
मुंबई। सत्र न्यायालय ने चेंबूर निवासी 21 वर्षीय युवक आकाश फुलवारिया को ज़मानत देने से इनकार कर दिया है, जिस पर साइबर धोखाधड़ी से जुड़ी रकम का एक हिस्सा अपने बैंक खाते में प्राप्त करने का आरोप है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने बैंक खाते का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों के लिए करने की अनुमति देने के बाद जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। सत्र न्यायाधीश ए.वी. गुजराती ने अपने आदेश में कहा- नागरिकों में यह गलत धारणा बनती जा रही है कि ऐसे आरोपी जघन्य अपराधों में शामिल होकर भी अदालत से नरमी की उम्मीद कर सकते हैं, जो वास्तव में दुखद है। साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और निर्दोष लोग अपनी मेहनत की कमाई गँवा रहे हैं। इसलिए हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह अपने बैंक खाते का दुरुपयोग किसी अन्य व्यक्ति को न करने दे। मामले के अनुसार, शिकायतकर्ता राहुलकुमार नाइक ने दक्षिण क्षेत्र साइबर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्हें फेसबुक और व्हाट्सएप पर संध्या अग्रवाल नाम की एक महिला ने निवेश के नाम पर ठगा। महिला ने 31 मार्च से 3 जुलाई के बीच उनसे संपर्क कर उच्च रिटर्न का लालच दिया और लगभग 1.16 करोड़ रुपये निवेश कराने के बाद गायब हो गई। जांच में सामने आया कि इस रकम में से 1.05 लाख रुपये फुलवारिया के बैंक खाते में ट्रांसफर किए गए थे। फुलवारिया ने दावा किया कि उन्हें इस लेनदेन की जानकारी नहीं थी और उनका इस धोखाधड़ी से कोई संबंध नहीं है। लेकिन अभियोजन पक्ष के वकील रमेश सिरोया ने इस तर्क का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी ने अपनी खाता जानकारी साझा कर अपराधियों की मदद की। अदालत ने आदेश में कहा- यह निर्विवाद है कि आरोपी ने अपने खाते में धनराशि प्राप्त की थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि उसने अपराध को अंजाम देने में सहायता की और वह फरार आरोपियों की दुर्भावनापूर्ण मंशा से वाकिफ था। उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया एक मजबूत मामला बनता है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि समाज में ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाना आवश्यक है ताकि लोग अपने बैंक खातों को आपराधिक गतिविधियों में इस्तेमाल होने से रोकने की जिम्मेदारी महसूस करें।