Wednesday, July 23, 2025
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संपादकीय: मातृत्व के उलझे सवाल!

2019 से 2021 तक मात्र दो वर्षों में 13.13 लाख महिलाओं का गायब होना बेहद शर्म की बात है। अब ये महिलाएं अपने प्रेमी के साथ भागीं या फिर उनका अपहरण किया गया और बलात्कार करके मार दिया गया? कितनों को वैश्या वृत्ति में धकेल दिया गया होगा। कितनों को विदेश में बेच दिया गया होगा या फिर उनके अंग निकालकर बेच दिए गए होंगे। तमाम चिंताएं संभव हैं और हमारे देश की पुलिस का हाल यह है कि मिसिंग का केस दर्ज कर खामोश बैठ जाती हैं। ढूंढने की कोशिश ही नहीं करती। याद करें मणिपुर में सामूहिक बलात्कार की घटना को जो प्रकाश में एक वीडियो वायरल होने के बाद सामने आई। उस पर सवाल उठने पर मणिपुर की पुलिस और खुद सरकार की बेहयाई वाला उत्तर यहां तो हर रोज ही ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। सरकार का कर्तव्य है अपने नागरिकों की रक्षा करना और यह कार्य ईमानदार पुलिस ही कर सकती है। पुलिस यह कहकर पल्ला झाड़ लेती है कि वह हर जगह मौजूद नहीं रह सकती लेकिन अपराधियों के मन में कानून का भय तो ला ही सकती है लेकिन नहीं करती पुलिस। जब दिन भर में हजार रूपए ऊपरी कमाने का भाव हो पुलिस में तो वसूली से उसे फुरसत कहां से मिल सकती है। गुजरात जो देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का गृह प्रदेश है। वहां से साल में चालीस हजार महिलाओं के गायब होने की रिपोर्ट बेहद शर्मनाक है।यूं तो यही हाल पूरे देश का है। महिलाओं के गायब होने का जो डाटा सामने आया है इसके अलावा तमाम महिलाएं गायब हुई हो सकती हैं क्योंकि लोकलाज के भय से तमाम महिलाओं, युवतियों यहां तक कि नाबालिग मासूम बच्चियों को भी गायब कर दिया जाता है।दो वर्ष में तेरह लाख से अधिक महिलाओं का गायब होना हमारे देश की सरकारों और पुलिस पर कलंक है। निश्चित ही हमारे देश की कानून व्यवस्था बेहद खराब है। नेता कुर्सी बचाने और दोबारा कुर्सी पाने की जुगत करते रहते हैं। पुलिस वसूली में। असली मुलजिम को पैसे लेकर छोड़ देती है और किसी निरपराध को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। गरीब आदमी वर्षों जेल के सीखचों में पड़ा रहता है। ट्रायल वर्षो तक नहीं हो पाता। ऐसे में दस पंद्रह वर्ष जेल में रहने वाला न्यायालय से बेकसूर करार दिया जाता है। दुर्भाग्य वश हमारे देश में बेकसूर जेल में कई कई बिताने के बाद मुवावजे का कोई विधान नहीं है। हमारी सरकारें इतनी निष्ठुर और अमानवीय हैं जो बेकसूरों को मुवावजा देने जैसे कानून नहीं बनाती। सच तो यह है कि हमारे देश में पुलिस कानून और ट्रेनिंग अंग्रेजी शासन की है जो शास्ता पर शासन के लिए बनाए गए थे। यह देश का दुर्भाग्य है कि आज तक पुलिस विभाग के लिए कोई नया कानून बनाया या संशोधित नहीं किया जाता। सबसे बड़ी दुखद बात है कि नेताओं की सुरक्षा में कमांडो रखे जाते हैं तो दूसरी तरफ आबादी और पुलिस की संख्या बेहद काक है अपने देश में।जितनी संख्या है भी तो उसका तिहाई भाग कथित जनसेवकों की सुरक्षा में लगा दी जाती है।यहां सवाल यह है कि चुनाव लड़ने तक किसी भी प्रत्याशी को सुरक्षा चिंता नहीं होती तो चुनाव जीतने के बाद सुरक्षा चिंता क्यों होती है। ईमानदार व्यक्ति कहीं भी अकेला जाता है, आता है उसे कोई खतरा नहीं लगाता लेकिन क्रिमिनल्स बिना सुरक्षा के घर से बाहर नहीं निकलते तो क्या हमारे प्रतिनिधि जनसेवक होने की जगह कुछ और हो जाते हैं जो उन्हें डर लगने लगता है?अगर हमारा प्रतिनिधि ईमानदार होगा तो मंत्री बनने के बावजूद सुरक्षा की चिंता नहीं करता। जॉर्ज फर्नांडीस केंद्रित मंत्री थे लेकिन जब वे अपने क्षेत्र में जाते थे तो कोई प्रोटोकाल और सुरक्षा नहीं लेते थे। निर्भय होकर अपने क्षेत्र की जनता से मिलाकर सुख दुख बांटते थे। राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा में जिस तरह आम उनता से मिलकर उसकी समस्या सुनते थे। गले लगाते थे। लाखों लोगों की भीड़ उनके स्वागत में इकट्ठा होती थी। आज भी चुनाव प्रचार में वैसी ही भिड़ दिखाई देती है लेकिन प्रतिनिधि और कांग्रेस का बड़ा नेता होने के बावजूद उन्हें अपने प्राण की चिंता नहीं है। ज्ञातव्य है न्याय यात्रा के अंतिम समय महाराष्ट्र पुलिस को राहुल गांधी के ऊपर आतंकी हमले का इनपुट मिला था लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित नहीं कर जाता दिया कि प्रतिनिधि यदि ईमानदारी से जनता की सेवा करता होगा तो उसे अपने प्राणों की चिंता नहीं होगी

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