निष्पक्ष रूप से देखें तो हमारे देश में सब कुछ बेलगाम हो चुका है। न कोई नियम न कोई सिद्धांत। बस चल रहा सबकुछ राम भरोसे। न्यूयार्क टाइम्स के संपादक ने भारत प्रवास से लौटने के बाद लिखा था, भारत जाकर मैं आस्तिक हो गया। वहां सबकुछ राम भरोसे ही हो रहा है। एडिटर का कथन आज भी भारतीय परिप्रेक्ष में सच साबित हो रहा है। देश में हिंदू मुस्लिम और जाति जाति का राजनीतिक खेल चल रहा बदस्तूर। मनमाने ढंग से नोटबंदी या बदली की जाती है। हर बार कालेधन को बाहर लाने की बात होती है लेकिन कलाधन बाहर कैसे आए जब अपने वादे से मुकरकर स्विस बैंक में जमा धन काला नहीं सफेद है,सरकार खुद कहे। फिर ढोंग करने की जरूरत क्या? दो हजार की नोट बदलने की अवधि बढ़ा दी गई। दो हजार की करेंसी छापने में 4.19 रुपए प्रति करेंसी लगते हैं। पांच सौ के 3.09 रुपए और हजार के 3.59 रूपये। अब नोट बंदी में जल कालाधन बाहर नहीं आता तो जनता के करोड़ों रुपए करेंसी प्रिंट के बरबाद क्यों किया जाए? कोई भी नेता अपने राज्य में मनमाने ढंग से राष्ट्रीय हित सोचे बिना जाति वादी स्वार्थ पूर्ण राजनीति साधने के लिए जातिगत जनगणना कराए और कहा जाए जिसकी जितनी आबादी उतना हक। अगर सवर्ण राष्ट्र हित में परिवार नियोजन के हम दो हमारे दो नहीं मानता तो आज उसकी भी आबादी में योगदान पचास प्रतिशत हक पचास प्रतिशत होता। राष्ट्रहित में सवर्णों ने अपना अहित कर लिया और जिन्होंने राष्ट्रहित नहीं सोचकर आबादी बधाई, देश के लिए संकट खड़ा किया उन्हें हक चाहिए। उलटी गंगा बहाने की कोशिश क्यों? राष्ट्र के लिए योगदान क्यों नहीं मानक बने? उत्तर प्रदेश में बिजली बिल बनाने वाले मनमाने बिल बना रहे। जीरो बिल का अगले महीने पांच हजार बनाया जा रहा। लोड बढ़ाने के लिए कांप्रोमाइज करने की सलाह कर्मी दे रहे। उच्चाधिकारी अनभिज्ञ। सरकार के कानों पर जू नहीं रेंग रही। राष्ट्रीय राजमार्ग पर गढ़े तलाशे जा रहे तो एक ही रोड पर कई जगह टॉल टैक्स भी वसूले जा रहे। एक महिला की मौत पर संजय गांधी अस्पताल में ताले लगाने के बाद लाइसेंस रद्द किए जा रहे तो वहीं महाराष्ट्र के नांदेल में चौबीस घंटे में 24 मरीजों की मौत के बाद औरंगाबाद के सरकारी अस्पताल में चौबीस घंटे में 14 मरीजों की मृत्यु पर अस्पताल में ताला लगाने वाले मौन साध लिए हैं। जबकि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में डबल इंजन सरकारें हैं। फिर यह भेदभाव क्यों? बंद करो न दोनो अस्पताल। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को गोदी मीडिया बनाने वाली सरकार के लिए सरकार और देश का सच बताने वाले पत्रकारों के यहां छापेमारी सुनहरी बन गई है। चुनाव आते ही केंद्र की बीजेपी सरकार के लिए विरोधी पत्रकारों की गिरफ्तारी का मौसम गुलाबी हो गया है। गृह मंत्रालय के अधीन दिल्ली पुलिस जिसने यौन शोषित महिला पहलवानों को धरना स्थल से घसीट घसीट कर उठा फेकने का विश्व में कीर्तिमान स्थापित किया है के द्वारा तीन पत्रकारों भाषा सिंह, उर्मिलेश और अभिसार शर्मा को गिरफ्तार कर लिया। तीनों सुप्रसिद्ध पुराने पत्रकार सरकार से हमेशा सवाल पूछते रहे हैं। भाषा ने ट्वीटर पर लिखा मेरा आखिरी ट्वीट है। मोबाइल दिल्ली पुलिस उठा ले गई। ऐसी ही सूचना उर्मिलेश ने भी दी है। बहुत समय से अभिसार शर्मा के पीछे पड़ी बीजेपी सरकार ने इनपर पहले चीन से फंडिंग के आरोप लगाए थे। उन्होंने लिखा है दिल्ली पुलिस ने तीन अक्टूबर को उनके आवास पहुंचकर उनका लैपटॉप और मोबाइल छीन लिया। इसके बाद तो सरकार उन पत्रकारों को सबक सिखाने पर आमादा हो गई लगती है। न्यूज क्लिक बेब पोर्टल से जुड़े सौ स्थानों पर जुड़े पत्रकारों के यहां दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने धावा बोल दिया जिनपर चीन द्वारा फंडिंग का आरोप लगाया गया है मगर कहीं पे निगाहें वाली बात है। बीजेपी सरकार उन पत्रकारों को दबाव बनाकर अपने पक्ष में लाना चाहती है जिनसे इंडिया गठबंधन की बातें जनता तक नहीं पहुंचे। छापे और गिरफ्तारी उन्हीं पत्रकारों के यहां हो रही है जिन्होंने गोदी मीडिया बनने से इंकार कर दिया था। आगे आगे देखिए होता है क्या? रविश कुमार जैसे तमाम पत्रकारों पर भी झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें भी कल गिरफ्तार कर लिया जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।