Tuesday, December 16, 2025
Google search engine
HomeUncategorizedकैथी लिपि का इतिहास, वर्तमान और भविष्य

कैथी लिपि का इतिहास, वर्तमान और भविष्य

विवेक रंजन श्रीवास्तव
कैथी लिपि भी भारत की प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण लिपि रही है। अंग्रेजी शासन के समय जारी एक रुपए के इस नोट में दूसरे नंबर पर एक रुपया कैथी लिपि में ही लिखा हुआ है। इस लिपि का नाम कायस्थ समुदाय के नाम पर कैथी पड़ा। कायस्थ समुदाय पारंपरिक रूप से लेखाकार, गणक और राजाओं के प्रशासनिक कार्यकर्ताओं का समूह था, जिनके लेखन कार्य के लिए यह लिपि विकसित हुई। इसका इतिहास प्राचीन ब्राह्मी लिपि से शुरू होकर गुप्तकाल में विकसित कुटिल लिपि के जरिए कैथी के रूप में परिष्कृत होने तक फैला हुआ है। यह लिपि छठी शताब्दी के आसपास अस्तित्व में आई और मुगल व ब्रिटिश काल में इसका व्यापक उपयोग हुआ। यह लिपि हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा प्रशासनिक, न्यायिक, धार्मिक और व्यापारिक दस्तावेजों में प्रयुक्त होती थी। कैथी लिपि की खासियत यह थी कि इसमें अक्षर सरल और स्पष्ट होते थे, जिनमें कोई शिरोरेखा नहीं होती थी और अति शीघ्रता से लिखने की सुविधा थी। इस लिपि में भाषाओं की विविधता के चलते अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली, बंगला, उर्दू आदि कई भाषाओं के लेखन होते रहे। उत्तर भारत के बड़े इलाके में यह अकसर दफ्तरों और अदालतों की अधिकारिक लिपि रही। यहां तक कि ब्रितानी काल में भी इसे शासन के औपचारिक दस्तावेजों में मान्यता प्राप्त थी। समय के साथ आधुनिकता और शिक्षा के नए स्वरूपों के आ जाने से कायस्थों की इस लिपि का प्रयोग धीरे-धीरे कम होता गया। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में देवनागरी और फ़ारसी लिपि को सरकारी कामों में प्राथमिकता मिलने लगी, जिसके कारण कैथी का प्रचलन लगभग खत्म हो गया। आज के समय में यह लिपि लुप्तप्राय है और इसे पढ़ने बूझने वाले विशेषज्ञ भी बहुत कम बचे हैं। पुराने सरकारी और न्यायालयीन अभिलेखों में यह लिपि अभी भी मौजूद है, लेकिन उन अभिलेखों को समझने में दिक्कतें आ रही हैं। डिजिटल युग में पुराने दस्तावेजों का संरक्षण और उनकी विद्यमानता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। भविष्य की ओर देखे तो इस लिपि के पुनरुद्धार की संभावनाएं भी बन रही हैं। सांस्कृतिक संगठन, शोध केंद्र और कुछ शासकीय पहल इस लिपि को संरक्षित करने के लिए काम कर रहे हैं। नई तकनीकों के माध्यम से डिजिटल फॉन्ट, शिक्षण सामग्री और शोधकार्य द्वारा इसे जीवित रखने का प्रयास हो रहा है। यदि युवा पीढ़ी में इस लिपि के प्रति रुचि बढ़े और इसे शिक्षा तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जगह मिले, तो कायस्थ लिपि भारतीय सांस्कृतिक इतिहास की अमूल्य धरोहर के रूप में फिर से अपना स्थान मजबूत कर सकती है। कायस्थ या कैथी लिपि केवल एक अतीत की कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विविधता और भाषा-लेखन के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी है। इसके संरक्षण और संवर्द्धन के बिना हमारी सांस्कृतिक समझ अधूरी है। जरूरी है कि हम इस विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाएं और इसे आने वाले समय के लिए सुरक्षित रखें ताकि हमारी भाषा और संस्कृति की जड़ें और मजबूत हों।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments