Wednesday, July 9, 2025
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वसई-विरार अवैध निर्माण घोटाला: ईडी की छापेमारी में 12.1 करोड़ की जब्ती, रिश्वतखोरी और सरकारी मिलीभगत उजागर

मुंबई। वसई-विरार में अवैध निर्माण और सरकारी भ्रष्टाचार के एक बड़े मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई तेज हो गई है। जांच के दूसरे चरण में, ईडी ने वसई-विरार और मुंबई के पश्चिमी उपनगर के कांदिवली और जुहू में कुल 16 ठिकानों पर छापा मारकर 12.1 करोड़ रुपये की बैंक जमा, डीमैट खातों, म्यूचुअल फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट जब्त किए हैं, साथ ही 25 लाख रुपये नकद भी बरामद किए गए हैं। एजेंसी ने बड़ी मात्रा में संदिग्ध दस्तावेज भी जब्त किए हैं, जिन्हें अब फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है। ईडी की कार्रवाई प्रसिद्ध आर्किटेक्ट संजय नारंग, वसई विरार नगर निगम (वीवीएमसी) के अंदरूनी सूत्रों और संपर्क एजेंटों पर केंद्रित रही, जिन पर आरोप है कि उन्होंने नगर निगम की जमीन विशेषकर सीवेज ट्रीटमेंट और डंपिंग ग्राउंड के लिए आरक्षित लगभग 60 एकड़ नागरिक भूमि पर 41 अवैध इमारतों के निर्माण की अनुमति दी। एजेंसी को शक है कि यह पूरा रैकेट निजी बिल्डरों, आर्किटेक्ट्स और वीवीएमसी के अधिकारियों की मिलीभगत से चला। विशेष ध्यान का केंद्र बने वीवीएमसी के नगर नियोजन विभाग के पूर्व उप निदेशक वाईएस रेड्डी, जिनके आवास से पहले चरण में 8.6 करोड़ नकद, हीरे-जवाहरात और कुल 23.25 करोड़ रुपये के सोने-चांदी जब्त किए गए थे। रेड्डी से जुड़ी अवैध संपत्ति की कुल कीमत अब 31.85 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है। भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया है। जांच में सामने आया है कि आर्किटेक्ट्स को बिल्डिंग प्लान अनुमोदन, संरचनात्मक रिपोर्ट, एनोसीओ, सीसी और ओसी जैसी प्रक्रियाओं को मैनेज करने की जिम्मेदारी दी गई थी। परंतु उन्होंने नियमों के विरुद्ध जाकर ज़ोनिंग अनुमतियों में हेरफेर किया, विकास नियंत्रण विनियमों (डीसीआर) को दरकिनार किया, और रिश्वत के बदले अवैध निर्माणों को मान्यता दिलवाई। ये सारे काम संपर्क एजेंटों और नगर निगम के अधिकारियों के साथ तालमेल में किए गए। सूत्रों के अनुसार, नगर निगम के दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई, ज़ोनिंग परमिशन गढ़ी गई, और डेवलपर्स को शुल्क, प्रीमियम एफएसआई और अन्य भुगतान में राहत दी गई। इसमें से कई रकम या तो कम दिखाकर या सीधे चोरी की गईं। ईडी को यह भी संदेह है कि वरिष्ठ नौकरशाहों ने मोटी रिश्वत लेकर इन सभी अनियमितताओं को जानबूझकर अनदेखा किया, जिससे यह अवैध निर्माण वर्षों तक बिना किसी रुकावट के चलता रहा। इस पूरे घोटाले की जड़ें राजनीतिक संरक्षण और नगर निगम की प्रणालीगत खामियों तक फैली हैं। ईडी अब विभिन्न दस्तावेजों, बैंक लेनदेन और रिश्वत के नेटवर्क की परतें खोल रही है, जिससे आने वाले दिनों में और बड़ी गिरफ्तारियां और खुलासे संभव हैं। यह मामला न सिर्फ वसई-विरार में रियल एस्टेट में फैले भ्रष्टाचार की तस्वीर दिखाता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि कैसे सरकारी तंत्र और निजी हितों की मिलीभगत से नागरिक संसाधनों की खुली लूट की जाती रही है।

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