उत्तर प्रदेश और बिहार सबसे घनी आबादी के राज्य हैं लेकिन सबसे अधिक आईएएस इन्हीं दो राज्यों से आते हैं। उत्तर प्रदेश प्रथम, बिहार द्वितीय, राजस्थान तृतीय और तमिलनाडु चतुर्थ स्थान पर आता है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का 75 घरों का गांव आईएएस गांव के नाम से जाना जाता है। यहां के प्रायः हर घर से दो चार आईएएस ज़रूर हैं। सन , 2015 की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में उत्तर प्रदेश के 717, बिहार के 452 , राजस्थान के 322, तमिलनाडु के 318 और छठे स्थान पर महाराष्ट्र के आईएएस रहे। ज्ञात हो कि भारत में कुल 4926, आईएएस में यह संख्या विभिन्न राज्यों से रही। उत्तर प्रदेश सहित बिहार राजस्थान तमिलनाडु महाराष्ट्र जैसे राज्यों के आईएएस आने वाले बिलकुल सामान्य घरों से आते हैं। चंद परिवार मध्यम वर्ग के रहते हैं। कोई रिक्शा चालक, तो कोई सब्जी विक्रेता, कोई घरों में झाड़ू लगाने पोछा बर्तन करने, किसान परिवार से आने वाले प्रतियोगी सफलता का डंका बजाए रखते हैं। कोई अपने मृत पिता तो कोई मां के अरमानों को पूरा करने का संकल्प लेकर आईएएस की परीक्षा की तैयारी करता है। तमाम ऐसे गरीब परिवार के प्रतियोगी होते हैं जो मंहगे ट्यूशन क्लासेस ज्वाइन करने में असमर्थ रहकर घर पर ही श्रम करके सफल होते हैं। यूपीएससी की परीक्षाएं तीन चरण में होती हैं। प्राथमिक,फाइनल और इंटरव्यू तीनो परीक्षा में पाए अंकों के आधार पर ही रैंक बनाए और विभिन्न पदों पर नियुक्ति की जाती है। अंग्रेजों के समय से ही आईक्यू वाले मेधावी ही आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं।भ्रष्टाचार का कारण भी यही है क्योंकि आई क्यू वाले परिवारवादी और धन के लोभी होते हैं। एनडीएस के अनुसार प्रशासनिक पदों पर ईक्यू अर्थात भावनात्मक क्षमता के लोग ही सत्पात्र होते हैं। जो बेहद ईमानदार,जनता की तकलीफ, दर्द की अनुभूति कर सकते हैं। साथ ही न्याय भी। सबसे बड़ी बात यह कि लड़कियां अब ज्यादा टॉप अथवा बेहतर रैंकिंग लाने में सफल होती हैं। 2022 की आईएएस परीक्षा में क्रमशः टॉपर रहने वाली लड़कियां इशिता किशोर, गरिमा लोहिया, उमा हराती और स्मृति मिश्र हैं। आज देश की बेटियां हरेक क्षेत्र सेना, सिविल सेवा, उद्योगों में अपने नाम रोशन करने में पीछे नहीं हैं लड़कों से। इन्हें सम्मान और न्याय देने की जरूरत है जैसा कि आज एक महीने से ओलंपिक खेलों में गोल्ड लाने वाली महिला रेसालरो के साथ न्याय तो बहुत दूर उनकी शासन और प्रशासन सुन ही नहीं रहा। उनका आरोप है कि आरोपी बृजभूषण शरण सिंह जो निवर्तमान कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष, बाहुबली सांसद हैं के द्वारा महिला पहलवानों का दैहिक शोषण किया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एफ आई आर तो लिखा गया लेकिन नाबालिग रेसलर के आरोप पर एफ आई आर के तुरंत बाद गिरफ्तारी का कानून होने के बाद आरोपी तय कर रहा कि जांच कैसे हो। नार्को टेस्ट अपना करने की शर्त रखता हो कि महिला रेसालरो का भी नार्को टेस्ट हो। जब कि कानून आरोप लगाने वाली पीड़ित महिलाओं के नारको टेस्ट की अनुमति नहीं देता।महिला ओलांपियनस ने पहले ही अपने सहित आरोपी का नार्को टेस्ट सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में लाइव किया जाए क्योंकि उन्हें शासन और प्रशासन पर कत्तई यकीन नहीं है कि वह उन्हें न्याय देगा। नारको टेस्ट लाइव नहीं होने पर प्रशासन गलत रिपोर्ट तैयार कर आरोपी को बचाने की कोशिश कर सकता है प्रशासन। ऐसी स्थिति में भले ही लड़कियां आई ए एस टॉप कर जाएं लेकिन बालाशली पुरुष समाज क्या उन्हें वह आदर सुरक्षा और सम्मान देगा जिसकी वे असली हकदार हैं??