
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के ऊपर एक एडवोकेट के द्वारा जूते फेंकना मारने की ही कोशिश मानी जानी चाहिए। यह अपमान एक दलित न्यायाधीश का नहीं, न्यायपालिका, भारतीय संविधान और लोकतंत्र की हत्या का प्रयास कहा जाएगा। निश्चित ही कोई संविधान का रक्षक मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा है जिसने अपने पूर्ववर्ती न्यायाधीशों की तरह सत्ता का गुलाम बनने, रिटायरमेंट के बाद मलाईदार पद लेने वाले न्यायाधीशों की तरह नहीं किया। ईमानदार न्यायाधीश गवई ने पहले ही घोषित कर दिया था कि उसे रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद सत्ता की वफादारी निभाने के लिए नहीं चाहिए। यह बात सत्ताधारियों को बड़ी नागवार लगी होगी। अरे! यह दलित न्यायाधीश शपथ लेने के पूर्व ही सत्ता का गुलाम बनने से मना कर, सत्ता नहीं संविधान के मार्ग पर चलने की घोषणा खुलेआम कर रहा है। “दलित” शब्द राजनीतिक है। किसी सरकारी व्यक्ति को दलित–सवर्ण में बांटना ही गलत होगा।
एक एडवोकेट जिसे ज्ञात है कि यूएनओ ने जिसे धरोहर घोषित कर दिया हो, जो स्ट्रक्चर पुरातत्व विभाग की देखरेख और संरक्षण में हो, उसको सुप्रीम कोर्ट तो क्या, किसी भी न्यायालय में ले जाना ही गलत है। सीजेआई की मौखिक टिप्पणी “आप विष्णु भक्त हैं तो उन्हीं से कहिए” में क्या गलत था? यह तो सुप्रीम कोर्ट के माननीय सीजेआई की महानता ही कही जाएगी कि उन्होंने स्वयं दंडित करने की कोशिश नहीं की, बल्कि शांत भाव से उदिग्न एडवोकेट्स से कहा- “आप व्यर्थ परेशान न हों, बहस जारी रखिए, मैं बिल्कुल भी परेशान नहीं हूं। सच तो यह है कि उक्त एडवोकेट ने जानबूझकर मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया था। जिसे प्रैक्टिस करने से एडवोकेट्स की दोनों संस्थाओं ने बैन कर दिया है, जिसके अनुसार वह किसी भी कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा। सीजेआई की मौखिक टिप्पणी से इतना अधिक झल्लाना किसी एडवोकेट के पेशे के लिए उचित नहीं है। न्यायालय की गरिमा न्यायाधीशों और संबद्ध एडवोकेट्स के सुंदर व्यवहार पर टिकी रहती है। जूता फेंकने के बाद उसका नारा लगाना। “सनातन का अपमान अब न सहेगा हिन्दुस्तान” ऐसे लगा कि वह किसी राजनीतिक पार्टी का अंग हो। यहां यह कहना उचित होगा कि उक्त एडवोकेट का अमर्यादित आचरण और नारा लगाना सनातनधर्मियों की पहचान नहीं हो सकती। सनातन धर्म का शायद एबीसी भी उक्त एडवोकेट को नहीं मालूम होगा, जैसे धर्म और आस्था का ढकोसला करने वाले राजनेताओं को भी ज्ञान नहीं होगा कि सनातन धर्म क्या है। कभी हिंदू धर्म, तो कभी सनातन धर्म का नाम लेने वाले क्या जानें कि सनातन धर्म क्या है? बस धर्म और आस्था के नाम पर हिंदुओं को उत्तेजित कर वोट का ध्रुवीकरण ही जिनका लक्ष्य हो, उन्हें हिंदुओं और सनातन धर्म से नहीं, सत्ता से मतलब है — भले भावनाओं को भड़काना पड़े, पीछे नहीं रहने वाले।
सनातन धर्म तो “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” के नारे पर चलने का नाम है, जो सत्य, प्रेम, न्याय और पुण्य रूपी चार स्तंभों पर टिका हुआ है। किसी के प्रति नफरत, शत्रुता का भाव रखने वाला कैसे सनातनधर्मी हो सकता है? झूठ बोलने वाला, नफरती, अन्यायी और पाप कर्मों में लिप्त व्यक्ति सनातनधर्मी हो ही नहीं सकता। किसी को तकलीफ देने, हिंसा करने और बदला लेने वाला दैत्य होता है, मानव नहीं और जो मानव नहीं है, वह सनातनधर्मी कैसे हो सकता है? पाप तीन तरह से किए जाते हैं- मनसा, वाचा, कर्मणा। किसी को बुरा कह दिया, किसी का बुरा सोच लिया, या फिर किसी का बुरा कर्म के द्वारा कर दिया तो फिर पाप कर दिया। ऐसा सनातन धर्म कहता है। सनातन धर्म तो सृष्टि के समस्त जीवों की रक्षा करने का नाम है, जिसमें हिंसा के लिए कोई अवकाश ही नहीं है। झूठ बोलने वाले सनातनधर्मी कैसे हो सकते हैं? हिंसा भी तीन तरह से की जाती है- बोलने, सोचने और कर्म के द्वारा किसी का अहित करना भी हिंसा है। हिंसक प्रवृत्ति का व्यक्ति कैसे सनातनी हो सकता है? सनातन का मूल है “अहिंसा परमो धर्मः” यही महात्मा बुद्ध का भी मंत्र है। महात्मा गांधी भी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते रहे। हिंसा जीव की मनोदशा का परिचायक होती है। दया, क्षमा धार्मिक जनों के आभूषण कहे गए हैं। “जहां क्षमा, तहां आप”- यह भारतीय संस्कृति का घोष वाक्य है। जैनियों को देखें, वे मुंह भी ढंक कर, बिना पादत्राण के चलते हैं ताकि किसी चींटी की पैरों से दबकर हत्या न हो जाए। सनातन धर्मियों के लिए सत्यनिष्ठा और सत्यनिषदन अपरिहार्य है। असत्य या मिथ्या भाषी कैसे सनातनी हो सकता है?
गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है- निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छद्म न भावा।।
यही नहीं, उन्होंने लिखा है — परहित सरिस धरम नहीं भाई। परपीड़ा सम नहिं आगमाई।। अर्थात दूसरों का हित चिंतन और कर्म करने से बड़ा कोई धर्म नहीं, और दूसरों को मन, वाणी, कर्म से पीड़ा देने जितना बड़ा पाप कोई नहीं है। प्रेम के स्थान पर घृणा, न्याय की जगह अन्याय, सत्य के स्थान पर झूठ और पुण्य के स्थान पर पाप करने वाला धार्मिक हो ही नहीं सकता। ऐसे लोग धार्मिकता का दिखावा करते हैं। बीजेपी के पूर्व सांसद माला हाथ में लिए हुए बैठे थे। जब पत्रकार ने उनसे प्रश्न किया तो उन्होंने जो उत्तर दिया, उसे सुनकर धर्म के दिखावेपन की पुष्टि होती है। उन्होंने पत्रकार को उत्तर में कहा- “धार्मिक होने का दिखावा करना पड़ता है।”
कोई व्यक्ति भले मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे या चर्च में नहीं जाता हो, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह नास्तिक है। सत्य, प्रेम, न्याय और पुण्य का पालन करने वाला ही सनातनधर्मी हो सकता है। नारा लगाने वाला नहीं। सुप्रीम कोर्ट में जो भी हुआ। शांतचित्त बैठे रहना और एडवोकेट्स से कहना, “परेशान मत होइए, बहस जारी रखिए, मैं भी परेशान नहीं हूं।” इससे बड़ी धार्मिकता और क्या होगी? स्मरण होगा, महात्मा गांधी ने अपने हत्यारे गोडसे को क्षमा कर दिया था। इसकी पुनरावृत्ति तब हुई जब राजीव गांधी की हत्या हुई, तो सोनिया गांधी ने अपने पति के हत्यारिन को क्षमा कर दिया था। इससे बड़ा सनातनधर्मी का उदाहरण और क्या हो सकता है? बदला लेना, किसी की हत्या करना या साजिश रचना तो दैत्यों का धर्म है। मानव धर्म तो क्षमा करने में है। सीजेआई पर जूता फेंकने वाले को कोई अफसोस नहीं, डर नहीं। उसने कहा- सीजेआई ने दूसरे धर्म के मामले में हस्तक्षेप किया। जबकि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष के अनुसार विष्णु की मूर्ति पर सीजेआई की टिप्पणी को गलत तरीके से दिखाया गया। वही सॉलिसिटर के अनुसार गवई हर धर्म का सम्मान करते हैं। वे मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे जाते हैं। आरोपी के अनुसार “एक्शन पर उसका रिएक्शन था जूता फेंकना।” सुप्रीम कोर्ट काउंसिल के अनुसार ऐसा असंयमित व्यवहार अनुचित है। न्यायालय और वकील समुदाय के बीच पारस्परिक सम्मान की नींव हिलाने वाला है। यह केवल संस्था को ही नहीं, हमारे राष्ट्र में न्याय के ताने-बाने को भी क्षति पहुंचाता है। कुछ भी हो, ऐसा निकृष्ट आचरण सनातन धर्म की मर्यादा का भी खुला उल्लंघन है। सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की तो समर्थन ही किया माना जाएगा।