मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो साल में कई बार सियासी भूचाल देखने को मिला। राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दल- शिवसेना और एनसीपी टूट गयी। इसके बाद दोनों दलों के एक-एक गुट सरकार में शामिल हो गए और दूसरा गुट विपक्ष में है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही दलों में बगावत के बाद मूल पार्टी पर अधिकार ज़माने की लड़ाई शुरू हुई। जिसके चलते मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा। इसी पृष्ठभूमि में बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर (पीआईएल) की गई है। मिली जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में मांग की है कि जो लोग पार्टी से विद्रोह कर अलग हुए है या अलग होने वाले है, उन्हें तुरंत पद से हटाया जाए, साथ ही भारतीय संविधान की अनुसूची-10 का पैरा नंबर-4 को भी हटाया जाना चाहिए। पिछले साल जून महीने से अब तक महाराष्ट्र में दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां टूटी है। सबसे पहले शिवसेना पार्टी में फूट पड़ी। शिवसेना के 40 विधायकों ने पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका। इसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में फूट पड़ गई है। एनसीपी के भी लगभग 40 विधायक टूट गये हैं। देश में दलबदल विरोधी कानून है। हालाँकि, याचिका में मांग की गई है कि इस दलबदल कानून की अनुसूची (शेड्यूल) 10 की पैरा 4 दलबदल को बढ़ावा देता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। इस याचिका में एक और महत्वपूर्ण बिंदु उठाया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि वें लोग जो दलबदल कर चुके हैं। लेकिन जिन लोगों ने शेड्यूल 10 का पालन नहीं किया है। उन्हें किसी भी पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। संविधान की अनुसूची-10 के अनुसार 2/3 विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसे में उन पर दलबदल विरोधी कानून लागू नहीं होगा। हालांकि उन्हें किसी और पार्टी में शामिल होना जरुरी है। इस याचिका पर जल्द ही बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हो सकती है। बता दें कि यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब शिवसेना और एनसीपी के कई विधायकों की अयोग्यता से संबंधित मामले महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के पास लंबित हैं। दरअसल 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में एनसीपी के 53 विधायक हैं और अजित पवार गुट को दलबदल कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने से बचने के लिए कम से कम 36 एनसीपी विधायकों का समर्थन चाहिए।