
स्वतंत्र लेखक- इंद्र यादव
भारत में महंगाई की मार में खोई रौनक,करवा चौथ, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा त्योहार जो पति-पत्नी के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। चांद की चांदनी में सजी सोलह श्रृंगार वाली सुहागिनें, करवे की पूजा, और पिया के साथ बिताए प्यार भरे पल- यह सब इस पर्व की खासियत रही है। लेकिन आज, महंगाई की मार ने इस त्योहार की रौनक को फीका कर दिया है। पहले जहां करवा चौथ की तैयारियां हंसी-खुशी और उत्साह के साथ होती थीं, वहीं अब मायूस चेहरों और आर्थिक तनाव ने इसकी चमक छीन ली है। पहले करवा चौथ का मतलब था बाजारों में रंग-बिरंगी चूड़ियों की खनक, मेहंदी की सौंधी खुशबू, और मिठाइयों की मिठास। महिलाएं महीनों पहले से इस दिन की तैयारियों में जुट जाती थीं। नए कपड़े, गहने, और पूजा का सामान खरीदने की होड़ रहती थी। बच्चे, बूढ़े, और जवान सब इस पर्व की खुशी में शरीक होते थे। लेकिन अब, बढ़ती महंगाई ने इस उत्सव की रंगत को कहीं गहरे तक प्रभावित किया है। आज बाजार में एक साधारण साड़ी की कीमत हजारों में है, गहनों की तो बात ही छोड़िए। मेहंदी लगाने वाले की फीस से लेकर पूजा के सामान तक, सब कुछ इतना महंगा हो गया है कि मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए यह पर्व अब बोझ-सा लगने लगा है। मिठाइयों और फल-सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं। जहां पहले करवा चौथ का थाल सजाने में खुशी मिलती थी, अब जनता को बजट की चिंता सताने लगी है। महंगाई ने न केवल त्योहार की खरीदारी को प्रभावित किया, बल्कि लोगों के मनोभाव को भी बदल दिया है। कई महिलाएं अब करवा चौथ को सादगी से मनाने को मजबूर हैं। पहले जहां पड़ोस में मेहंदी और सजने-संवरने की होड़ रहती थी, अब लोग अपने बजट को देखकर ही फैसले लेते हैं। कुछ परिवारों में तो यह चर्चा आम हो रही थी कि क्या इस बार करवा चौथ की पूरी रस्में निभाई जाएं या सिर्फ पूजा तक सीमित रहा जाए। युवा पीढ़ी में भी इस पर्व को लेकर उत्साह कम होता दिख रहा है। जहां पहले नवविवाहित जोड़े इस दिन को खास बनाने के लिए उत्साहित रहते थे, अब कई लोग इसे केवल एक रस्म के तौर पर निभाते हैं। सोशल मीडिया पर भले ही चमक-दमक भरी तस्वीरें दिखें, लेकिन हकीकत में कई घरों में यह त्योहार आर्थिक दबाव के साये में मनाया जा रहा है।
करवा चौथ का असली मोल तो प्रेम और विश्वास में है, न कि महंगे सामानों में। शायद यह समय है कि हम इस पर्व को उसकी मूल भावना के साथ मनाएं। सादगी से सजा थाल, घर पर बनी मिठाइयां, और अपने हाथों से बनाई मेहंदी के डिजाइन भी उतने ही खूबसूरत हो सकते हैं। बाजार की चकाचौंध के बजाय, पति-पत्नी के बीच का समय और एक-दूसरे के लिए समर्पण इस दिन को यादगार बना सकता है। साथ ही, समाज को भी इस दिशा में कदम उठाने होंगे। स्थानीय स्तर पर मेहंदी और पूजा के सामान की सस्ती दुकानें या सामूहिक आयोजन जैसे उपाय इस त्योहार को फिर से सुलभ बना सकते हैं। सरकार और व्यापारियों को भी चाहिए कि त्योहारी सीजन में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाएं, ताकि हर वर्ग के लोग इस पर्व की खुशी में शामिल हो सकें। करवा चौथ का फीका पड़ता रंग महंगाई की मार का नतीजा है, लेकिन इसकी चमक को वापस लाने की जिम्मेदारी हमारी है। यह पर्व केवल बाहरी चमक-दमक का नहीं, बल्कि दिलों के जुड़ाव का है। अगर हम इसकी सादगी और प्रेम को अपनाएं, तो महंगाई की मार के बीच भी करवा चौथ की रौनक लौट सकती है। तो आइए, इस बार चांद को देखकर न केवल पिया की लंबी उम्र की कामना करें, बल्कि यह भी प्रण करें कि हम अपने त्योहारों को प्रेम और सादगी के साथ मनाएंगे, ताकि मायूसी की जगह फिर से खुशियों की चांदनी बिखरे।