
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब कोई पुलिसकर्मी वर्दी पहनता है, तो उसे अपनी धार्मिक, जातीय या व्यक्तिगत पूर्वाग्रह वाली सोच को पूरी तरह त्यागकर केवल कानून और कर्तव्य के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। अदालत ने 2023 में अकोला के पुराने शहर इलाके में पैगंबर मोहम्मद से जुड़े एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद भड़की हिंसा में हुई हत्या और घायलों पर हमले की जांच में गंभीर लापरवाही को बेहद चिंताजनक माना। इस हिंसा में विलास महादेव राव गायकवाड़ की हत्या हुई थी, जबकि याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ समेत आठ लोग घायल हुए थे। शरीफ ने आरोप लगाया कि चार हमलावरों ने गायकवाड़ पर तलवार और पाइप से हमला करने के बाद उनकी गाड़ी तोड़ी और उन पर भी वार किए। पुलिस ने अस्पताल में उनका बयान दर्ज किया, लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की। इसके बाद शरीफ ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि उनके दावे संदिग्ध लगते हैं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि पुलिस ने न केवल एफआईआर दर्ज करने में विफलता दिखाई, बल्कि अपने कर्तव्य में भी घोर लापरवाही की। अदालत ने महाराष्ट्र के गृह विभाग को आदेश दिया कि हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल कर एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए, जो तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करे। साथ ही, लापरवाह पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने, पुलिस को संवेदनशीलता और कानून के प्रति जागरूकता की ट्रेनिंग देने और तीन महीने में जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए गए।