
लेखक- जितेंद्र पांडेय
बीजेपी जनता की धार्मिक भावनाओं से खेलने और उसका चुनावी फायदा उठाने में कभी पीछे नहीं रहती। सवाल यह है कि क्या कोई भी सरकार धर्मदा ट्रस्ट हो सकती है? उत्तर होगा, नहीं। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में कोई भी सरकार किसी भी धर्म के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। धर्म निरपेक्षता का अर्थ है कि सरकार किसी भी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करती क्योंकि सरकार न्यूट्रल होती है लेकिन दुरभाग्य वश भाजपा सरकार मंदिर के नाम पर आंदोलन करने लगती है। रैलियां और रथयात्रा निकालने का बहुत पुराना रिश्ता है बीजेपी का। याद होगा अयोध्या में रामजन्म भूमि मामले में लालकृष्ण आडवाणी ने अश्वमेध यज्ञ की तर्ज़ पर रथयात्रा निकाली थी लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव की बिजई यात्रा को विराम दे दिया था। रोक लिया था बीजेपी के आडवाणी का अश्वमेध अश्व। इसके साथ ही काशी विश्वनाथ परिसर में औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद तामीर कराई थी क्योंकि तब मुगल सल्तनत थी। शक्ति थी तलवार और सत्ता की। यही हाल मथुरा कृष्ण जन्म भूमि मंदिर प्रांगण में ही ईदगाह मस्जिद का निर्माण भी मुगलिया शासन ने तलवार के बल पर किया था। बीजेपी हमेशा जनता की धार्मिक भावनाएं उभारने की कोशिश की है। काशी मथुरा बाकी है के नारे लगाती रही है हिंदुत्व की ठेकेदार बनकर। अयोध्या का मसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निकल आया। जब कोर्ट ने एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया तो भाजपा ने अपने लोगों की ही कमेटी बनवा ली। उसपर भी करोड़ों रुपए हेर फेर के आरोप लगे। सस्ते रेट में जमीन खरीदकर महंगी दर पर ट्रस्ट को बेचने के खेल में ट्रस्ट के ही लोग शामिल रहे।जनता से चंदा बीजेपी और आर एस एस ने वसूला।मुस्लिमों ने भी सौहाद्र दिखाते हुए जहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सिर माथे लगाया वहीं रकामंदिर निर्माण में भी यथाशक्ति बढ़चढ़ कर आर्थिक सहयोग दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन देने के आदेश दिए। जगह तो मिली लेकिन राममंदिर निर्माण का श्रेय लेने वाली भाजपा ने सौहाद्र दिखाते हुए कभी मस्जिद निर्माण की पहल नहीं की। न्याय कहता है जो पहल राममंदिर निर्माण के लिए बीजेपी सरकार ने की वही पहल यदि मस्जिद के निर्माण हेतु भी करती तो सौहाद्र बढ़ाने का काम करती लेकिन भाजपा हिंदू मुस्लिम करती है। मुस्लिमों का भय दिखाकर हिंदुओं का शोषण करती है। हिंदुओं को एकजुट कर वोट लेती और अपनी सरकार बनाकर पूरे देश का शोषण करती है। जब बड़े जोर शोर से मोदी ने काशी विश्वेश्वर मंदिर परिसर के भव्य निर्माण की घोषणा की तो वह भी गलत था।पीएम देश का होता है।