Saturday, June 28, 2025
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लोकतंत्र में जरूरी है असहमति के स्वर!

जो बिक गए या ईडी, सीबीआई से डर गए। चापलूसी कर दो दो हजार करोड़ की प्रॉपर्टी बना लिए। चैनल खोल लिए। उन्हें देश में गोदी मीडिया कहने का प्रचलन बढ़ा है। ऐसे पत्रकार, एंकर सिर्फ और सिर्फ सत्ता की गुलामी करते हैं। इलोक्ट्रोनिक मीडिया में पहले भी ऐसे पत्रकार, एंकर्स रहे हैं जो सरकारों से सवाल पूछते रहे। रवीश कुमार को ही ले लें एनडीटीवी के जाने माने प्रोग्रामर एंकर थे। जहां कोई पत्रकार जाना नहीं चाहता था। रवीश जाते रहे। गरीबों खेतिहर मजदूरों युवाओं किसानों छोटे व्यापारियों से मिलाकर स्टोरी बनाते रहे। उन्होंने भी सत्ता की दलाली नहीं की और जब एनडीटीवी अडानी ने खरीद ली तो रवीश को लगा कि अब उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं चलेगी तो आत्मसम्मान के लिए उन्होंने एनडीटीवी छोड़ दी और यू ट्यूब पर वही काम करने लगे।सरकार से सवाल पूछते रहे। देश ही नहीं विदेश में भी उन्हें बुलाकर सम्मानित किया जाता रहता है।
इसके अलावा अनेक पत्रकार हैं जैसे पुण्य प्रसून बाजपेई, साक्षी जोशी, अभिसार शर्मा, अजीत अंजुम जैसे सैकड़ों पत्रकार यू ट्यूब पर छाए हुए हैं। जिनके दर्शक पूरी दुनिया में हैं।इनकी संख्या करोड़ों में है। कोई भी इनमें ऐसा पत्रकार नहीं है जो असहमति की आवाज बनकर सरकार से सवाल पूछते रहते हैं। सत्ता से ही सवाल पूछा जाता है क्योंकि देश में जो कुछ भी घटित होता है उसकी जवाबदेही सरकार की है। जिन्होंने सत्ता के सामने समर्पण नहीं किया स्वत: श्रम करते हैं। सरकार को किए गए वादे पर जब वह पूरा नहीं किया गया हो तो हर पत्रकार का फर्ज बनता है कि वह जनता की आवाज बनकर ईमानदारी से सत्ता से सवाल करता रहे। सुख भोग पत्रकारिता नहीं है।चाटुकारिता पत्रकारिता नहीं है। एक मिशन है पत्रकारिता।जब सरकार कोई भी वादा पूरा नहीं करेगी तो सरकार से ही सवाल पूछा जाना चाहिए। जिसे उपर्युक्त पत्रकार बखूबी जनता से ही पैसे की सहायता से यू ट्यूब पर अपना फर्ज निभा रहे। इतना जरूर है कि बीजेपी सरकार को सवाल पूछने वाले पसंद भीं हैं। जैसे सदन में सरकार से सवाल पूछने वाले सांसदों को निलंबित कर दिया जाता रहता है उसी तरह बीजेपी के लोग, समर्थकों को शायद सरकार से सवाल पूछना नागवार गुजर रहा है। इसीलिए अभिसार शर्मा को ट्रेंड करते हुए उन्हें चीनी दलाल आक्षेपित किया जा रहा। झूठ फैलाने के लिए बीजेपी का आई टी सेल है ही। जैसे ही कोई पोस्ट डाली जाती है बीजेपी, बजरंगदल, हिंदू युवा वाहिनी, आरएसएस वाले अंधभक्त फोलो करते हुए गाली देने लगते हैं।