
मुंबई। मुंबई के मलाड पश्चिम स्थित कृष्णा बाग बिल्डिंग नंबर 1 के आठ किरायेदारों को बॉम्बे हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। अदालत ने पुनर्विकास के विरोध में दायर उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे “बाधा उत्पन्न करने वाले” हैं। साथ ही, अदालत ने प्रत्येक किरायेदार पर 2 लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया, जिसे सशस्त्र बल युद्ध हताहत कल्याण कोष में चार सप्ताह के भीतर जमा करने का आदेश दिया गया है। यह मामला एक 100 वर्ष पुरानी इमारत से जुड़ा है, जिसे बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने अक्टूबर 2020 में “सी1” कैटेगरी में रखते हुए खतरनाक और रहने योग्य नहीं माना था और विध्वंस का नोटिस जारी किया था। किरायेदारों ने बीएमसी के 2023 के नोटिस को चुनौती दी थी और इमारत को “सी2-बी” में पुनर्वर्गीकृत करने की मांग की थी ताकि उसकी मरम्मत की जा सके, न कि विध्वंस। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अजय गडकरी और कमल खता की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मालिक को अपनी संपत्ति ध्वस्त करने का पूरा अधिकार है, और किरायेदार केवल “पुनर्निर्माण” तक अपने अधिकार सीमित रख सकते हैं, “पुनर्विकास” में वे हस्तक्षेप नहीं कर सकते। अदालत ने यह भी कहा कि किरायेदारों का अड़ियल रवैया अन्य निवासियों के लिए नुकसानदायक सिद्ध हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए छह सप्ताह की रोक की मांग की थी, लेकिन अदालत ने इसे भी अस्वीकार कर दिया। न्यायालय ने यह भी दोहराया कि किरायेदार, पुनर्विकास के दौरान नए डिजाइन या लेआउट को रोकने का अधिकार नहीं रखते हैं। इस आदेश के साथ, बॉम्बे हाईकोर्ट ने न केवल पुनर्विकास को हरी झंडी दी है, बल्कि गैर-जरूरी बाधा डालने वालों को स्पष्ट संदेश भी दिया है कि जनहित और संरचनात्मक सुरक्षा के मामलों में कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।