देश में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध पारसी और जैन धर्म के पूजक रहते हैं तो फिर प्रधानमंत्री किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च और विहार निर्माण की घोषणा कैसे कर सकता है? लेकिन मोदी ने किया क्यों कि उसके पीछे हिंदू वोट बैंक की ताकत को एकजुट कर सत्ता पानी थी। शुक्र है काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर भव्य बनाने में खुद ट्रस्ट का ही पैसा लगाया गया। लेकिन जिस तरह अयोध्या राममंदिर परिसर को भव्य बनाने के लिए सीता रसोई, सुग्रीव टीला आदि सहित कई पौराणिक स्थल और मंदिर विध्वंश किए गए उसी तर्ज पर काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के लिए दर्जनों पौराणिक मंदिरो की बलि ली गई तो फिर तुर्क मुगल सम्राटों द्वारा हिंदू मंदिर विध्वंश और मस्जिद निर्माण में क्या अंतर रह जाता है? दोनो स्थानों पर मंदिर और अन्य पौराणिक स्थलों को सुरक्षित और भव्य बनाया जाता तो क्या परिसर की भव्यता कलंकित हो जाती? नहीं कलंकित तो पौराणिक स्थलों मंदिरों के अस्तित्व मिटाने से हुई है। कोई भी सदपुरूष इसे उचित नहीं कह सकता लेकिन बहुमत की सत्ता का दर्प मुगलों में था और मोदी में भी है। इतिहास जब लिखा जाएगा तो पीएम मोदी को औरंगजेब के समान ही लिखा जाएगा। मथुरा कृष्ण जन्मभूमि परिसर को भव्य बनाने के लिए योगी सरकार ने मंदिर ट्रस्ट से धन मांगा जिसके विरुद्ध कोर्ट में याचिका डाली गई। मथुरा वृंदावन बांके बिहारी मंदिर प्रांगण के निर्माण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जज ने मंदिर ट्रस्ट से सरकार द्वारा धन की मांग करने पर कोर्ट ने योगी सरकार से जायज ही प्रश्न पूछा कि क्या सरकार के पास धन की कमी है? क्यों मंदिर को मिले दान से बनवाना चाहती है सरकार? परोक्ष रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर जिसमें ट्रस्ट का पैसा लगा है, कोर्ट की टिप्पणी लागू होती है। केंद्र सरकार और पीएम मोदी को भी लपेटे में लिया है कोर्ट ने। मंदिर प्राइवेट ट्रस्ट और संपत्ति है। उसके धन और संपत्ति पर मंदिर ट्रस्ट का अधिकार होता है फिर सरकार क्यों ले? कोर्ट द्वारा पूछा गया सवाल उन सरकारों के भी गाल पर तमाचा है जो मंदिर के चढ़ावे और संपत्तियों का अधिग्रहण कर चुकी हैं।मंदिर का अधिग्रहण करने वाली अन्याई सरकारें किसी मस्जिद चर्च का अधिग्रहण क्यों नहीं करने की हिम्मत दिखाती? जिस तरह राममंदिर निर्माण के लिए जनता से धन वसूला गया जिसका आय व्यय विवरण कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। क्या मथुरा वृंदावन मंदिर निर्माण श्रद्धालु हिंदू बिन कर देंगे? जो सरकार को निर्माण करने की जरूरत पड़ गई? कोर्ट ने यूपी सरकार से बिल्कुल जायज सवाल किया है कि मंदिर निर्माण के उपरांत क्या सरकार मंदिर को अपने कब्जे में करेगी या ट्रस्ट ही व्यवस्था देखेगी? यहां सवाल मंदिर निर्माण का नहीं श्रेय लेकर हिंदू वोट लेने का है ताकि मूर्ख हिंदू धर्म के नाम पर उसे सत्ता में पहुंचाए या सत्ता बनी रहने दे। सुखद आश्चर्य कि चेक बाउंस मामले में जेल में बंद कमर्शियल प्रॉपर्टी का व्यापारी प्रखर गर्ग ने कहा अपने वकील के माध्यम से कि सरकार बांके बिहारी मंदिर निर्माण करे आवश्यक 510 करोड़ जो बजट बनाया है सरकार ने और मंदिर ट्रस्ट से धन मांग रही है वह हम देंगे। यहीं एक महत्त्वपूर्ण बात यह कि मंदिर को मिले दान और चढ़ावे पर कुंडली मारकर बैठी कमेटी धन का उपभोग अपने सुख वैभव के लिए करना छोड़कर देश भर में उस धन से धर्मदा ट्रस्ट हॉस्पिटल खोले कॉलेज खोले जिसमें निशुल्क इलाज और शिक्षा देकर राष्ट्र का विकास किया जा सके।