Monday, December 15, 2025
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आखिर क्यों?

नेपाल में बेरहम, स्वार्थी सत्ता के विरुद्ध आंदोलन ने बेईमान सत्ताधीशों को पदत्याग करके भागने को विवश कर दिया। कारण- मंत्रियों के बच्चे विदेशों में महँगी गाड़ियों और महँगे कपड़ों में रील बनाकर सोशल मीडिया में डालकर नेपाली गरीबी का मज़ाक उड़ाने लगे थे। सत्ता अपनी ही चलाती रही। भारत के सारे बड़े नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ते ही नहीं, वहाँ सेैटल्ड हो रहे हैं, लेकिन नेता इतने चालाक हैं कि अपने बच्चों को मना कर रखते हैं कि कभी भूलकर भी सोशल मीडिया में अपनी अमीरी की ठाठ को जाहिर नहीं करना। हर जगह भ्रष्टाचार है। केंद्र हो या राज्य, सरकारें भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं। हर कहीं घोटालों की खबरें छुपते–छुपते बाहर आ ही रही हैं। सत्ता में बने रहने के लिए दिवंगत नेहरू–कांग्रेस परिवार को ही दोषी बताया जा रहा है। यह नाकामी छुपाने के लिए किया जा रहा है। मुंबई में धारावी झोपड़पट्टी अडानी को सौंप दी गई। हसदेव जंगल के 15 हजार पेड़ काटकर अडानी के लिए उद्योग लगाने को दे दिए गए, जिससे आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो चुका है। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार हैं। वे जंगल में शांतिपूर्ण जीवन गुज़ारना चाहते हैं। उसमें खलल डाले जाने से वे उद्वेलित होने लगे हैं। असम में 3,000 बीघा जमीन वर्षों से बसे हुए लोगों के घर बुलडोज़र से तोड़कर, दरबदर करके अडानी को दिया जा रहा था, जिसकी जानकारी होने पर हाईकोर्ट हैरान हो गया। तीन हजार बीघा मतलब आधा जिला। कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। बिहार में डबल इंजन सरकार ने दस लाख आम के हरे–भरे पेड़ों वाले 1,030 बीघे जमीन को बंजर बताकर अडानी को दिया। यह जनता, राज्य और देश के साथ धोखा नहीं तो क्या है। वह भी एक रुपए सालाना लीज पर 30 वर्ष के लिए। यह मामला भी जनता के सामने कुछ आज़ाद पत्रकारों के माध्यम से आ गया है। आम के पेड़ लगे हों तो उसे बगीचा कहा जाता है। कोई व्यक्ति अपनी ही जमीन में अपने द्वारा लगाए आम–नीम जैसे पेड़ों को काटता है तो उसे अपराध माना जाता है और पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज देती है, लेकिन दस लाख आम के पौधों को बंजर जमीन बताने को क्या कहा जाए? इसी तरह बंगलूरु के पास चार हजार बीघे जमीन के जंगलों को काट दिया गया आईटी पार्क बनाने के लिए, रातों-रात। वहाँ पेड़ों में आग लगा दी गई, जिसमें अनगिनत पशु-पक्षियों की मौत हो गई, जिनमें राष्ट्रीय पक्षी मोर भी थे। यह पूंजीपति और सत्ता का गठबंधन नहीं तो क्या है? सरकार की नाक के नीचे, बिहार में चुनाव आयोग ने SIR के नाम पर मनमाने तरीके से 65 लाख वोटरों के नाम काटकर मताधिकार से वंचित कर दिया गया। राहुल गांधी ने एक विधानसभा सीट में ही एक लाख वोट चोरी पकड़ी। बिहार की इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट मांगने पर चुनाव आयोग का राहुल गांधी से एफिडेविट मांगना सबूत है कि चुनाव आयोग गलती कर रहा है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या जैसे कथित विदेशियों के फर्जी नाम बताकर काटने वाला चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे में लिखता है कि बिहार में एक भी विदेशी नहीं है। जीवित भारतीयों को मृत दिखाते समय चुनाव आयोग भूल गया कि भारत में एक वर्ष में विभिन्न कारणों से मरने वालों की संख्या 90 लाख के आसपास है। इस तरह बिहारियों के बड़े