Friday, September 5, 2025
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भारतीय एकता का अद्भुत प्रतीक गणेशोत्सव

चारु सक्सेना
भारत जैसे विस्तृत और विविधतापूर्ण देश में गणेशोत्सव एक तरह से सभी भारतीयों को सर्वत्र एक सूत्र में पिरोने में सहायक सिद्ध हुआ है। उत्तर हो या दक्षिण, पूरब या पश्चिम समस्त भारत में गणेशोत्सव को राष्ट्रीय एकता के रूप में मान्यता प्राप्त है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने जिस समय गणेशोत्सव को सार्वजनिक पर्व का स्वरूप देने का प्रयास किया उस समय देश गुलाम था। अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति ने भारतीय समाज को बहुत कमजोर कर रखा था। लोगों में एकता का पूरी तरह अभाव था और छोटी-छोटी बातों के लिए लोग आपस में ही संघर्ष कर रहे थे। राष्ट्र हित या समाज हित गौण हो चुका था। समाज की चेतन शक्ति लुप्त हो चुकी थी। शैव परिवार में एक प्रमुख देवता के रूप में गणेश की पूजा तो प्राचीन काल से बहुत प्रचलित है, परन्तु सार्वजनिक उत्सव और राष्ट्रीय त्यौहार का रूप देने का श्रेय लोकमान्य तिलक को ही है। तिलक ने देश को खंडित होने से बचाने के लिए विवेक और ज्ञान के प्रतीक गणेश जी को सामाजिक एकता का माध्यम चुना। उन्होंने जन-जन में इस बात का आह्वान किया कि जब लोग विवेक और ज्ञान को महत्व नहीं देंगे तब तक उन्हें गुलामी से मुक्ति नहीं मिल सकती। अज्ञान और विवेकहीनता ही उनके सर्वनाश का कारण बना हुआ है। तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश पूजन को सामाजिक उत्सव के रूप में प्रतिष्ठित कराया और उसके माध्यम से छिन्न-भिन्न हो रहे भारतीयों को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया। आज यह उत्सव न केवल महाराष्ट्र में सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, बल्कि समस्त भारत में इसे राष्ट्रीय पर्व के रूप में सम्मान प्राप्त हो चुका है। गणेशोत्सव का महत्व यह है कि इस अवसर पर लोग धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। इस अवसर पर संगीत, भजन, कीर्तन, प्रवचन आदि से सारे देश में अत्यंत सौहाद्र्र का वातावरण बन जाता है और इस प्रकार राष्ट्रीय सद्भाव एवं एकता की भावना को बल मिलता है। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन गणेशजी की पूजा होती है। इस पूजन को विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। इस अवसर पर होली और दीवाली की भांति सारे देश में कुछ समय पहले से ही गणेशोत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है। महाराष्ट्र में ‘गणपति बाप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया’ के नारे से सारा महाराष्ट्र गूंज उठता है। पर्व की तैयारी में हर वर्ग और आयु के लोग शामिल होते हैं। सुबह होते ही लोग नए-नए परिधानों में बाजार जाकर गणेशजी की मूर्तियां खरीदते हैं। बाजारों में गणपति की विभिन्न मूर्तियां मिलती हैं। इन मूर्तियों के आकार कुछ भी हो, लेकिन ये मूर्तियां प्राय: एक सी रहती हैं। इस दिन देश भर में घर-घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। यह मूर्ति घर में कितने दिन रखी जाए यह उस घर की परम्परा पर निर्भर करता है। किसी के घर में डेढ़ दिन, किसी के घर में पांच दिन, किसी के घर में सात दिन, नौ दिन या फिर पूरे दस दिन यानी अनंतचतुर्दशी तक गणपति की मूर्ति रखी जाती है। देश के कुछ हिस्सों में मूर्तियों को लाकर घर में अत्यंत मनोहारी ढंग से सजावट किए जाने की प्रथा है। इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस अवसर पर लगभग हर मोहल्ले में सार्वजनिक गणपति की स्थापना होती है। इसकी मान्यता इस बात से लगाई जा सकती है कि कहीं-कहीं सार्वजनिक गणपति की ऊंचाई सौ फुट तक पहुंच जाती है। कई घरों में गौरी पूजा की भी प्रथा है।

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