Tuesday, October 14, 2025
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ब्रिटिश युद्धपोत एचएमएस रिचमंड मुंबई पहुंचा, ‘अभ्यास कोंकण 2025’ बना ऐतिहासिक मील का पत्थर

मुंबई। यूनाइटेड किंगडम का रॉयल नेवी फ्रिगेट एचएमएस रिचमंड शुक्रवार को एक निर्धारित यात्रा के तहत मुंबई बंदरगाह पहुंचा। यह आगमन भारत और ब्रिटेन की नौसेनाओं के बीच हुए द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास “कोंकण 2025” के सफल समापन के बाद हुआ, जिसने दोनों देशों के सैन्य सहयोग और सामरिक साझेदारी में एक नया अध्याय जोड़ा।
अभ्यास कोंकण 2025 का आयोजन भारत के पश्चिमी तट पर 5 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक हुआ। इस बार का संस्करण कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, क्योंकि **पहली बार ब्रिटिश और भारतीय कैरियर स्ट्राइक ग्रुप्स (CSG) ने संयुक्त रूप से समुद्री अभ्यास किया। यूके की ओर से इस अभ्यास का नेतृत्व 65,000 टन वजनी विमानवाहक पोत एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स ने किया जो अब तक का यूके में निर्मित सबसे बड़ा सतही पोत है। जबकि भारतीय नौसेना की ओर से नेतृत्व स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत ने किया। चार दिवसीय इस गहन अभ्यास में दोनों देशों की नौसेनाओं ने समुद्र और वायु क्षेत्र में जटिल सामरिक अभियानों, फायरिंग ड्रिल, पनडुब्बी-रोधी युद्धाभ्यास और विमान संचालन जैसी उच्चस्तरीय गतिविधियों में भाग लिया। यूके के दल में टाइप 45 विध्वंसक एचएमएस डंटलेस, टाइप 23 फ्रिगेट एचएमएस रिचमंड, और अन्य सहयोगी जहाज व सहायता पोत शामिल थे। इन जहाजों ने एफ-35बी लाइटनिंग फाइटर जेट, मर्लिन और वाइल्डकैट हेलीकॉप्टरों के संचालन से उन्नत संयुक्त वायु-समुद्री युद्ध क्षमता का प्रदर्शन किया। वहीं भारतीय नौसेना के युद्ध समूह ने आईएनएस विक्रांत, पनडुब्बियों, वायु यान और सतही लड़ाकू जहाजों के माध्यम से अपनी सामरिक तत्परता और संचालन क्षमता का प्रदर्शन किया। इस बार के अभ्यास में न केवल भारत और ब्रिटेन, बल्कि नॉर्वे और जापान जैसे सहयोगी देशों की भी भागीदारी रही, जिससे यह आयोजन एक बहुपक्षीय सामरिक सहयोग का प्रतीक बन गया। गौरतलब है कि “अभ्यास कोंकण” की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी और यह अब तक दो दशकों से दोनों देशों के बीच समुद्री साझेदारी को गहरा करने का अहम माध्यम बना हुआ है। इसका उद्देश्य अंतर-संचालन, पारस्परिक विश्वास, और उच्च समुद्रों पर समन्वित कार्रवाई की क्षमता को बढ़ाना है। एचएमएस रिचमंड का यह दौरा भारत-ब्रिटेन के बीच सामरिक, तकनीकी और नौसैनिक संबंधों की मजबूती का प्रतीक माना जा रहा है और “कोंकण 2025” को इस द्विपक्षीय सहयोग के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली अभ्यास बताया जा रहा है।

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