
राहुल गांधी की मणिपुर से भारत जोड़ों न्याय यात्रा का आगाज भी नहीं हुआ था कि बीजेपी की प्लान के अनुसार मिलिंद देवरा ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर शिंदे का दामन थाम लिया जिसे गोदी मीडिया उछालने में लग गई ताकि राहुल गांधी की न्याय यात्रा को कवरेज न मिले। मिलिंद अपने पिता की जमीन पर खड़े थे। पिछले लोकसभा चुनाव में तीन लाख वोटों से हारे थे। कहा, विकास के साथ हैं। अपने विकास के साथ। जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीस विधायकों के साथ बीजेपी का दामन थामा था। कांग्रेस की सरकार गिरा दी। आर पी एन सिंह, जितेंद्र प्रसाद जैसे लोग भी अपने पिता की जमीन पर खड़े थे। यूपीए 2 में सभी मंत्री बनाए गए थे तो नाइंसाफी कैसे हुई? कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे तमाम कांग्रेस छोड़ने वालों का निहित स्वार्थ। ताज्जुब कि गांधी परिवार इन पर भरोसा करता रहा। एक कांग्रेसी हैं प्रमोद कृष्णन जो सांसद या विधायक नहीं बन पाने से स्वार्थ सिद्धि नहीं होने पर गाहे बेगाहे कांग्रेस की बुराई करते रहते हैं। कांग्रेस उन्हें निकाल फेकने की हिम्मत नहीं जुटाती। एक और है वंशवादी पायलट जो बीस सांसदों को लेकर गुरुग्राम जा पहुंचे थे लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी चाल खत्म कर दी थी। अशोक गहलौत सुलझे नेता हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हार का श्रेय कमल नाथ को जाता है। खुद को तीस मार खां समझ बैठे थे। मुगालता था उन्हें कि कांग्रेस को जिताएंगे।
राहुल गांधी की यात्रा में दानिश अली शामिल हुए। बीएसपी के सांसद रहे जिन्हें निकाल दिया गया। गोदी मीडिया में उनकी चर्चा नहीं होने से एक्सपोज हो गई। बस मिलिंद देवरा के इस्तीफे से कांग्रेस को झटका नाम से कसीदे पढ़ते रहे।गोदी मीडिया बीजेपी की प्लानिंग के अनुसार चलती है इसलिए न्याय यात्रा का कवरेज नहीं करेगी। तय है।
परंतु राहुल गांधी जो न्याय यात्रा पर मणिपुर से निकले हैं, वही मणिपुर जहां साल भर से सामूहिक हत्याएं, बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। बीजेपी की डबल इंजन सरकार खामोश है क्योंकि वहां लोकसभा की मात्र दो सीटें हैं जिसका महत्त्व बीजेपी के लिए नहीं है परंतु राहुल गांधी को बिन मांगे एक सलाह है। अपनी छवि सुधारने के बाद जब रात्रि विश्राम करें तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के विषय में जरूर सोचें। कमल नाथ जैसे बुजुर्गों को सलाहकार कमेटी में डाल दें जो कांग्रेस की नई सड़क पर फर्राटा भरने से रोकते हैं। इंडिया गठबंधन में भी आल इज ओके नहीं है। वेस्ट बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र में सीटों का पेंच फसा हुआ है। लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त शेष नहीं है। राहुल गांधी ने कांग्रेस को नहीं सुधारा और इंडिया गठबंधन को सीरियसली नहीं लिया जैसा आरोप गठबंधन के नेता पांच विधानसभाओं के चुनाव में राहुल गांधी की व्यस्तता से इंडिया गठबंधन को आगे नहीं बढ़ा सके थे। यदि कांग्रेस को नहीं सुधारा और इंडिया गठबंधन पर ध्यान नहीं दिया तो फिर लोकसभा में पचास सीटों पर सिमट जाएगी कांग्रेस। जबकि जनता एक मजबूत विपक्ष चाहती है जो सफल लोकतंत्र के लिए भी अनिवार्य शर्त है। बीजेपी के पास मीडिया की ताकत है जिसके भरोसे बीजेपी कांग्रेस और राहुल की छवि को बदनाम करती रहती है साथ ही आईटी सेल और इलेक्ट्रोरल बॉन्ड से आए अरबों रूपए की ताकत है। साथ ही ईवीएम भी जिसके सहारे बीजेपी जीतती रहती है। मोदी कभी कहते रहते थे अमेरिका जापान चीन यूरोप जैसे देश में लोग बैलेट पेपर पढ़कर वोट देते हैं जबकि अब मोदी सरकार और चुनाव आयोग ईवीएम को सही बताकर चुनाव में उपयोग कर जीतने की योजना बना चुकी है। राहुल गांधी को तिलिस्म तोड़ने के लिए आगे आना होगा। कांग्रेस में सुधार करना होगा साथ ही इंडिया गठबंधन को मजबूत बनाकर लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना होगा। याद रहे राहुल के सामने अर्थ और संगठन की समस्या है। एक बार अगर उन्होंने पार्टी को शुद्ध कर लिया। सुधार कर लिया और इंडिया गठबंधन को भी मजबूती दे सके तो दिल्ली दूर नहीं रहेगी। एक के खिलाफ एक प्रत्याशी खड़ाकर बीजेपी को हरा सकते हैं। इसी बीच आचार संहिता लागू होते ही यदि मायावती को इंडिया गठबन्धन में ला सके तो सोने में सुहागा होगा क्योंकि तब साठ बनाम चालीस का मुकाबला होगा।