
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट कर दिया कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को कुनबी जाति प्रमाणपत्र जारी करने के फैसले के खिलाफ दाखिल जनहित याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। अदालत ने कहा कि इन याचिकाकर्ताओं का इस मामले में कोई प्रत्यक्ष हित नहीं है, जबकि असली पीड़ित पक्ष यानी ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों ने पहले ही इस फैसले को चुनौती दी है। उन याचिकाओं पर 22 सितंबर को सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की खंडपीठ ने कहा कि सरकारी फैसले को चुनौती देने का अधिकार केवल प्रभावित पक्ष के पास है, हर किसी के पास नहीं। अदालत ने टिप्पणी की कि कानून में दुर्भावना का मुद्दा केवल वही व्यक्ति उठा सकता है, जो सीधे तौर पर प्रभावित है। अदालत ने जनहित याचिकाओं को खारिज करने का रुख अपनाते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता चाहें तो वे पहले से दायर याचिकाओं में हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर सकते हैं। अगर दूसरी पीठ को उनकी मदद की आवश्यकता होगी तो वह उन्हें सुन सकती है। अब तक इस मामले में तीन जनहित याचिकाएं दाखिल हुई थीं, जिनमें सरकार के आदेश (जीआर) को मनमाना, असंवैधानिक और कानून के विरुद्ध बताते हुए रद्द करने की मांग की गई थी। इसके बाद ओबीसी वर्ग के व्यक्तियों ने भी चार याचिकाएं दाखिल कीं, जिन पर सोमवार को न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी। इस तरह हाईकोर्ट ने संकेत दिया है कि असली कानूनी जंग अब ओबीसी वर्ग की याचिकाओं पर केंद्रित होगी, जिनमें मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने के सरकारी फैसले की वैधता को चुनौती दी गई है।




