
भारत की कोख से ही निकलने वाले दोनों देश पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं। भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक स्थितियां-परिस्थितियां भी समान हैं। गरीबी से तीनों राष्ट्र जूझ रहे हैं। तानाशाही तीनों में चल रही है। पाकिस्तान में तो कहने के लिए लोकतंत्र है, वहां की आईएसआई और सेना ही देश की शासक है। अमेरिकी राष्ट्रपति और ‘विश्वगुरू’ मोदी के माई डियर फ्रेंड ने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुनीर को व्हाइट हाउस में निमंत्रित किया। भारत और पाकिस्तान को एक पलड़े में रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को भी फोन पर आने को कहा था, लेकिन अच्छा किया कि नहीं गए। यही काम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के अमेरिका में जाने के बाद अटलजी को कहा था। पाकिस्तानी पीएम बैठे हैं, आप भी आ जाएं। अटलजी ने दो टूक उत्तर दिया। जब तक हमारी एक इंच भूमि भी पाकिस्तान के कब्जे में है, मैं वार्ता नहीं कर सकता। बांग्लादेश में आम चुनाव का सभी विपक्षी दलों ने बहिष्कार किया था। तब चुनाव आयोग और बांग्लादेश की पीएम हसीना ने साठ-गांठ करके बेइमानी से चुनाव जीता। छात्र आंदोलन स्वतंत्रता सेनानियों और उनके रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में तीस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के विरोध में शुरू हुआ। परिणाम दुनिया ने देखा कि बेइमानी से चुनाव जीतने वाली शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ने को बाध्य होना पड़ा। कमोबेश स्थितियां और परिस्थितियां भारत में भी वैसी हैं। हरियाणा चुनाव में ईवीएम से वोट बढ़ाकर चुनाव जीती थी बीजेपी, जबकि जनता बीजेपी के खिलाफ थी। मतगणना के समय अन्य ईवीएम 70 प्रतिशत चार्ज थीं, जिसमें कांग्रेस जीत रही थी, परंतु 99 प्रतिशत चार्ज तमाम ईवीएम कैसे और कहां से आई, जिसमें 90प्रतिशत वोट बीजेपी को मिले और वह जीत गई? निश्चित ही चुनाव आयोग ने ईवीएम बदले थे। महाराष्ट्र की जनता भी बीजेपी के खिलाफ थी, लेकिन अंतिम समय में सिर्फ एक घंटे में 76 लाख वोट पड़ना कैसे संभव हो सकता था? मध्यप्रदेश में ईवीएम मशीनें बीजेपी नेता की गाड़ी में रात को पकड़ी गईं, लेकिन चुनाव आयोग चुप रहा, कोई एक्शन नहीं लिया। राजस्थान में चुनाव आयोग के नियमों के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी ने पुलवामा में शहीद होने वाले जवानों के नाम पर खुलेआम वोट मांगे। चुनाव आयोग खामोश रहा, कोई कार्रवाई नहीं की। दिल्ली चुनाव में भी बीजेपी पदाधिकारियों और मंत्रियों के घर एकाएक सैकड़ों वोट बढ़ा दिए गए, आम आदमी पार्टी के हजारों वोटरों के नाम काटे गए। चुनाव आयोग के अलावा किसकी जिम्मेदारी होगी? नतीजा हुआ- दिल्ली में बीजेपी जीती और सरकार बनाई। अब बिहार में SIR के नाम पर लाखों वोटरों के नाम काट दिए गए। तमाम वोटर्स जीवित हैं, जिनके पास वोटर आईडी भी है, लेकिन सूची में उनके नाम नहीं हैं। पहले विपक्षी नेता, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट्स और तमाम समाजसेवी संस्थाएं मिलकर ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग देशव्यापी ढंग से कर चुके हैं, लेकिन चुनाव आयोग अपनी हठ पर अड़ा रहा। अधिसंख्य वोटरों की मांग ठुकरा दी गई। चुनाव आयोग से पांच ईवीएम मांगे गए, लेकिन पहले स्वीकृति देने के बाद मांग करने वाले सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट्स को पुलिस द्वारा रोककर चुनाव आयोग कार्यालय जाने नहीं दिया गया। अब राहुल गांधी, कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष, ने बेंगलुरु के एक विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की सूची की पड़ताल छह महीने में कराकर घोषणा की कि एक लाख से ऊपर मतदाताओं के नाम एक विधानसभा में ही काट दिए गए। उन्होंने चुनाव आयोग से डिजिटल कॉपी देने की मांग की, जिस पर उल्टे चुनाव आयोग उनसे हलफनामा मांग रहा है। अगर राहुल गांधी झूठ बोल रहे, तो वे जो एक घंटे से अधिक समय तक पत्रकारों के सामने तमाम मतदाताओं के प्रमाण दिखा रहे थे। जिनके नाम बेंगलुरु ही नहीं, बनारस और लखनऊ पते पर भी वोटर हैं। वह पूरी तरह सामने आ चुका है। प्रमाण को सारी दुनिया ने देखा-सुना। लेकिन चुनाव आयोग डिजिटल कॉपी देने से इनकार करके साबित कर रहा है कि उसने वोटों की चोरी की है। यही