
भारत की राजनीति में महात्मा गांधी और वीर सावरकर दो छोर की तरह हैं जो आपस में मिल नहीं सकते। इन दो छोर के जरिए सियासी दल सत्ता की मंजिल तक पहुंचने के लिए खुद के लिए रास्ता बनाते हैं। सावरकर के मुद्दे पर राजनीति हमेशा से होती रही है। बीजेपी की तरफ से निशाना साधे जाने पर राहुल गांधी कहते हैं कि वो सावरकर नहीं, किसी से डरते नहीं। जब वो इस तरह के बयान देते हैं तो महाराष्ट्र में सियासी गरमी बढ़ जाती है। हाल ही में सांसदी जाने के बाद उन्होंने एक बार फिर जब सावरकर पर बयान दिया तो महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना के नेताओं ने कहा कि सावरकर के बारे में ऐसी टिप्पणी बर्दाश्त नहीं कर सकते। अब इस मुद्दे पर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम सावरकर के योगदान को कमतर नहीं मान सकते। सावरकर के योगदान को कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन अगर उनके विचारों पर मतभेद है तो उसे राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बनाया जा सकता। इस समय देश के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।
‘राहुल गांधी का बचाव और संदेश दोनों’
राहुल गांधी का बचाव करते हुए शरद पवार ने कहा कि यह कोई पहली बार नहीं कि जह विदेशी जमीन पर किसी ने देश के खिलाफ बोला हो। देश को इस समय किस तरह से चलाया जा रहा है उसके बारे में उन्होंने हाल ही में 18-20 दलों की बैठक में सवाल उठाते हुए कहा था कि इसके बारे में सोचने की जरूरत है। पवार ने कहा कि वी डी सावरकर का मुद्दा पहली बात कि राष्ट्रीय विषय नहीं और यह अब पुरानी बात हो चुकी है। हम लोग सावरकर के बारे में बोले हैं लेकिन कुछ व्यक्तिगत नहीं था। हिंदू महासभा के खिलाफ बयान थे। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि देश की आजादी की लड़ाई में सावरकर जी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
‘प्रगतिशील थे सावरकर’
करीब 32 साल पहले संसद में उन्होंने खुद सावरकर के प्रगतिशील नजरिए के बारे में बोला था। सावरकर ने रत्नागिरी जिले में एक घर बनाया उसके सामने मंदिर का निर्माण भी किया। खास बात यह थी कि मंदिर का पुजारी उन्होंने वाल्मीकि समाज से नियुक्त किया। उन्हें लगता वही तो प्रगतिशील सोच थी। दरअसल जब बुनियादी मुद्दों पर सत्तासीन दल कुछ कर पाने में नाकाम रहते हैं तो इस तरह की सियासी बातें कही जाती हैं।
क्या कहते हैं जानकार
अब यहां जानना जरूरी है कि वी डी सावरकर महाराष्ट्र के सियासी दलों के लिए अहम क्यों हैं। जानकार बताते हैं कि यह बात सच है कि राज्य में लोग महात्मा गांधी को सम्मान देते हैं लेकिन उसके साथ ही सावरकर के बारे में भी मानते हैं कि उनका योगदान कम नहीं था। हिंदू हितों की आवाज जिस अंदाज में सावरकर उठाया करते थे उसका असर यह हुआ कि वो महाराष्ट्र के कोने कोने तक लोकप्रिय हुए। जब देश आजाद नहीं था उस वक्त पूरी लड़ाई अंग्रेजों के खिलाफ थी और सावरकर ने अपने अंदाज से लड़ाई को आगे बढ़ाया। सावरकर के विरोध में तरह तरह के तर्क पेश किए जाते हैं। लेकिन महाराष्ट्र के लोग मानते हैं कि उनके फैसले तत्कालीन हालात को देखते हुए थे। आप एक तरह से मान सकते हैं कि सावरकर की छाप का असर वहां लोगों के दिल और दिमाग दोनों पर है। लिहाजा जब कोई इस तरह की टिप्पणी गैर महाराष्ट्रीयन नेता करता है तो सियासी तौर पर मामला संवेदनशील हो जाता है।