
इंद्र यादव
मुंबई! सीएनजी के लिए दिन-रात लाईन में लगे रहो ड्राईवरों! इतना वक्त अब ठाणे के एक ऑटो चालक को सिर्फ़ इसलिए खड़ा रहना पड़ता है ताकि उसकी गाड़ी में कुछ सीएनजी भर जाए। जो पहले बीस-पच्चीस मिनट का काम था, वह आज कई घंटे की यातना बन गया है। यह कोई एक-दो दिन की बात नहीं, पिछले कई दिनों से थाने शहर के हजारों ऑटो रिक्शा चालक इसी अग्निपरीक्षा से गुज़र रहे हैं। वागले एस्टेट, कापूरबावड़ी, घोड़बंदर रोड, मुलुंड चेक नाका, हर बड़े सीएनजी पंप के बाहर कतारें अब किलोमीटरों तक फैल चुकी हैं। और इन कतारों ने न सिर्फ़ ऑटो चालकों की कमर तोड़ दी है, बल्कि पूरे शहर की रफ़्तार ठप कर दी है।सोचिए, एक मेहनती इंसान जो सुबह घर से निकलता है ताकि शाम को दो जून की रोटी लेकर लौटे, वह आधा दिन तो लाइन में खड़ा रहता है। जब गैस भरकर निकलता है तो ट्रैफ़िक जाम में फँस जाता है। यात्री गुस्सा करते हैं, मीटर नहीं चलता, कमाई आधी रह जाती है। पेट्रोल डालने की हिम्मत नहीं, क्योंकि किराया दोगुना हो जाएगा और मुंबई-थाने का यात्री तुरंत भड़क उठेगा। सीएनजी ही एकमात्र सस्ता और साफ़ ईंधन था गरीब चालक का, वही अब छिन गया है। लेकिन यह संकट सिर्फ़ ऑटो चालकों का नहीं है। यह पूरे शहर की साँसें रोक रहा है। वागले एस्टेट के इंद्रानगर की मुख्य सड़कें दिन-रात जाम में डूबी रहती हैं। स्कूल की बसें, कॉलेज के बच्चे, दफ़्तर जाने वाले कर्मचारी, मरीज़ लेकर जा रही एम्बुलेंस, सब फँस रहे हैं। ट्रैफ़िक पुलिस दिखती ही नहीं। जो पुलिसकर्मी आते भी हैं, वह भी लाचार नज़र आते हैं क्योंकि समस्या की जड़ कहीं और है। शहर की लाइफ़लाइन ठप होने की कगार पर है और हम सब चुप हैं। नए सीएनजी पंपों का लगातार कम बनना, जबकि हर साल हज़ारों नए ऑटो रिक्शा सड़क पर उतर रहे हैं। कुछ पुराने पंपों का बंद होना और सप्लाई चेन में बार-बार आ रही रुकावटें। महानगर गैस जैसी कंपनियों पर कोई जवाबदेही नहीं। और सबसे दुखद ,प्राथमिकता वाली लाइन का खेल। जो ज़्यादा पैसे दे सकता है, उसकी अलग लाइन। बाकी गरीब चालक लाइन में मरे। यह कैसा न्याय है! यह सिर्फ़ गैस की कमी नहीं, यह हमारे समाज की प्राथमिकताओं का आईना है। जिसके पास पैसा है, उसकी गाड़ी पहले भरेगी। जिसके पास सिर्फ़ मेहनत है, वह लाइन में सड़ता रहे। यही असली विडंबना है। ठाणे के ऑटो चालक अब चेतावनी दे रहे हैं, अगर जल्दी स्थायी हल नहीं निकला तो चक्का जाम करेंगे। और सच कहें तो उनका गुस्सा जायज़ है। लेकिन अगर चक्का जाम हुआ तो फिर वही आम आदमी सबसे ज़्यादा पिसेगा, वही बच्चे, वही मरीज़, वही नौकरीपेशा लोग। यानी एक गरीब तबके की मजबूरी दूसरे गरीब और मध्यम वर्ग को सज़ा बन जाएगी। यह दोहरी मार कोई नहीं चाहता। इसलिए अब वक्त है कि हम सब मिलकर आवाज़ उठाएँ। सरकार और महानगर गैस पर दबाव बने कि तुरंत नए पंप खोले जाएँ। सप्लाई चेन को दुरुस्त किया जाए। “पैसे वाले की अलग लाइन” जैसी असमानता बंद हो। और सबसे ज़रूरी, शहर की परिवहन नीति में ऑटो रिक्शा चालकों को सिर्फ़ “ट्रैफ़िक की समस्या” न समझा जाए, बल्कि उन्हें इस शहर की रीढ़ की हड्डी माना जाए। क्योंकि अगर यह रीढ़ टूट गई तो पूरा शहर लंगड़ा हो जाएगा। आज थाने की ये लंबी कतारें सिर्फ़ सीएनजी की कतारें नहीं हैं। ये मेहनत की अनदेखी की कतारें हैं। ये गरीब की बेबसी की कतारें हैं। और ये हमारी सामूहिक नाकामी की कतारें हैं। इन कतारों को खत्म करने का वक्त अब आ गया है। नहीं तो कल को हम सब भी इन्हीं कतारों में खड़े नज़र आएँगे, कोई न कोई वजह ढूँढकर। जय मेहनतकश।




