Thursday, November 21, 2024
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एक महान आर्मर का यूं चले जाना

क्रिकेट एक अनिश्चय का खेल है। इसमें कब बाज़ी किसकी ओर पलट जाए, कहा नहीं जा सकता। अच्छे अच्छे शूरमा बल्लेबाज, आतिशी पाली खेलने वाले बल्लेबाजों को शून्य पर आउट होते देखा गया है। गेंदबाजी खासकर स्पिन की जब बात चलती है तो भारत की तिकड़ी बिशन सिंह बेदी की याद जरूर आती है। बेदी पाजी एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी आर्मर गेंदबाजी से अच्छे अच्छे धाकड़ बल्लेबाजों की गिल्लियां बिखेरी हैं। वह महान युग विशन सिंह बेदी का युग था जब भारतीय टीम ने वन डे क्रिकेट में भारत को विश्वकप में पहली जीत 1975 में मिली थी, बिशन सिंह बेदी उस टीम का हिस्सा थे, जो पूर्वी अफ्रीका के विरुद्ध मिली थी। उस मैच में बेदी ने शानदार गेंदबाजी की। उनका स्कोर 12-8-6-1 था।जिसने विपक्षी टीम को 120 रनों पर समेट दिया था। वन डे में 12 ओवर के स्पेल में 8 ओवर मेडन फेंकना बेदी जैसे करिश्माई गेंदबाज के लिए संभव था। अपनी पीढ़ी के बल्लेबाजों के लिए अबूझ पहेली रहे बेदी। उनकी खासियत थी कि जितना ऊंचा हो सके गेंद छोड़ने और उसपर नियंत्रण रखने में बेजोड़ थे बेदी। स्पिन की हर कला में निपुण थे चाहे तेजी से बदलाव करना हो या वैरियेशन।उनकी फ्लाइट ,आर्म बॉल के साथ एकाएक तेज गेंद पर शूरमा बल्लेबाज चकमा खा जाते रहे। एक गेंदबाज ने किस तरह की गेंद पर सर्वाधिक विकेट लेने का रिकार्ड रखा जाए तो बिशन सिंह बेदी का आर्म बॉल के सामने कोई गेंदबाज नहीं टिकता। जब कोई बल्लेबाज हॉबी होना चाहता था इनपर तब पाजी आर्मर गेंद डालने लगते थे। वे अपनी विविध कला से भी विकेट चटकाते रहते। लगभग बारह साल लगातार बेदी ने भारतीय गेंदबाजी का जिम्मा सम्हाला था। बेदी पाजी बेहद कलात्मक बाएं हाथ के स्पिनर बेदी हमेशा विपक्षी बल्लेबाज के लिए अबूझ गेंदबाज बने रहे जिनकी गेंद की दिशा, ऊंचाई और गति को समझ पाना मुमकिन ही नहीं था। बेदी ने टेस्ट क्रिकेट में 31 दिसंबर 1966 को पदार्पण किया। कोलकाता के इडेन गार्डन में वेस्ट इंडीज के विरुद्ध उनका पहला मैच था।वे 1977 तक भारतीय टीम के अहम हिस्सा बने रहकर अपने 67 टेस्ट मैचों में 28.71 की औसत से 266 विकेट लेने का कीर्तिमान गढ़ा था। विवाद और बेदी दोनों एक दूसरे के पूरक रहे। स्वाभिमानी बेदी बेबाक टिप्पणियों के लिए ख्यात रहे। दुनिया के ऐसे अनोखे कप्तान थे बेदी जिन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध जीत जबकि 14 गेंदों में 23 रन की जरूरत थी ,पाकिस्तान के खिलाफ शाहीवाल में सन 1978 में जबकि भारत के 8 विकेट शेष थे, पाकिस्तानी तेज गेंदबाज सरफराज नवाज के द्वारा लगातार चार बाउंसर फेंकने के बावजूद बेईमान अंपायर द्वारा एक बॉल को भी वाइड घोषित नहीं करने पर विरोध में बेदी ने अपने बल्लेबाजों को वापस बुला लिया और मैच हारना मंजूर कर आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया। बीसीसीआई और डीडीसीए हमेशा उनके निशाने पर रहते थे। भारत के दिल्ली स्थित स्टेडियम फिरोजशाह कोटला ग्राउंड का नाम जब अरुण जेटली के नाम बदला गया तो बेदी ने पुरजोर विरोध किया था। वे नहीं चाहते थे कि खेल के बीच राजनेता घुसें। बेदी बचपन में पुतलीघर स्थित अपने पैतृक आवास के पास गांधी ग्राउंड में गली क्रिकेट खेलते थे। इसलिए उससे बेदी का पुराना नाता रहा। मात्र पांच माह पूर्व अपने परिवार सहित बेदी अमृतसर के गांधी ग्राउंड आए थे।बेदी के शब्दों में वे वहां सजदा करने आए थे। ग्राउंड में खेलते बच्चों को गेंदबाजी के गुर सिखाना बेदी को प्रिय था। बचपन में कोच ज्ञानप्रकाश से ही उन्होंने क्रिकेट बोलिंग के गुर सीखे थे। इसी ग्राउंड पर बेदी पाजी उस समय के प्रसिद्ध क्रिकेटर्स आल राउंडर मदन लाल, खब्बू बल्लेबाज मोहिंदर अमरनाथ और सुरेंद्र अमरनाथ जैसे के साथ बेदी यहीं अभ्यास करते थे। क्रिकेट को अलविदा कहने के बावजूद भी क्रिकेट से उनका रिश्ता खत्म नहीं हुआ कभी। वे अंतिम दिनों तक गांधी मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चो को बॉलिंग के गुर सिखाते रहे। 1946 में जन्में इस प्रख्यात गेंदबाज आर्मर ने 2023 में आंखे मूंद ली और देश को अलविदा कह अनंत यात्रा पर निकलने वाले बिशन सिंह बेदी सदियों तक याद आयेंगे। शत शत नमन क्रिकेट के बॉलर को।

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