Sunday, November 2, 2025
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गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाए!

भारत में आज गौ, गंगा और महिला गरिमा तीनों खतरे में हैं। महिलाओं के लिए देश में यत्र-तत्र ही सुरक्षित अकेले जाना माना जा सकता है। विदेशी महिला पर्यटक ने सबसे अधिक खतरा दिल्ली और सबसे कम केरल बताया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की बात कहते हुए हिंदुओं के मूल अधिकार बनाने को कहा। साथ ही गाय की रक्षा और उसे बढ़ावा देना किसी मजहब से जुड़ा नहीं है। गाय तो भारत की संस्कृति है, जिसकी रक्षा करना नागरिक का फर्ज है चाहे किसी मजहब का हो। जब किसी देश की आस्था को चोट पहुंचती है तो देश कमजोर हो जाता है। इस्लाम में नबी के अनुसार गाय का दूध, मांस मनुष्य के लिए मुफीद माना है लेकिन गौ हत्या का कहीं उल्लेख नहीं किया है। जिन मुगलों को हमलावर विदेशी, शोषक और धर्म परिवर्तन तलवार के बल पर कराने के आरोप लगाए जाते हैं, ये आरोप एकतरफा और न्यायसंगत नहीं हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कहा है कि इतिहास साक्षी है, मुगल बादशाहों ने गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए थे। बाबर के समय प्रतिबंध लगाए गए थे। बाबर ने अपने उत्तराधिकारी हुमायूं को आदेश दिया था कि गौ हत्या गैरकानूनी बनाना। हुमायूं ने अपने दोनों शासन में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाए थे। उसके बाद जहांगीर ने भी वही नियम सख्ती से पालन करने को मजबूर किया था अपनी प्रजा को। मुगल बादशाह बाबर ने 1526 से लेकर 1530 तक भारत पर शासन किया। उसने गाय की कुर्बानी पर रोक लगाने का हुक्म दिया था जिसका दस्तावेज मौजूद है। 1921 में ख्वाजा हसन निजामी की किताब तर्क-ए-कुर्बानी पर रोक लगा दी थी। बाबर ने अपने बेटे को भी यही सलाह दी थी कि गौ रक्षा के द्वारा ही यहां के हिंदुओं का दिल जीता और अधिक दिनों तक हुकूमत की जा सकती है। आरएसएस ने भी अपनी पुस्तिका में इसका जिक्र किया था। बाबर के बेटे हुमायूं ने भी दो बार, 1530 से 1540 और दोबारा गद्दी पाने पर 1555 से 1556 तक गो-कसी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए रखा। इसके बाद उसके बेटे जहांगीर ने भी अपने पूरे शासनकाल में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाए रखा था। अकबर तो अपने पूर्ववर्ती सम्राटों से दो कदम आगे बढ़कर गौ हत्यारे को सजा-ए-मौत का हुक्म दे दिया था। अकबर के शासनकाल 1556 से लेकर 1605 तक गौ हत्या के खिलाफ मृत्यु की सजा का फरमान चालू रखा। हिंदुओं की आस्था का सम्मान करते हुए उसने अपने ही नहीं, बेटे-पोतों के जन्मदिन पर भी किसी पशु को मारने पर पाबंदी लगा दी। यही कारण था जो अकबर के शासनकाल में उसके दरबार में हिंदुओं की संख्या बढ़ गई। तानसेन, बीरबल, टोडरमल, मानसिंह जैसे लोग सम्मानित किए जाते रहे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इतिहास की नजरों का भी बाकायदा उल्लेख किया। मुगलिया सल्तनत खत्म होने के बाद पहला बूचड़खाना अंग्रेजों ने कलकत्ता में खुलवाया, जिसकी कभी चर्चा तक नहीं की जाती। केवल मुसलमानों को ही दोष देकर मॉब लिंचिंग की जा रही है। आज़ादी के बाद बकायदा हिंदुओं ने गौ कत्ल कारखाने खोले। देश के चार बड़े कत्लखाने हिंदुओं के ही हैं जिनके नाम मुस्लिम जैसे “अल कबीर” रखे गए हैं। आज जब कथित रूप से हिंदुओं की ठेकेदार पार्टी बीजेपी केंद्रीय सत्ता में 2014 से है, मुख्तार अब्बास नकवी जो केंद्रीय मंत्री थे, 2015 में कहा- जिसे बीफ खाना हो वह पाकिस्तान चला जाए। उन्हें मंत्रिमंडल से ही निकाल दिया गया। वहीं आज बीजेपी शासन में तीसरी बार कैबिनेट मंत्री किरण रिजिजू ने छाती ठोक कर कहा था। “मैं बीफ खाता हूं, रोक कर दिखाए कोई।” फिर भी मंत्री बने हुए हैं। जब इस पर बवाल होने लगा तो रिजिजू ने सफाई दी। मेरे कहने का गलत अर्थ निकाला गया। एक तरफ देश में गोमांस के अंदेशे पर मुसलमानों को मारा जाता है, दूसरी तरफ गो-तस्कर धड़ल्ले से बांग्लादेश गौवंश भेज रहे हैं। एक तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गो हत्यारों को मिट्टी में मिलाने की बात कहते हैं, दूसरी तरफ बीफ एक्सपोर्ट करने वालों से 250 करोड़ चुनावी चंदा लिया जाता है। हिंदू हित और हिंदू रक्षा की बातें करने वाले मात्र दस वर्षों में भारत को बीफ निर्यात करने में दुनिया भर के देशों में दूसरे नंबर पर ला दिया। घी, तेल, शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत की वस्तुओं पर तो जीएसटी लगाई गई है, लेकिन बीफ निर्यात पर जीएसटी शून्य कर दी है। लठे बीफ निर्यातकों को भारी अनुदान दिया जाता है। शंकराचार्य ने खुलेआम आरोप लगाए हैं कि जितनी गाएं मुगल शासन में नहीं कटी होंगी, उसकी कई गुना गाएं आज काटी जा रही हैं। सच तो यह है कि धर्म जैसा ही गाय, बीजेपी की राजनीति और हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का औजार मात्र है। न उसे धर्म से कोई मतलब है, न गौ से।

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