देश भर में बिहार के नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराकर बीजेपी को परेशान किया लेकिन देश में उबाल नहीं ला सके। उत्तर प्रदेश और बिहार में जातिवाद अपने चरम पर है। राहुल गांधी ने रैली में स्पष्ट शब्दों में कहा, ओबीसी की जनसंख्या और उनकी भागीदारी कितनी है? कांग्रेस सरकार में आई तो वह सबसे पहले जातिगत जनगणना कराएगी और संख्या के आधार पर उनको शासन में भागीदार बनाएगी। राहुल गांधी का यह गेम प्लान निश्चित ही बीजेपी के शीर्ष नेताओं का सिर दर्द ही नहीं बनेगा, उसे लोकसभा चुनाव में खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। हिंदू और हिंदुत्व का राग आलापकर बीजेपी हमेशा ही हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण करती आई है। बीजेपी को जो जीत मिली उसमे ओबीसी की आबादी 40 प्रतिशत की महती भूमिका रही लेकिन बीजेपी भूल गई ओबीसी को।जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी का नारा बेहद महत्त्वपूर्ण है। इस मुद्दे को अगर लोकसभा चुनाव में आया तो निश्चित ही बीजेपी की फजीहत होगी। संविधान में एससी और एसटी के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। वी पी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को हवा दिया था। तब से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाया जाता रहा लेकिन फिर भुला दिया गया। ओबीसी में अनेक जातियां आती हैं जिनकी संख्या चालीस प्रतिशत के करीब है। बीजेपी को दो दो बार केंद्र में सरकार ओबीसी वर्ग के वोटरों ने बनवाया लेकिन बीजेपी उसकी उपेक्षा करने लगी कारण हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को मीडिया के सहयोग से खूब उछाला जा रहा। संविधान की जगह मनु स्मृति लागू करने की मंशा आरएसएस की है। हिंदू राष्ट्र की भी परिकल्पना आरएसएस की ही है। आरएसएस हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर बेहद उतावला भी है। हिंदू राष्ट्र में मुसलमान सिख बौद्ध जैन बहावी पसमांदा, ओबीसी, एससी, एसटी के लिए कोई भी जगह नहीं है। आरएसएस हिंदुराष्ट्र बनाकर सत्ता को एक दलीय व्यवस्था में रखना चाहता है जिसमें शीर्ष जातियों के ही सारे अधिकार होंगे। मुस्लिमों के प्रति नफरत का इजहार बीजेपी कई मौकों पर किया है। सिखों के गुरुद्वारे को लेकर कहा गया था बीजेपी नेता द्वारा कि ये गुरुद्वारे देश के लिए कलंक हैं। इन्हें तोड़कर मिट्टी में मिलाना होगा। हिंदुओं की जनसंख्या 80 प्रतिशत है जिसमे ओबीसी लगभग 40 प्रतिशत है। इतने बड़े वर्ग के लिए 30 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल बजाने संसद के दोनो सदनों में पारित करा लिया था। वी पी सिंह ने ही ओबीसी का मुद्दा उठाया था, लेकिन महिला आरक्षण बिल में ओबीसी का नाम ओ निशान था ही नहीं। चतुर राजनेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराई। सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट गोपनीय रखने को कहा था। अब राहुल गांधी ने ओबीसी का मुद्दा उठाकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं की पेशानी पर चिंता की लकीरें खींच दी है। राहुल गांधी निश्चित ही इस ओबीसी के चालीस प्रतिशत वोट जो बीजेपी को मिला करते थे और गद्दी दिलाते थे सेंध लगा दी है। महिला आरक्षण बिल में ओबीसी का नाम नहीं होने पर उस समय यह अल्पकालीन मुद्दा उठा जरूर था लेकिन अब राहुल गांधी बेहद परिपक्व राजनेता की भांति ही शतरंज की गोटियां बिठाने में माहिर हो चुके है। बीजेपी द्वारा उन पर पप्पू नाम चस्पा करना बीजेपी को ही भारी पड़ रही है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की रैलियों में भारी भीड़ उन्हें सुनने के लिए आ रही थी जो वोट में कनवर्ट हो गई और दोनों प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार बन गई। भीड़ होने का कारण यह था कि मैन मीडिया यानी इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया में सिर्फ मोदी ही मोदी दिखते रहे हैं। विपक्ष का इंडिया गठबंधन तो दोनों प्रांतों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद गठित हुआ। राहुल ही थे जिन्होंने 16 उन एंकरों का बहिष्कार करने का ऐलान किया था। इसका भी असर पांच राज्यों के चुनाव पर पड़ेगा जो 3 दिसंबर को घोषित होने लगेगा। यदि बीजेपी की सभी चालें नोट शराब बांटने और बीजेपी सरकार की कागजी विकास बताने, ईवीएम में हेराफेरी के बावजूद कांग्रेस की सरकार बन गई तो लोकसभा में इंडिया की जीत का शंखनाद होगा और केंद्रीय सत्ता से बीजेपी बाहर हो जाएगी।