
रूस पर यूक्रेन के साथ युद्ध होने के कारण अमेरिका ब्रिटेन सहित सभी यूरोपियन देशों ने हजारों प्रतिबंध लगा दिए। यही नहीं इन देशों में रूसी संपत्तियों को भी सीज कर दिया है जिस कारक रूस की आर्थिक हालत दयनीय होने का भय फैल गया। रूस ने इस त्रासदी से उबरने के लिए अपने पुराने मित्र भारत के सामने सस्ते दर लगभग आधे रेट पर कच्चा तेल सप्लाई करने का निमंत्रण दिया। भारत जानता था कि वह खाड़ी देशों से कच्चा तेल निर्यात करने को मजबूर था। वे जब चाहते मनमाने रेट पर तेल बेचते। ओपेक देशों के समूह पर विश्व का कोई कंट्रोल नहीं है। भारत रूस से अपनी आवश्यकता का मात्र एक प्रतिशत तेल खरीदता रहा। आधे दाम पर तेल देने के रूसी ऑफर को भारत अपने हित में भुना सकता था। अतः भारत ने तुरंत रूस के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।भारत के लिए एक अच्छा अवसर था।भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना शुरू किया। लगभग 16 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है प्रतिदिन।रूस की आर्थिक स्थिति अवश्य खराब हो जाती लेकिन रूस से लगभग आधे मूल्य पर तेल खरीदकर भारत आयातित घाटा कम कर सकता था परंतु देश को कोई लाभ नहीं मिला। हां रूस की आर्थिक स्थिति खराब होने से बच गई जबकि अमेरिका और यूरोप में आर्थिक मंदी का असर देखा जा सकता है। भारत चाहता तो पहले कोविद के समय खाड़ी देशों से मिले सस्ते तेल का फ़ायदा जनता को दे सकता था लेकिन नहीं किया सरकार ने क्योंकि उसने पेट्रोलियम पदार्थो पर सेंट्रल टैक्स तीन से चार गुना बढ़ा दिया। अब जब रूस से कच्चा तेल आधे मूल्य पर खरीदा जा रहा भारत की रूस से तेल खरीदी का प्रतिशत 37 पार कर चुका है। सरकार कहती है भारत से रूस का तेल रिफाइन कर यूरोपियन देशों को बेचा जा रहा तो लाभ सरकारी कंपनियों को क्यों नहीं मिला? अगर सरकारी कंपनियों को आधे दाम पर तेल मिलता तो निश्चित ही वे देश के भीतर पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री कीमत में कमी कर सकतीं थी लेकिन केंद्र सरकार की पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए रूस से आयातित सारा तेल प्राइवेट कंपनियों की रिफायनरी को लागत मूल्य पर दिया जाता आ रहा है। ये पूंजीपति रूसी तेल रिफाइन करके यूरोप के देशों को महंगे दामों में बेचकर अरबों नहीं खरबों रुपए कमाई कर रहीं जिसका फायदा न सरकार को मिल रहा न जनता को। चंद पूंजीपति सरकारी सहयोग से खरबों रुपए कमा कर विदेशी बैंकों में सेल कंपनियों के नाम से हवाला द्वारा वाया वाया अपनी कंपनियों में निवेश करा कर देश को चुना ही नहीं लगा रहीं बल्कि विदेशी मुद्रा भी व्यय कर रहीं। यदि केंद्र सरकार जनता के हित में काम करती तो पेट्रोल आज साठ रुपए लीटर देशवासियों को मिलता लेकिन पूंजीपतियो को लाभ पहुंचाने के कारण आवश्यक पेट्रोल डीजल और प्राकृतिक गैस के मूल्य बहुत अधिक वसूल कर जनता को मुश्किल में डाले हुए है।