
मुंबई। दादर स्थित योगी सभागृह में रविवार को 2482वें ओसवाल वंश महोत्सव और 10वें समाज एकता दिन (स्नेह मिलन) का भव्य आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम अखिल भारतीय ओसवाल जैन महासंघ और मरूधर का तहलका न्यूज़ नेटवर्क द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के कौशल विकास मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा और ऑल इंडिया जैन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (आई.ई.जे.ए) के अध्यक्ष हार्दिक हुंडिया थे। समारोह अध्यक्ष के रूप में गौतमजी बालर ने अध्यक्षता की। कार्यक्रम में कई गणमान्य अतिथि और हजारों ओसवाल बंधु ऑनलाइन और प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित रहे, जिससे सभागार खचाखच भर गया। समारोह की शुरुआत श्री रत्नप्रभसुरीश्वरजी म.साहेब को दीप प्रज्वलन और आरती के साथ समर्पित की गई। मंगलाचरण और भजन के साथ कुर्ला महिला मंडल और भायंदर के संगीतकारों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा समाज सेवा, उद्योग और जैन धर्म प्रचार-प्रसार में अग्रणी बंधुओं को ‘ओसवाल रत्न’ से सम्मानित करना। रमेशजी मुथा (नाकोडा तीर्थ अध्यक्ष), फतेचंदजी राणावत (एफएम ग्रुप डायरेक्टर), और चंदनजी भंसाली (मासमा अध्यक्ष) सहित कई समाज सेवकों को तिलक, हार, साफा, दुपट्टा और मोमेंटो देकर भव्य सम्मानित किया गया। मुख्य वक्ताओं में जगदीश मेहता, पोपट बाफना, प्रकाश चौपड़ा, सुरेश पूनमिया, भरत परमार, शांतीलाल बोकड़िया और अन्य ने जैन समाज के उत्थान, शिक्षा, डिजिटलीकरण और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी। मंच संचालन दिल्ली एफएम आकाशवाणी के दिलीप जैन ने किया। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को बल देते हुए अशोक मेहता ने गांवों को प्लास्टिक मुक्त करने की मुहिम पर प्रकाश डाला। साथ ही, ओसवाल समाज के युवाओं और भामाशाहों को एकजुट होकर धर्म रक्षा और सामाजिक सुधारों में सक्रिय भागीदारी का संदेश दिया गया। हार्दिक हुंडिया ने मराठी में समाज को संबोधित करते हुए ओसवालों के गौरवशाली इतिहास और सामाजिक योगदान को रेखांकित किया। उनकी धर्मपत्नी सुनिताजी हुंडिया सहित कई महिलाओं का भी बहुमान किया गया। कार्यक्रम के अंत में जगदीश मेहता ने पंथवाद छोड़कर ‘एक जैन समाज’ की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का आह्वान किया। साथ ही, राजू भंसाली द्वारा लिखी गई स्वमूत्र चिकित्सा पर आधारित पुस्तक का वितरण भी किया गया। समारोह का समापन प्रवीण मेहता के आभार प्रदर्शन और स्वामी वात्सल्य के साथ हुआ। यह आयोजन न केवल समाज के एकीकरण का प्रतीक बना बल्कि जैन संस्कृति, परंपरा और सेवा की प्रेरणा को भी पुनः जागृत कर गया।