सत्ता चाहे जितना कुतर्क करे लेकिन आम जनता को उस पर विश्वास नहीं होगा। आटा, दाल, चावल, दूध, मक्खन, दही, नमक खाद्य तेलों पर जी एस टी लगाने वाली मोदी सरकार जब पेट्रोल डीजल पर जीएसटी लगाने में राज्य सरकारों को बाधा बताए तो समझो सरासर झूठ बोल रही है। केन्द्र सरकार जनता को बताए कि आटा, दाल, दूध, दही पर जब जीएसटी लगाया गया तो कितने राज्यों विशेषकर विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों की सहमति ली गई थी? फिर पेट्रोल डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने में राज्य सरकारें अवरोधक क्यों और कैसे बनती हैं? पेट्रोलियम मंत्रालय केंद्र सरकार के पास है। क्रूड ऑयल केंद्र सरकार आयात करती है किसी राज्य की सरकार नहीं। पेट्रोलियम कंपनिया केंद्र सरकार की हैं राज्य सरकारों की नहीं। मीठा-मीठा गप कड़वा कड़वा थू कहना केंद्र सरकार की पॉलिसी है। एक रुपए में 45 पैसे केंद्र सरकार का टैक्स है। राज्यारकारों के वैट और एंटी कमीशन 20 पैसे और डीलर कमीशन 6 पैसे हैं यानी कुल 71 पैसे टैक्स और कमीशन के घटा देने पर बमुश्किल पेट्रोल के भाव 29 पैसे पड़ते हैं। 105 रुपये बिकने वाले पेट्रोल में 71 रुपए घटा दे तो 29 ₹ पेट्रोल के मूल्य बचते हैं। यदि इसपर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया जाए तो भी पेट्रोल 47 रुपए से अधिक मूल्य पर नहीं बिकेगा। कोरोना काल में ओपेक देशों से दो साल लगातार लगभग आधे मूल्य पर भारत को कच्चा तेल दिया जिसे मोदी सरकार ने स्टोर कर रख लिया। जब पेट्रोलियम मिनिस्टर ने सउदी अरब को कहा, कच्चे तेल का मूल्य कम करे तो करता जवाब मिला आपने दो वर्षों तक हमसे जो सस्ता तेल लेकर स्टोर किया वह बाहर निकालिए। यही नहीं यूक्रेन के साथ युद्ध के कारण नाटो देशों ने जब रूस पर पाबंदी लगाई तो बेहद सस्ते मूल्य में रूस से अपार मात्रा में तेल आयात किया गया जिसका लाभ जनता को देने की जगह रूस से आया सारा तेल अडानी और अंबानी को दे दिया गया। उन्होंने यूरोपीय राष्ट्रों को चार गुने से अधिक मूल्य पर बेचकर अरबों खरबों कमाया। जिस पाकिस्तान के संदर्भ में बीजेपी दावे करती है कि मोदी ने पाकिस्तान को कंगाल कर दिया। भक्त वाहवाही करते नहीं थकते। पाकिस्तान में दूध आटा के भाव आसमान छूते बताते हैं वे यह क्यों नहीं बताते कि पाकिस्तान को अपनी जनता की फिक्र रहती है इसीलिए जहां देश में पेट्रोल 105 रूपए लीटर बिक रहा। रसोईगैस 1200 रूपए पार है। सरसो तेल 200 रूपए से नीचे नहीं आ रहा। हर जिस पर भारी भरकम 37 तरह के टैक्स लगाकर महंगाई बढ़ा रही सरकार वहीं कथित रूप से दिवालिया पाकिस्तान में पेट्रोल मात्र 52 रूपए प्रति लीटर बेचा और जनता का बोझ कम किया जा रहा। हमारे पड़ोसी देशों की बात करें तो संसाधन हीन नेपाल में 69 रूपए, भूटान में 50 रूपए, बांग्लादेश में 77 रूपए, दिवालिया हो चुके श्रीलंका में 61 रूपए प्रति लीटर पेट्रोल बिक रहा है। कोवीड काल के दो वर्षों में सउदी अरब ने सस्ता तेल दिया था। उसे सरकार ने स्टोर किया है सउदी अरब ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के द्वारा तेल का भाव कम करने की सलाह का उत्तर सउदी अरब सरकार ने दिया था कि सस्ते तेल जिसे स्टोर किया हुआ है उसे निकलकर जनता को लाभ क्यों नहीं देते? सबको पता है रूस पर नाटो देशों ने प्रतिबंध लगाया तो भारत ने बहुत सस्ते में तेल भरपूर मात्रा में लिया। जनता को राहत देने के स्थान पर प्राइवेट तेल कंपनियों को सारा तेल देकर यूरोप में दस गुने दाम पर बेचकर अदानी और अंबानी ने अरबों खरबों क्यों कमाया? क्यों नहीं सस्ते दर पर जनता को पेट्रोल बेचा? आज भी कच्चे तेल का भाव 80 डॉलर्स प्रति बैरल है जो कभी सौ डॉलर से ऊपर रहता था लेकिन सरकार ने पेट्रोल हर महीने महंगा किया क्यों?
अब हम दुनिया के बेहद गरीब देशों की बात करें तो गृहयुद्ध ग्रस्त अंगोला में 18.82 रूपए, अल्जीरिया में 26 रूपए, कजाकिस्तान में 29 रूपए, कुवैत में 29 रूपए, कतर में 30 रूपए, ईरान में 5.06 रूपए, बेनेजुएला में मात्र 76 पैसे और तो और दुनिया के सबसे गरीब अफ्रीकी राष्ट्रों अंगोला में 18.82 रूपए, सूडान में मात्र 29 रूपए बिक रहा पेट्रोल क्योंकि वे सारे राष्ट्र इंडिया की तरह लूटेरी सरकारें। हीन हैं जो जनता का खून चूसें। अब चंद उन्नत राष्ट्रों में पेट्रोल के भाव देखें जहां कि आम आदमी की आय इंडिया से कई गुना ज्यादा है जैसे हांगकांग में 190 रूपए, निडर लैंड में 170 रूपए, नार्वे में 160 रुपए और चीन में मात्र 75 रूपए लीटर पेट्रोल बेचा जा रहा। बेशक देश को लगभग आधे मूल्य पर भले कच्चा तेल मिलता हो लेकिन सेंट्रल टैक्स और राज्यों के बैट इतने अधिक हैं कि पेट्रोल डीजल सस्ता नहीं किए जा रहे। एकमात्र उपाय है पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्य सरकार जानबूझकर बढ़ा रही है ताकि जनता त्रस्त रहे। परेशान रहे और वे सत्ता को लूट का साधन बनाए रखें। जीएसटी में पेट्रोल डीजल को लाने की मंशा केंद्र सरकार की है ही नहीं क्योंकि टैक्स के जरिए वही जनता को सबसे अधिक लूटती है। राज्य सरकारे तैयार नहीं हैं जीएसटी में लाने के लिए भद्दा मजाक है देश के साथ। अरे भाई जब हर वस्तु को जीएसटी के अंतर्गत लाकर महंगाई बढ़ाने वाली केंद्र सरकार है तो राज्यों पर दोष क्यों? इतना ही नहीं केंद्र की बीजेपी सरकार उन राज्यों को जीएसटी का आधा हिस्सा भी एनएचआई न दे रही। जैसा कि अनेक राज्यसरकारें केंद्र पर आरोप लगाती रहती हैं अन्याय करने का उदाहरण है। दरअसल केंद्र की बीजेपी सरकार जनता को भीख तो दे सकती है लेकिन लूटने से बाज आने वाली नहीं है।– जितेंद्र पाण्डेय