीं। मंदिर बनवाना, उद्घाटन करना सरकार का दायित्व नहीं। सरकार का फर्ज है जनता की बहबुदी के लिए निरंतर कार्य करना। लोगों की शिक्षा,जीवन हेतु आवश्यक बिजली पेयजल आवास सड़क, रोजगार के संसाधन देकर आत्मनिर्भर बनाना। साथ जी जनता स्वस्थ रहे इसके लिए अत्याधुनिक अस्पताल डॉक्टर्स जीवन रक्षक मॉडर्न उपकरण और उच्च क्वालिटी की दवाएं निशुल्क सब कुछ देना क्योंकि जनता नियमित टैक्स देती है तो सरकार का दायित्व है कि उस धन का सदुपयोग जनता के लिए करे न कि वैभव पूर्ण जीवन जीने के लिए खुद पर करे। असफल सरकार अपनी शर्म मिटाने के लिए अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, बीमारी से त्रान पाने के बदले जनता का ध्यान भटकाने के लिए हिंदू मुस्लिम का जाप करती रहे। किसान मजदूर और सभी को हर महीने सुनिश्चित आय, समान आय की व्यवस्था करना सरकार का दायित्व है ताकि दो मुट्ठी अनाज और चंद सिक्के भीख में देकर अपने दायित्वों की इतिश्री मान ले।