मुंबई। पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट (कैट) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी कर तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना (सीजेडएमपी) के कार्यान्वयन में गंभीर खामियों को उजागर किया है। यह योजना तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना के तहत अनिवार्य है, लेकिन इसकी अशुद्धियों ने मुंबई और उसके आसपास के कई क्षेत्रों में मैंग्रोव भूमि और तटीय पारिस्थितिकी पर अतिक्रमण की अनुमति दी है। प्रभावित क्षेत्रों में दहिसर, गोरेगांव, चारकोप, माहुल, मानखुर्द, बांद्रा और नेरुल शामिल हैं।
सीजेडएमपी की खामियां और उनके प्रभाव
बॉम्बे हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश गौतम पटेल, कैट ट्रस्टी देबी गोयनका और अन्य विशेषज्ञों द्वारा जारी रिपोर्ट में यह बताया गया कि सीआरजेड अधिसूचना 1991 में लागू हुई थी, लेकिन अभी तक सटीक और प्रभावी सीजेडएमपी तैयार नहीं हो सका है। यह तटीय क्षेत्रों की रक्षा और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और बिल्डरों, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, उद्योगों और शहरीकरण के दबाव ने इस अधिसूचना की उपयोगिता को कम कर दिया है।
मैंग्रोव पर अतिक्रमण और जानबूझकर की गई गलतियां
रिपोर्ट के अनुसार, दहिसर के उत्तान क्षेत्र में 700 हेक्टेयर भूमि को अंतरज्वारीय क्षेत्र के रूप में गलत तरीके से चिन्हित किया गया, ताकि इसे मनोरंजन और पर्यटन विकास क्षेत्र में बदला जा सके। इसी तरह, गोरेगांव के पहाड़ी क्षेत्र में 1996 के बाद से 500 एकड़ घने मैंग्रोव नष्ट कर दिए गए। पर्यावरण मंजूरी प्राप्त करने के दौरान यह तथ्य छिपाया गया कि साइट पर मैंग्रोव मौजूद हैं। हालांकि 2013 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने मंजूरी निलंबित कर दी थी, लेकिन 2018 में इस क्षेत्र का हिस्सा राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और बॉम्बे उच्च न्यायालय को सौंपने के लिए पेश किया गया।
बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) और बाढ़ का खतरा
कैट रिपोर्ट में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के पुनर्ग्रहण का भी जिक्र है। वर्ष 2000 की Google Earth छवियों से पता चलता है कि दक्षिण-पश्चिम भाग को छोड़कर पुनर्ग्रहण शुरू हो गया था, जबकि 2020 की छवियां बताती हैं कि पूरे क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिया गया, जिसमें खाड़ी भी शामिल है। यह पुनर्ग्रहण BKC में बाढ़ की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है।
सरकार की विफलता और पर्यावरण पर प्रभाव
कैट ट्रस्टी देबी गोयनका ने कहा कि सीआरजेड अधिसूचना के अनुसार तटीय क्षेत्रों में प्रस्तावित परियोजनाओं को सीजेडएमपी के आधार पर मंजूरी या अस्वीकृति दी जानी चाहिए। लेकिन पिछले 33 वर्षों में तैयार किए गए तीन सीजेडएमपी गलत और अधूरे हैं। राज्य की नगरपालिकाएं और नियोजन एजेंसियां इस गलत जानकारी का फायदा उठाकर तटीय पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रही हैं।