शायद उनका यही काम रह गया है। पोस्ट को फैलाने लगते हैं। अभिसार शर्मा भी उन्हीं असहमति की आवाज उठाने वाले सच्चे पत्रकारों में एक है। ए बी पी चैनल छोड़ने के बाद वे भी यू ट्यूब पर सक्रिय होकर देश के किसानों मजदूरों युवाओं की आवाज बन गए। आईटी सेल के अरुण यादव को हरियाणा निवासी हैं। अपनी प्रोफाइल में मोदी जी के साथ वाली फोटो लगाते हैं। उन्होंने अभिसार शर्मा के संदर्भ में ट्वीटर हैंडल पर अभिसार शर्मा की फोटो न्यूज क्लिक के साथ डालकर लिखा ,गोदी मीडिया कहने वाले निकले चीनी दलाल और इनपर एन एस ए लगाकर जेल भेजने की बात लिखी। दूसरी पोस्ट में बकायदा अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून बाजपेई, रवीश कुमार, साक्षी जोशी और अजीत अंजुम की फोटो डाला तो अंधभक्त ले उड़े। ट्रोल कर गाली देने लगे। पिछले नौ सालों से असहमति के स्वर बने पत्रकारों को गाली देने, देशद्रोही कहने का चलन बढ़ा है। ये वही लोग हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई चंद्रचूड़ के खिलाफ भी ट्वीटर पर अभियान चलाते हुए उनकी पत्नी और गोद ली गई दो कन्याओं तक के चिराहरण करने से बाज नहीं आए। असहमति का स्वर दबाने के लिए इसके पूर्व भी आल्ट न्यूज के जुबेर को दो साल जेल में रखा गया जो कोर्ट्स बेदाग बरी हुए। ऐसा ही मामला केरल के पत्रकार का था जब उसने एक दलित लड़की के रेप, हत्या और पुलिस द्वारा बिना पीड़िता के घर वालों को बताए रात के अंधेरे और एकांत में लाश जला दी गई थी, पत्रकार सच्चाई जानने यूपी आया था। उस पर एफ आई आर कर दो वर्ष जेल में रखा। दो साल बाद वह बेदाग बरी हुआ। याद होगा बीबीसी ने गुजरात दंगे पर फिल्म बनाई। उसे बैन कर दिया गया और सीबीआई , ईडी उसके भारतीय कार्यालय पहुंच कर परेशान किया। अभिसार शर्मा न्यूज क्लिक के लिए समय समय पर वीडियो बनाते रहते हैं और न्यूज कंपनी उन्हें उनका मेहनताना देती है। इसमें क्या बात हो गई? अगर न्यूज क्लिक देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त है तो सरकार जांच कराए। उसका जवाब कंपनी देगी इसमें अभिसार शर्मा को ट्वीटर पर ट्रोलकर देशद्रोही कहने एन एस ए लगाकर जेल भेजने की क्या बात है?
लोकतंत्र में असहमति के स्वर नितांत ज़रूरी हैं। ये सारे पत्रकार मोदी से, गृहमंत्री शाह से कालाधन विदेश से लाने, हर खाते में पंद्रह लाख डालने, किसानों की आय दोगुनी करने, हर वर्ष दो करोड़ को रोजगार देने, मंहगाई कम करने, सबके सिर पर 2022 तक पक्की छत देने के वादे पीएम मोदी ने ही किए थे तो उनसे सवाल पूछे ही जाएंगे।इसी तरह मणिपुर के तीन माह से जलाने, हिंसा, सामूहिक बलात्कार और महिलाओं को नग्न घुमाने जिसे सरकार ने तीन महीने छुपाए रखा। संसद में दो घंटे चौदह मिनट घिसी पिटी बात करने और मणिपुर की चर्चा हंसते हुए करने और बीजेपी सांसदों द्वारा ठहाके लगाने। इतना ही नहीं सरकार की गलती को स्वीकार करने के स्थान पर बंगाल में प्रचार के समय मणिपुर के साथ विश्वासघात करने का झूठा आरोप कांग्रेस और इंडिया पर मढ़ने के कारण सवाल सरकार से ही पूछा जाएगा। उन सभी असहमति के स्वर दबाने के लिए एन एस ए लगाकर जेल भेज दिया जाए जिसके लिए वे तैयार बैठे हैं लेकिन याद रहे उन स्वतंत्र पत्रकारों के देश में करोड़ों फोलोवार हैं जिसका खामियाजा भुगतने के लिए सरकार को लोकसभा चुनाव 2024 में तैयार रहना होगा।- लेखक जितेंद्र पांडेय

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