Sunday, November 16, 2025
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मां के फांसी का फंदा! पुलिस नें 50,000 रुपये मांगा, समाज की उदासीनता की गूंज!

स्वतंत्र पत्रकार- इंद्र यादव
मुंबई। सोचिए, एक मां का दिल कितना मजबूत होता है। वह नन्हीं उंगलियों को पकड़कर चलना सिखाती है, रात-रात भर जागकर बीमार बच्चे की सेवा करती है, और हर दुख में खुद को पीछे छोड़कर परिवार को संभालती है। लेकिन जब वही मां अपने घर की चारदीवारी में साड़ी का फंदा गले में डालकर झूलती मिले, तो क्या कहें! यह सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि समाज की उस क्रूर उदासीनता की चीख है, जो मां-बेटी के रिश्ते को, परिवार की गरिमा को, और इंसानी संवेदना को कुचलती चली जा रही है। महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में घटी रेखा जाधव की यह दर्दनाक कहानी हमें झकझोरकर पूछती है, क्या हमारा समाज इतना पत्थर दिल हो चुका है कि एक मां की मौत भी हमें नहीं जगाती ! रेखा जाधव, 50 साल की उस साधारण महिला की जिंदगी, जो राम मंदिर इलाके में रहती थीं, अचानक एक त्रासदी बन गई। उनकी 20 साल की बेटी पूजा, जिसकी पहली शादी तीन साल पहले टूट चुकी थी, फिर दूसरी शादी के बाद भी पुराने प्रेमी के जाल में फंस गई। आठ दिन पहले पूजा प्रेमी के साथ भाग गई। मां ने तुरंत पुलिस थाने का रुख किया, गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने। लेकिन क्या हुआ! पुलिस ने न सिर्फ शिकायत ठुकरा दी, बल्कि 50,000 रुपये मांगा। यह आरोप कितना भयावह है! एक मां, जो अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए रोती-बिलखती थाने पहुंची, उसे पैसे की भेंट चढ़ानी पड़ी। मानसिक रूप से टूटकर रेखा ने घर लौटकर फांसी लगा ली। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। और फिर, गुस्साए परिजनों ने शव को कंधे पर उठाकर सीधे उस्मानपुरा थाने पहुंचा दिया। हंगामा हुआ, पुलिस ने अंत में प्रेमी वैभव बोर्डे और उसके परिवार के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया। लेकिन क्या यह देर से आई न्याय की जीत है, या सिर्फ एक औपचारिकता! यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हमारे पूरे समाज की विफलता है। सबसे पहले, पुलिस की लापरवाही। क्या थाने अब न्याय के मंदिर नहीं, बल्कि सौदेबाजी की दुकान बन गए हैं! एक मां की पुकार को पैसे से तौलना कितना शर्मनाक है! अगर समय पर कार्रवाई होती, तो शायद पूजा लौट आती, और रेखा का दिल न टूटता। लेकिन नहीं, भ्रष्टाचार की यह जड़ इतनी गहरी है कि वह मांओं की आंसुओं को भी नहीं पिघला पाती। दूसरा, प्रेम और विवाह का यह जटिल जाल। पूजा की कहानी बताती है कि कैसे युवा पीढ़ी प्रेम के नाम पर परिवार की मर्यादा भूल जाती है। पहली शादी टूटने के बाद दूसरी शादी, फिर भी पुराना प्रेमी। यह सिर्फ व्यक्तिगत गलती नहीं, बल्कि समाज में बढ़ते विवाहेतर संबंधों की महामारी है। हम बच्चों को संस्कार देते हैं, लेकिन सोशल मीडिया और आधुनिकता के नाम पर उन्हें स्वच्छंद छोड़ देते हैं। प्रेमी वैभव और उसका परिवार क्या वे नहीं जानते कि उनकी हरकतें एक मां की जान ले सकती हैं! सबसे दर्दनाक है मां-बेटी का रिश्ता। रेखा ने अपनी बेटी के लिए दो शादियां कीं, तलाक के दाग को मिटाने की कोशिश की, लेकिन बेटी की जिद ने सब कुछ तबाह कर दिया। क्या बेटियां नहीं समझतीं कि मां का दिल कितना नाजुक होता है! वह मां, जो खुद भूखी रहकर बेटी को खिलाती है, उसी की वजह से फंदे पर झूल गई। यह दर्द हमें याद दिलाता है कि परिवार की नींव मां पर टिकी होती है। अगर बेटी भागती है, तो समाज उसे ‘आधुनिक’ कहकर ताली पीटता है, लेकिन मां की मौत पर चुप्पी साध लेता है। पड़ोसी, रिश्तेदार,सब थाने के बाहर जमा हुए, लेकिन पहले क्यों नहीं बोले! क्यों नहीं बेटी को समझाया, मां को संभाला! यह घटना सामाजिक कुरीतियों की एक लंबी श्रृंखला है। अंतरजातीय या विवाहेतर प्रेम के नाम पर भागने की घटनाएं बढ़ रही हैं, और हर बार परिवार टूटता है। पुलिस सुधार की जरूरत है,तुरंत शिकायत दर्ज हो, बिना पैसे के कार्रवाई हो। युवाओं को शिक्षा दें कि प्रेम जिम्मेदारी मांगता है, न कि भागना। परिवारों में संवाद बढ़ाएं, ताकि बेटियां अपनी बात कह सकें, बिना घर छोड़े। और सबसे जरूरी, मां की भावनाओं का सम्मान। एक मां की मौत हमें सिखाती है कि समाज को संवेदनशील बनना होगा। रेखा जाधव अब नहीं हैं, लेकिन उनकी चीख गूंज रही है। क्या हम सुनेंगे! या फिर अगली मां का फंदा देखकर ही जागेंगे! यह समय है बदलाव का,पुलिस में ईमानदारी, युवाओं में जिम्मेदारी, और समाज में संवेदना। नहीं तो, हर घर में एक रेखा की छाया लटकती रहेगी। हे समाज, जागो! एक मां की आहें व्यर्थ न जाएं।

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