हिस्से को एक वर्ष में ही मार डाला जाना संभव नहीं है। विगत दस वर्षों से आधार कार्ड, वोटर आईडी, पैन कार्ड आदि के नाम पर देश को उलझाया गया है। बैंक, रेलवे, आईटीआर, जीएसटी, भूमि–मकान रजिस्ट्री, पासपोर्ट के लिए आधार कार्ड अनिवार्य करने के बावजूद चुनाव आयोग देशवासी होने का प्रमाण नहीं मानता। इसका अर्थ है कि सरकार को ही गलत बताता है चुनाव आयोग। किसान बैंक से कर्ज लेता है। पैसे कम पड़ने पर फिर कर्ज लेने के लिए लोन मांगने जाता है तो एनओसी माँगी जाती है, पर पूंजीपतियों को बिना मॉर्गेज किए कई-बे–कई बैंकों से हजारों करोड़ दिए जाना बताता है कि सरकार को उनसे कोई दिक़्कत नहीं है। लाखों करोड़ रूपए का लोन पूंजीपतियों के कार्ड माफ़ करने वाली सरकार दोगली नीति क्यों चला रही है? वोट चोरी को लेकर अब गुजरात, असम, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिणी प्रांतों तक जनता उठ खड़ी हुई है। मणिपुर में प्रधानमंत्री दो वर्ष चार महीने बाद जाकर मणिपुर की मर्ज़ी की बात कहने लगे। सड़क पर हो रही रैली में एक भी आम जनता दिखाई नहीं दी। एक दिन पूर्व ही पीएम के विरुद्ध आक्रोश छलक आया था; पोस्टर–बैनर फाड़कर जलाए गए थे। सैकड़ों करोड़ या हजारों करोड़ परियोजनाओं की घोषणाएँ जख्मों पर मरहम नहीं लगा सकतीं। गोहाटी यूनिवर्सिटी के छात्र “वोट चोर, गद्दी छोड़” के नारे लगाते हुए सड़क पर उतर गए। हर समस्या का हल सेना नहीं होती। इसी बीच हजारों की संख्या में रोहिंग्या का गुजरात में पकड़ा जाना बताता है कि प्रधानमंत्री के गृह राज्य में भी असंतोष भड़का हुआ है। जुमलेबाज़ी से देश नहीं चलता। उत्तर प्रदेश में अपराधों की बाढ़ आ गई है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री के गृह जिले में भी अव्यवस्था, अराजकता और अपराध बढ़े हैं। पड़ोसी नेपाल से सीख लेने की जरूरत है। बीजेपी के नेता बलात्कार करते मिल रहे हैं। कहा-सुना जाता है कि “हमें तुम्हारा वोट नहीं चाहिए। बाढ़ से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू–कश्मीर उजड़ चुके हैं। पंजाब तबाह हो चुका है। पीएम की फोटो लगी राहत सामग्री पंजाब से लौटाने का मतलब यह नहीं कि हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर से पंजाब का मुआयना करना कर्तव्य की पूर्ति है। इसके लिए जमीन पर उतरना पड़ता है, कीचड़- पानी में चलकर किसानों और बाढ़ पीड़ितों का दर्द बाँटने की जरूरत होती है। हवाई सर्वे से क्या होगा? तबाह हुए पंजाब को फौरी सहायता चाहिए। आंकड़ेबाज़ी नहीं। अगर सरकार जनता से ऐसे ही दूरी बनाए रखेगी तो वोट चोरी करके भी चुनाव आयोग जीत नहीं दिला पाएगा। जो बीजेपी के बड़े-बड़े नेता मुख्यमंत्री तक दावा करते हैं कि तीस–चालीस साल तक सत्ता से उन्हें कोई हटा नहीं सकता, उसका अर्थ है चुनाव आयोग पर अटूट विश्वास कि वह जीत दिलाता रहेगा। यही घमंड नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, फ्रांस, श्रीलंका के शासकों को हुआ था कि सत्ता बस उनकी ही मुट्ठी में रहेगी, लेकिन जब जनता अति होने पर सड़क पर उतरती है, तो बड़े-बड़े तानाशाह धराशायी हो जाते हैं। वह नौबत नहीं आने दे सरकार। अगर देश में जनता सड़क पर उतर आई तो पुलिस–सेना हुक्म मानने से इनकार कर देगी, आखिर वे भी इसी देश के हैं, उनके ही भाई–बंधु सड़कों पर क्रांति कर रहे होंगे, तो गोलियाँ कैसे चलाएँगे? अगर चलाई भी जाएँ तो गोलियाँ कम पड़ जाएँगी, लेकिन देश बरबाद हो जाएगा, जैसा नेपाल और बांग्लादेश में हुआ। बेहतर यही है कि जनहित के काम किए जाएँ।

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