हमारे देश का उच्चतम न्यायालय संविधान की समीक्षा तो करता ही है साथ साथ ज्वलंत मुद्दों का स्वतः संज्ञान लेकर उसपर कार्यवाही भी करता है। मणिपुर तीन महीनों से जल रहा था। सामूहिक बलात्कार किए जा रहे थे जो आज भी यथावत स्थिति में है। जिस मणिपुर की घटना को दिल्ली छुपाती रही तीन महीने। दो महिलाओं को नग्न कर सड़कों पर क्रूर भीड़ द्वारा घुमाते हुए शर्म नहीं आ रही थी, सोशल मीडिया में वायरल होते ही सीजेआई ने संज्ञान लिया। सरकारों से कार्रवाई रिपोर्ट तलब की। मणिपुर चूंकि मैतेई समुदाय बहुल है। लगभग साठ प्रतिशत आबादी और विधानसभा की साठ सीटों में चालीस पर मैतेई समुदाय के चुने लोग हैं। केंद्र और राज्यसरकार मैतेई समुदाय से रार मोल नहीं ले सकता। सत्ता मैतेई समुदाय ही सौपती है। मुख्यमंत्री मैतेई समुदाय के विरुद्ध कार्यवाही करके अपनी कुर्सी गंवाना नहीं चाहते जबकि महिला राज्यपाल स्थिति से निराशा जता चुकी थीं। सरकार सत्ता के लिए लीपापोती करती रही है। चंद दिनों पूर्व मैतेई समुदाय के हजारों लोगों की भीड़ सड़क पर उतर आई। पुलिस ने कंट्रोल करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। रबर बुलेट चलाई। आज निष्पक्ष पत्रकारिता जोखिम का काम माना जाता है। आज समूची मीडिया मोदी भक्ति के राग अलाप रही है। भक्ति में ही सुख समृद्धि और सुरक्षा है क्योंकि किसी भी घटना का तथ्य ढूंढकर जनता के सामने रहस्योद्घाटन करना खतरनाक है। पता नहीं कौन कौन सी नॉन वेलेबल धाराएं लगाकर जेल भेज दिया जाए।जब पत्रकार जगत भयभीत हो ऐसे में तथ्य की रिपोर्टर बेहद खतरनाक हो जाती है।जल में रहकर मगर से बैर की तरह देश में रहकर सरकार की पोल खोलते हुए रिपोर्टिंग खतरा मोल लेने जैसा है। ऐसे निर्भीक पत्रकारों के साथ शासन और पुलिस कैसा सलूक करती है, छिपी बात नहीं है। चार स्वतंत्र पत्रकार उसी जलते हुए मणिपुर जाते हैं। जिसमें सारा दोष कुकी समाज को दिया जाता है। आतंकवादी कहा जाता है। म्यांमार के आतंकी गुटों से साठगांठ और चीन का पिट्ठू होने के आरोप लगाए जाते हैं। मनीपुर के स्थानीय पत्रकार मणिपुर में रहकर राज्य सरकार और बहुमत वाले मैतेई समुदाय से बैर मोल नहीं ले सकते। डरे हुए मणिपुरी पत्रकार मजबूर हैं सच से दूर रहने के लिए। पता नहीं कब मणिपुर सरकार, पुलिस और मैतेई समुदाय कहर बनकर टूट पड़े। इसलिए तथ्य सामने लाने, मणिपुर की वास्तविक स्थिति बताने में असमर्थ रहते हैं।
दिल्ली से चार स्वतंत्र पत्रकार मणिपुर गए। वहां के लाखों लोगों से मिले, पीड़ितों का दर्द महसूस किया। मैतेई और कुकी समुदाय के हजारों लोगों ने असलियत बताई तो 24 पृष्टों की रिपोर्ट एडिटर्स गिल को सौप दिया। मणिपुर में उन चारों पत्रकारों के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई। देशद्रोह, समाज में वैमस्य फैलाने, दंगे भड़काने जैसे संगीन आरोप लगाए गए और मणिपुर पुलिस दिल्ली आकर उन्हें गिरफ्तार करती। उसके पूर्व चारो पत्रकार सुप्रीमकोर्ट जा पहुंचे। वास्तविकता जानकर सीजेआई चंद्रचूड़, पारदीवाला और मनोज मिश्र की बेंच ने चारों पत्रकारों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। देश के निष्पक्ष पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट के तीनों जस्टिस का शुक्रिया अदा किया और उम्मीद जताई कि वे किसी भी तरह के अन्याय और अत्याचार से निष्पक्ष पत्रकारों को संरक्षण देते रहेंगे अन्यथा मणिपुर पुलिस दिल्ली आकर उन्हें हथकड़ी लगाकर मणिपुर ले जाती और मणिपुर में उनके साथ कैसा सलूक किया जाता, सहज ही समझा जा सकता है। थैंक यू सुप्रीमकोर्ट।