नहीं, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार जैसे कई राज्यों की वेबसाइट ही बंद कर दी। यही नहीं, चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट से डिजिटल कॉपी ही हटा दी है, जिससे आरोप की सत्यता से इनकार नहीं किया जा सकता। स्मरणीय है, लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने सात करोड़ वोट बढ़ा दिए थे। मतदान का प्रतिशत, जो 72 घंटे के भीतर आसानी से दिया जा सकता था, देने में चौदह दिन लगा दिए। इसी तरह वीवीपैट की हर चुनाव क्षेत्र में गणना, ईवीएम के वोटों की गणना से मिलान नहीं करके सिर्फ एक-दो बूथों पर करके गैरजिम्मेदारी दिखाई। शक अब यकीन में बदलने लगा है। अब कोई भी खुलेआम कह सकता है कि चुनाव आयोग ने वोटों की चोरी की है। चुनाव आयोग खुद को ईमानदार और राहुल गांधी को झूठा प्रचार कर जनता को भ्रमित करने वाला बता रहा है। अगर राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं, जो प्रमाण उन्होंने प्रजेंटेशन देते समय दिखाए, यदि वे गलत और झूठे हैं तो चुनाव आयोग की बदनामी हो रही है। चुनाव आयोग का फ़र्ज़ बन जाता है कि वह सुप्रीम कोर्ट में मानहानि का दावा करे, लेकिन चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट जाना नहीं चाहेगा, क्योंकि तब राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करेंगे कि उन्हें हार्ड कॉपी दिलाई जाए। सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई में जरूर आदेश देगा चुनाव आयोग को। इसी डर से चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराने से पीछे हट रहा है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी का भी चैन चुरा लिया होगा, क्योंकि राहुल गांधी सीधा आरोप लगा रहे हैं कि वे भी वोटों की चोरी से ही वाराणसी चुनाव जीते हैं। बनारस में लोकसभा की मतगणना के समय तमाम राउंड में मोदी हार रहे थे कांग्रेस प्रत्याशी के सामने, फिर एकाएक कैसे जीत गए जबकि बनारस में हर पांच में से तीन आदमी उनके खिलाफ है? इसे सर्वे द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है। चुनाव आयोग अगर ईमानदार बनने की कोशिश करता है, तो उसे डिजिटल वोटर लिस्ट देने में ऐतराज क्यों हो रहा है? उसने कई राज्यों की वेबसाइट बंद क्यों कर दी है? डिजिटल कॉपी क्यों हटा दी? ये सारे सवाल देश-विदेश के लोगों के जेहन में जरूर उठते होंगे। बांग्लादेश में चुनाव आयुक्त को हटा दिए जाने के बाद, वहां की जनता ने बेइमानी करके शेख हसीना की पार्टी को जीत दिलाने के कारण पकड़कर बहुत मारा-पीटा है। कहीं भारत में भी ऐसा न हो जाए, क्योंकि चुनाव आयोग के खिलाफ अब पूर्व चुनाव आयुक्त भी खुलकर सामने आए हैं। मुद्दा चुनाव आयुक्तों के इस्तीफे का भी उठेगा। संभव है, मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो उन इस्तीफा देने वाले चुनाव आयुक्तों को भी तलब करके, इस्तीफा देने के लिए शपथपत्र देकर कारण बताना होगा। चुनाव आयोग का कर्तव्य है- निष्पक्ष, पारदर्शी और ईमानदार चुनाव कराना। अगर मामला सुप्रीम कोर्ट गया, तो चुनाव आयुक्तों को बताना होगा कि वोट की चोरी वे खुद कर रहे थे या किसी के दबाव में? चुनाव आयोग और बीजेपी सरकार की मिलीजुली साजिश का नमूना है वोट चोरी। राहुल गांधी ने जिस तरह चुनाव आयोग द्वारा वोट चोरी का खेल पकड़ा है, उससे देशवासियों का उन्हें पूरा जनसमर्थन मिल रहा है। दूसरी तरफ, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देकर कहा है कि बिहार से साठ लाख वोटरों के नाम काटने का कारण नहीं बताएगा, न लिस्ट ही साझा करेगा। इसका अर्थ- वोट चोरी का सबूत पेश नहीं करेगा। यह तो देश के सर्वोच्च न्यायालय का खुला अपमान है। चोरी और सीनाजोरी- माल चुराया है, लेकिन नहीं बताएंगे कौन-कौन सा माल चोरी किया है। शायद चुनाव आयोग भूल गया है कि वह कानून और न्यायालय से ऊपर नहीं है।
किरकिरी होती देख संभव है, चंद समय में ही एक और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसा अभियान शुरू कर दे सेना, जैसा कि सेनाध्यक्ष ने घोषणा की है। शीघ्र ही युद्ध करना पड़ सकता है। हमें तैयार रहना है। चुनाव जीतने और वोट चोरी से देश का ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी सरकार सेना को पाकिस्तान पर सीमित हमला करने का आदेश दे सकती है। ऐसे में देश को जल्दी ही एक और युद्ध झेलने और परिणाम के लिए तैयार रहना होगा।