
भारत! आजकल भारत में प्रेस की आजादी इतनी मजबूत हो गई है कि पत्रकारों को देखकर लगता है, वे कोई वीआईपी गेस्ट हैं, बस थोड़ी सी ‘सुरक्षा’ की जरूरत है! संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) ने तो बोलने की आजादी दी है, लेकिन असल जिंदगी में यह आजादी कुछ इस तरह काम करती है जैसे ट्रैफिक सिग्नल,हरा दिखता है, लेकिन क्रॉस करो तो पुलिस की लाठी मिलती है। राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर हर साल भाषण होते हैं, “प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ! लेकिन चौथा स्तंभ इतना कमजोर हो गया है कि हवा का झोंका भी गिरा देता है। आइए, आज कलम की नोक से इस ‘आजादी’ की पोल खोलते हैं, जहां पत्रकार सुरक्षित हैं, कानून व्यवस्था मजबूत है, और सब कुछ ‘परफेक्ट’ है! सबसे पहले बात पत्रकारों की सुरक्षा की। अरे वाह, क्या सुरक्षा है! विश्व प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 150वें नंबर के आसपास घूम रहा है, मतलब, हमसे नीचे सिर्फ वे देश हैं जहां प्रेस को तोप से उड़ाया जाता है। यहां तो बस ‘नरम’ तरीके अपनाए जाते हैं। कोई सच्ची खबर लिखो, जैसे किसी नेता की करप्शन स्टोरी, तो तुरंत यूएपीए, राजद्रोह या आईटी एक्ट की धारा 66ए (जो सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दी, लेकिन पुलिस को कौन बताए) लग जाती है। पत्रकार सुरक्षित हैं न! हां, जेल में! पिछले सालों में दर्जनों पत्रकारों पर हमले हुए ,गोली, लाठी, ट्रक से कुचलना, लेकिन पुलिस कहती है, “जांच चल रही है।” जांच, वो तो सद्दाम हुसैन की तरह लटकी हुई है, कभी खत्म नहीं होती। और अगर पत्रकार महिला हुई, तो सुरक्षा डबल, बलात्कार की धमकी के साथ! प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया चुप, क्योंकि वे तो सिर्फ ‘सलाह’ देते हैं, एक्शन नहीं।पत्रकारों को सुरक्षा गार्ड चाहिए, लेकिन सरकार कहती है, “तुम्हें आजादी है, खुद संभालो! अब आते हैं कानून व्यवस्था पर। वाह, क्या व्यवस्था है! कानून सबके लिए बराबर, अमीर के लिए ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’, गरीब पत्रकार के लिए ‘जेल स्पेशल’। कोई बड़ा घोटाला उजागर करो, तो एफ़आईआर दर्ज होती है , लेकिन आरोपी पर नहीं, रिपोर्टर पर! याद है सिद्धीक कप्पन का केस, उत्तर प्रदेश में किसानों की रिपोर्टिंग करने गया, तो यूएपीए लगा और दो साल जेल। कानून कहता है, “आजादी है,” लेकिन व्यवस्था कहती है, “सत्ता के खिलाफ मत बोलो। धमकियां भिजवाओ। और पुलिस! वे तो ‘निष्पक्ष’ हैं, नेता के इशारे पर डांस करती हैं। प्रेस की आजादी को लेकर आरटीई (राइट टू इंफॉर्मेशन) एक्ट है, लेकिन जवाब मिलता है “फाइल गुम हो गई” या “राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा।” मजाक की हद यह कि कानून व्यवस्था इतनी मजबूत है कि प्रेस को ‘दबाने’ में कोई कमी नहीं, लेकिन अपराधियों को पकड़ने में ‘व्यवस्था’ सुस्त पड़ जाती है! राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो क्या कमाल है! प्रधानमंत्री जी कहते हैं, “मीडिया हमारा मित्र है,” लेकिन मित्रता कुछ इस तरह कि गोदी मीडिया को विज्ञापन की बौछार, बाकी को ‘एंटी-नेशनल’ का तमगा। न्यूज चैनल्स पर डिबेट,”क्या प्रेस को मारना चाहिए ! और एंकर चिल्लाते हैं, “हां!” प्रेस की आजादी विश्व में नंबर वन होती, अगर ‘आजादी’ का मतलब ‘सत्ता की चापलूसी’ होता। लेकिन नहीं, सच्चे पत्रकार जैसे रवीश कुमार या गौरी लंकेश (जिनकी हत्या हो गई) को देखो ,पुरस्कार मिलते हैं विदेश से, भारत में धमकियां। कानून व्यवस्था कहती है, “हम जांच करेंगे,” लेकिन जांच का मतलब है फाइल बंद करना। राष्ट्रीय प्रेस आजादी इतनी ‘सुरक्षित’ है कि पत्रकारों को अब हेलमेट पहनकर रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। कानून व्यवस्था इतनी ‘मजबूत’ कि सत्ता के खिलाफ एक शब्द और तुम ‘देशद्रोही’! लेकिन चिंता मत करो, लोकतंत्र जीवित है, बस प्रेस थोड़ा ‘आईसीयू’ में। अगले प्रेस दिवस पर फिर भाषण होंगे, “प्रेस फ्री है!” हां, फ्री जैसे कैद में बंद चिड़िया उड़ने की आजादी, लेकिन पिंजरे में। जय हिंद, जय प्रेस की आजादी की याद में!




